गीता सामोता- रचा इतिहास, बनीं एवरेस्ट पहुंचने वाली सीआइएसएफ की पहली अधिकारी
गीता सामोता, राजस्थान के सीकर जिले के छोटे से गांव चक की रहने वाली। 19 मई 2025 को मैंने माउंट एवरेस्ट की 8,849 मीटर ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया।
मैं गीता सामोता, राजस्थान के सीकर जिले के छोटे से गांव चक की रहने वाली। 19 मई 2025 को मैंने माउंट एवरेस्ट की 8,849 मीटर ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया। मैं केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की पहली महिला अधिकारी बनी, जिसने यह उपलब्धि हासिल की। यह मेरी निजी जीत से कहीं बढकऱ थी—यह मेरे देश, मेरे बल और उन सभी लड़कियों के लिए एक संदेश था जो बड़े सपने देखती हैं। मेरी यह यात्रा 2016 में शुरू हुई थी, जब मैंने पर्वतारोहण के क्षेत्र में कदम रखा। आज मैं आपको अपनी जुबानी वह कहानी सुनाने जा रही हूं, जो मेहनत, हिम्मत और कभी न हार मानने के जज्बे से भरी है। यह कहानी राजस्थान पत्रिका को बताई गई मेरी उस गाथा का परिचय है, जिसमें मैंने अपने सपनों को हकीकत में बदलने की राह में आई चुनौतियों और जीत का जिक्र किया। यह एक ऐसी कहानी है, जो हर उस व्यक्ति को प्रेरित करेगी जो अपने डर को हराकर असंभव को संभव बनाना चाहता है।
मैं एक साधारण परिवार से हूं, जहां मैं और मेरी चार बहनें पली-बढ़ीं। गांव में बड़े होने के दौरान मैंने अक्सर लडक़ों की उपलब्धियों की कहानियां सुनीं, लेकिन लड़कियों की कहानियां गायब थीं। यह बात मेरे मन में घर कर गई कि मुझे कुछ ऐसा करना है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बने। कॉलेज में मैं एक होनहार हॉकी खिलाड़ी थी, लेकिन एक चोट ने मेरे खेल के सपने को तोड़ दिया। यह मेरे लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन यहीं से मेरी जिदंगी ने नया मोड़ लिया।
वर्ष 2011 में मैं सीआइएसएफ में शामिल हुई और 2015 में मैंने आइटीबीपी के औली प्रशिक्षण संस्थान में बेसिक पर्वतारोहण कोर्स किया, जहां मैं अपनी बैच की इकलौती महिला थी। 2017 में मैंने एडवांस कोर्स पूरा किया और सीआइएसएफ की पहली अधिकारी बनी, जिसने यह उपलब्धि हासिल की। उस समय मेरे मन में एक सपना जागा—माउंट एवरेस्ट पर चढऩे का। मेरे दोस्त, जो आर्मी और अन्य बलों में थे, अपनी एवरेस्ट यात्राओं की बातें करते थे और मैंने ठान लिया कि मैं भी ऐसा करूंगी।
पहाड़ों ने बुलाया
मेरी पर्वतारोहण यात्रा 2019 में गति पकड़ी। मैंने उत्तराखंड के माउंट सतोपंथ (7,075 मीटर) और नेपाल के माउंट लोबुचे (6,119 मीटर) पर चढ़ाई की। मैं किसी भी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की पहली महिला बनी, जिसने ये चोटियां फतह कीं।
2021 और 2022 के बीच, मैंने केवल छह महीने और 27 दिनों में चार प्रमुख चोटियों पर चढ़ाई की- ऑस्ट्रेलिया का माउंट कोसियसको (2,228 मीटर), रूस का माउंट एल्ब्रस (5,642 मीटर), तंजानिया का माउंट किलिमंजारो (5,895 मीटर), और अर्जेंटीना का माउंट अकोंकागुआ (6,961 मीटर)। मैं यह उपलब्धि हासिल करने वाली सबसे तेज भारतीय महिला बनी। इसके अलावा, मैंने लद्दाख के रूपशु क्षेत्र में तीन दिन में पांच चोटियों पर चढ़ाई की, जिनमें तीन 6,000 मीटर से ऊंची थीं। इन अनुभवों ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से एवरेस्ट के लिए तैयार किया।
एवरेस्ट की राह- चुनौतियां और तैयारी
एवरेस्ट की चढ़ाई कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए न केवल शारीरिक ताकत बल्कि मानसिक दृढ़ता और वित्तीय स्थिरता भी चाहिए। मेरी इस यात्रा में सीआईएसएफ का साथ मेरे लिए अनमोल रहा। उन्होंने मेरे प्रशिक्षण के लिए मणिकरण के अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेल संस्थान (एबीवीआइएमएएस) में अवसर दिए और मेरे एवरेस्ट अभियान को पूरी तरह से प्रायोजित किया। यह पहली बार था कि सीआइएसएफ की ओर से कोई एवरेस्ट तक पहुंचा। मैंने बेसिक और एडवांस कोर्स के बाद छोटी चोटियों से शुरुआत की ताकि अपनी क्षमता को परख सकूं। मैंने अपनी फिटनेस पर विशेष ध्यान दिया—लंबी दूरी की दौड़, वजन प्रशिक्षण और योग मेरी दिनचर्या का हिस्सा बने। पर्वतारोहण महंगा है और अगर सीआईएसएफ का समर्थन नहीं होता, तो यह मेरे लिए मुश्किल होता। href="https://www.patrika.com/opinion" target="_blank" rel="noopener">
एवरेस्ट की चढ़ाई- डर के आगे जीत
