हाईकोर्ट ने क्या कहा?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट को भेजे गए इस अनुरोध को कोर्ट ने खारिज कर दिया। 14 फरवरी को हाईकोर्ट ने यह कहकर जांच की इजाजत नहीं दी कि जज के खिलाफ “पर्याप्त सबूत” नहीं हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने ACB को जांच जारी रखने को कहा और सुझाव दिया कि अगर आगे कोई ठोस सबूत मिले, तो दोबारा संपर्क करें।
कोर्ट स्टाफ पर FIR दर्ज
इसके बाद एसीबी ने इस मामले में 16 मई को कोर्ट स्टाफ के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। जिसके बाद 20 मई को स्पेशल जज का ट्रान्सफर कर दिया गया। उन्हें राउज एवेन्यू कोर्ट से दूसरी कोर्ट भेज दिया गया। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं मिला। वहीं जज ने भी इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
पूरा मामला कैसे शुरू हुआ?
29 जनवरी को एसीबी ने विधि विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखा बताया कि यह मामला 2023 में शुरू हुआ। जब एक जीएसटी अधिकारी के खिलाफ फर्जी कंपनियों को गलत तरीके से टैक्स रिफंड देने का आरोप लगा। ACB ने उस अधिकारी समेत 16 लोगों को गिरफ्तार किया और उन्हें राउस एवेन्यू कोर्ट में पेश किया। जब इन आरोपियों ने जमानत की अर्जी लगाई तो सुनवाई टाली जाती रही और तारीखें आगे बढ़ती गईं।
पहली शिकायत 30 दिसंबर को मिली
एसीबी को पहली शिकायत 30 दिसंबर 2024 को जीएसटी अधिकारी के एक रिश्तेदार से ईमेल के जरिए प्राप्त हुई, जिसमें आरोप था कि अदालत के अधिकारियों ने उनसे जीएसटी अधिकारी की जमानत के लिए 85 लाख रुपये और अन्य आरोपितों की जमानत के लिए एक – एक करोड़ रुपये की रिश्वत की मांग की है।
धमकी भी दी गई
रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने रिश्वत देने से इनकार किया तो जमानत याचिका को बिना कारण एक महीने से अधिक समय तक लंबित रखा गया और बाद में खारिज कर दिया गया। बाद में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिली, लेकिन एक आरोपी ने उनसे संपर्क कर कथित तौर पर धमकी दी कि संबंधित जज उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अपनी शक्तियों के भीतर सब कुछ करेंगे। उसने उनसे कहा कि वह हाईकोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ले, 1 करोड़ रुपये दें तो उन्हें जमानत दे दी जाएगी।
दूसरी शिकायत 20 जनवरी को
एक अन्य शिकायत 20 जनवरी को मिली, जिसमें एक व्यक्ति ने बताया कि जनवरी के पहले सप्ताह में अदालत के अहलमद ने उनसे संपर्क किया और कहा कि एक मामले में आरोपी तीन लोगों को जमानत मिल सकती है, यदि वो प्रति व्यक्ति 15-20 लाख रुपये की रिश्वत देने के लिए तैयार हों तो। एसीबी ने अपने पत्र में लिखा कि प्रारंभिक जांच में शिकायतों की सामग्री और ऑडियो रिकॉर्डिंग जमानत सुनवाईयों में स्थगन सहित घटनाक्रम से मेल खाती हैं।
ACB की जांच में मिले अहम सुराग
ACB ने अपनी शुरुआती जांच में पाया कि शिकायतें और उनके पास मौजूद ऑडियो रिकॉर्डिंग घटनाओं से मेल खाती हैं। इससे साफ हुआ कि मामला गंभीर है और कोर्ट स्टाफ व जज की भूमिका पर सवाल उठते हैं। जिसके बाद ACB ने 16 मई को कोर्ट स्टाफ के खिलाफ FIR दर्ज की।
FIR दर्ज होने के बाद क्या हुआ?
एफ़आईआर के बाद स्टाफ ने अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई। जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अहलमद के वकीलों ने तर्क दिया कि एसीबी ने अहलमद के खिलाफ एक ‘झूठी और मनगढ़ंत एफआईआर’ दर्ज की थी और स्पेशल जज को ‘फंसाने की कोशिश’ की थी ताकि उनसे ‘अपना हिसाब बराबर किया जा सके’। चीफ पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने इस आधार पर जमानत का विरोध किया कि अहलमद मुख्य आरोपी है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कथित तौर पर उनके द्वारा शिकायतकर्ता को हाथ से लिखी एक पर्ची दी गई थी, जो कथित अपराध में उसकी संलिप्तता को दर्शाती है। जिसके बाद 22 मई को कोर्ट ने अहलमद की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।