उम्र देखते हुए सुनाई सजा
मामले की जानकारी के अनुसार, दोषी पर एक नाबालिग स्कूल छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप था। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि दोषी का अपराध गंभीर है, लेकिन उसकी उम्र और पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने पारंपरिक सजा के बजाय एक वैकल्पिक दृष्टिकोण अपनाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि दोषी को एक महीने तक किसी सरकारी अस्पताल में मरीजों की देखभाल और अन्य सहायता कार्यों में समय बिताना होगा। इसके साथ ही, दोषी को सामुदायिक सेवा के तहत नैतिकता और संवेदनशीलता पर आधारित काउंसलिंग सत्रों में भी भाग लेना होगा।
गंभीर अपराध के लिए यह सजा पर्याप्त नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे अपराधी के सुधार और समाज के प्रति जवाबदेही को बढ़ावा देने वाला कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य का कहना है कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध के लिए यह सजा पर्याप्त नहीं है। एक वरिष्ठ वकील ने कहा, “यह फैसला सुधारवादी दृष्टिकोण को दर्शाता है, लेकिन पीड़िता के न्याय और समाज में कड़ा संदेश देने के लिए सजा का संतुलन जरूरी है।”
दोषी पर कड़ी निगरानी
यह अनोखा फैसला न केवल दोषी को अपनी गलती का अहसास कराने का प्रयास है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि अपराधी को बेहतर इंसान बनाना भी हो सकता है। इस मामले पर कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दोषी की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी, और किसी भी तरह की लापरवाही पर सजा को और सख्त किया जा सकता है।