19 मई 2025 को जब मैंने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा, तो वह मेरी जिदंगी का सबसे गौरवपूर्ण पल था। लेकिन यह राह आसान नहीं थी। बेस कैंप तक पहुंचना तो अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन असली इम्तिहान इसके बाद शुरू होता है। हमें लैडर क्रॉसिंग, बर्फीली ढलानों पर चढ़ाई और कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की ट्रेनिंग दी गई। हमने कैंप 3 तक जाकर वापस आने का अभ्यास किया ताकि शरीर को ऊंचाई के अनुकूल बनाया जा सके। फिर अंतिम चढ़ाई शुरू हुई।
8,000 मीटर के बाद हवा पतली हो जाती है, और डर का सामना करना स्वाभाविक है। मेरे मन में भी यह डर था कि क्या मैं घर वापस लौट पाऊँगी। लेकिन मैंने सुना था कि डर के आगे जीत है। मैंने कभी हार नहीं मानी। कैंप 3 के बाद ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है, और खाने का मन नहीं करता। हम एनर्जी बार और चॉकलेट पर निर्भर रहते थे। इस दौरान कई बार हताशा हुई, जब कुछ समझ नहीं आता था कि क्या हो रहा है। लेकिन मैंने खुद को बार-बार याद दिलाया कि मुझे अपने देश और अपनी ताकत पर भरोसा है।
चढ़ाई के दौरान मुझे भारी ट्रैफिक का भी सामना करना पड़ा। कई लोग, जिनमें कुछ बिना पर्याप्त प्रशिक्षण के आए थे, वहां थे। मेरा मानना है कि एवरेस्ट जैसे अभियान के लिए पूरी तैयारी जरूरी है। बिना प्रशिक्षण के यह खतरनाक हो सकता है। फिर भी, मैंने अपनी एकाग्रता बनाए रखी और आखिरकार चोटी पर पहुंच गई। जब मैंने तिरंगा फहराया, तो वह मेरे लिए एक विजयी क्षण था—न केवल मेरे लिए, बल्कि सीआइएसएफ और मेरे देश के लिए भी।
व्यक्तिगत चुनौतियां- तोड़े सामाजिक बंधन
मेरे गांव में लड़कियों को ज्यादा प्रोत्साहन नहीं मिलता था। लोग ताने मारते थे कि लड़कियां घर से बाहर क्यों जाएं। मेरे परिवार को मुझे सपोर्ट करने में मुश्किल हुई, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं बिना किसी को बताए पहाड़ों पर चली जाती थी। जैसे-जैसे मुझे सफलता मिली, लोगों का नजरिया बदला। लेकिन आज भी कई लड़कियों को खुद को साबित करने की जरूरत पड़ती है। मेरा मानना है कि हमें खुद आगे आना होगा और कभी हार नहीं माननी चाहिए।
उपलब्धियां और सम्मान
मेरी यात्रा को कई सम्मानों से नवाजा गया। 2023 में मुझे दिल्ली महिला आयोग से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पुरस्कार और नागर विमानन मंत्रालय से गिविंग विंग्स टू ड्रीम्स अवॉर्ड मिला। एवरेस्ट की चढ़ाई के बाद सीआइएसएफ के महानिदेशक ने मुझे डीजी डिस्क और 5 लाख रुपए के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया। लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार वह गर्व था, जब मैंने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। मुझे एवरेस्टर का खिताब मिला, जो मेरे लिए गर्व की बात है, क्योंकि एवरेस्ट ऐसी जगह है जहाँ पहुंचना आसान नहीं।
भविष्य के सपने- सेवन समिट्स और प्रेरणा
मैंने सेवन समिट्स की पांच चोटियां फतह कर ली हैं। अब केवल दो बाकी हैं—उत्तरी अमेरिका का माउंट डेनाली और अंटार्कटिका का माउंट विन्सन। मेरा लक्ष्य है कि मैं इसे जल्द पूरा करूं। इसके अलावा, मैं 2026 में सीआइएसएफ की पहली पूर्ण पर्वतारोहण टीम को प्रशिक्षित करने के लिए उत्साहित हूं। मैं चाहती हूं कि मेरी कहानी दूसरों, खासकर लड़कियों को प्रेरित करे कि वे बड़े सपने देखें और मेहनत करें।
मैं वर्तमान में सीआइएसएफ की उदयपुर एयरपोर्ट यूनिट में तैनात हूं, लेकिन मेरा दिल पहाड़ों में बसता है। पर्वतारोहण ने मुझे सिखाया कि पहाड़ लिंग भेद नहीं करते। वे सभी को एक समान चुनौती देते हैं। अगर आप एवरेस्ट जैसे सपने देख रहे हैं, तो मेरी सलाह है बेसिक कोर्स से शुरुआत करें, छोटी चोटियों पर चढ़ें, अपनी शारीरिक और मानसिक ताकत को परखें। मेहनत करें, हार न मानें, और अपने सपनों को सच करें।
संदेश: कभी हार मत मानो
मेरा संदेश है, बड़े सपने देखो, कड़ी मेहनत करो, और कभी हार मत मानो। चाहे आप किसी छोटे गांव से हों या बड़े शहर से, अगर आपमें जज़्बा है, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। मैं चाहती हूं कि मेरी कहानी भारत की हर लडक़ी को प्रेरित करे कि वे अपने लिए नई राह बनाएं और समाज के बंधनों को तोड़ें। पर्वतारोहण ने मुझे सिखाया कि असली जीत तब होती है, जब आप अपने डर को हराकर अपने सपनों को हकीकत में बदलते हैं।