विपक्षी नेता शशि थरूर को लेकर कयासों का बाजार गर्म है।
कांग्रेस के सीनीयर लीडर शशि थरूर के बीजेपी लीडरशिप के साथ करीबी बढ़ने के बाद कयास लग रहे हैं कि क्या वह पार्टी बदलेंगे? राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि इस बात की संभावना 50-50% है। जब तक कांग्रेस की तरफ से कोई बड़ा स्टेप नहीं लिया जाता तब तक थरूर पार्टी में बने रहेंगे। हां, यह जरूर है कि ऐसा कुछ होता है तो बीजेपी को इमेज इंप्रूवमेंट और वोट बैंक में मददगार जरूर बन सकते हैं।
1- दुनियाभर में ऑपरेशन सिंदूर पर भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार ने शशि थरूर को चुना। उन्हें बहुदलीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व सौंपा गया। जबकि कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई और अमरिंदर सिंह के नाम सुझाए थे। इससे कांग्रेसियों की त्योरियां चढ़ गईं।
2- बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने कांग्रेस के पक्षपाती रवैये पर सवाल उठाकर आग में घी का काम किया। उन्होंने थरूर की बड़ाई करते हुए कहा कि आखिर राहुल गांधी ने उनको क्यों नजरअंदाज किया। थरूर के पास संयुक्त राष्ट्र का अनुभव है। विदेशी नीति में उनका कोई सानी नहीं है। क्या राहुल जलते हैं?
3- कर्नाटक के पूर्व सीएम जगदीश खट्टर ने कहा था कि हमें कांग्रेसी नेताओं के बयान पर गौर करना चाहिए। उन्हें शशि थरूर, मनीष तिवारी और चिदंबरम से सीखना चाहिए। इन लोगों ने देश के हित में संतुलित और मैच्योर बात कही।
थरूर कब निशाने पर आए
1- ऑपरेशन सिंदूर की तारीफ में थरूर ने कहा था कि यह पाकिस्तान को मजबूत और सधा हुआ जवाब था। इस बारे में उन्होंने पहले सुझाव दिया था। इस बयानबाजी के बाद वह कांग्रेसियों के निशाने पर आ गए। कांग्रेसियों को लगा वह राष्ट्रीय सुरक्षा पर पार्टी की खींची लकीर पर चोट कर रहे हैं।
2- केरल के एक पोर्ट के उद्घाटन में वह पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मंच शेयर करते नजर आए। जबकि कांग्रेस ने उस कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। तब पीएम ने कहा था कि मंच पर थरूर बैठे हैं। लेकिन नींद कुछ नेताओं की खराब हो जाएगी। जो संदेश जहां पहुंचना था, पहुंच गया।
थरूर का डैमेज कंट्रोल
कांग्रेस में आलोचना शुरू होने के बाद थरूर ने कहा था कि उनके बयान निजी हैं और वे कांग्रेस का प्रतिनिधित्व नहीं करते। मैंने एक नागरिक की तरह बात कही न कि पार्टी प्रवक्ता की तरह। संघर्ष के समय हमें अपने तिरंगे के साथ होना चाहिए।
कांग्रेस का स्टैंड
कांग्रेस के सीनीयर नेता ने थरूर के सफाई देने के बाद कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कहकर उन्होंने लक्ष्मण रेखा लांघी है। कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक मीटिंग में उन्होंने हमले के लिए ‘calibareted, calculated’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था, जो पार्टीलाइन के खिलाफ था। कांग्रेस इसके बावजूद उलझन में है कि करें क्या?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
राजनीतिक विश्लेषक रंजीत कुमार बताते हैं कि कांग्रेस में शशि थरूर को नजरअंदाज किया जाता रहा है। उनको पार्टी के नीति निर्माण में नहीं रखा जाता। वह विदेश नीति पर पार्टी से अलग राय रखते हैं। केरल में भी उनको पार्टी की तरफ से खास जिम्मेदारी नहीं मिली है। यह स्थिति काफी पहले से है। अब अगर बीजेपी से नजदीकी बढ़ने पर कांग्रेस कोई कार्रवाई करती है तो ही थरूर हिलेंगे।
सीपीएम के वोट बैंक में सेंध चाहती है बीजेपी
राजनीति विश्लेषक चंद्रभूषण बताते हैं कि केरल की राजनीति बिल्कुल अलग है। वहां का मूल वोटर ताड़ और नारियल का काम करने वाले लोग हैं, जो सीपीएम को सपोर्ट करते हैं। सीपीएम के साथ केरल का Brahman Vote Bank है। बीजेपी इसी में सेंध लगाना चाहती है।
करिश्माई पॉलिटिक्स चुभती है परिवार को
चंद्रभूषण बताते हैं कि कांग्रेस के सपोर्टर अल्पसंख्यक और गैर ब्राह्मण हैं। थरूर केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से लड़ते हैं। यहां उनका जनाधार काफी मजबूत है। बीते साल लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के मजबूत कैंडिडेट राजीव चंद्रशेखर को हराया था। वह करिश्मा पॉलिटिक्स में माहिर हैं, जिसके कारण उनके गांधी-नेहरू परिवार से ताल्लुकात मधुर नहीं हैं। इस बीच, लोकसभा चुनाव से राहुल गांधी वहां से लड़े और जीते हैं। इसके बावजूद थरूर का जलवा वोटरों के बीच बरकरार है। इस वजह से संभव है कि कांग्रेस इस समय कुछ न करे।
बीजेपी को मिल सकता है फायदा
चंद्रभूषण बताते हैं कि थरूर के आने से बीजेपी को दो बड़े फायदे होंगे। पहला, उसे ब्राह्मण वोट मिल जाएंगे। तिरुवनंतपुरम में थरूर इन्हीं वोटों के दम पर चुनाव जीतते हैं। दूसरा, थरूर को शामिल करने पर बीजेपी की हिन्दी भाषी क्षेत्र की पार्टी वाली छवि भी सुधरेगी।