क्या है मामला?
प्राडा ने अपने स्प्रिंग/समर 2026 मेन्स फैशन शो में मिलान फैशन वीक के दौरान ‘टो रिंग सैंडल्स’ पेश किए, जो कोल्हापुरी चप्पल से हूबहू मिलते-जुलते थे। ये सैंडल्स लगभग 1.2 लाख रुपये की कीमत पर बेचे जा रहे हैं, जबकि कोल्हापुर में कारीगर इन्हें 400-500 रुपये में बनाते हैं। प्राडा ने शुरू में भारत या कोल्हापुरी चप्पल का कोई उल्लेख नहीं किया, जिससे कारीगरों और स्थानीय नेताओं में आक्रोश फैल गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट में PIL
2 जुलाई 2025 को बौद्धिक संपदा अधिकारों के अधिवक्ता गणेश एस. हिंगेमिरे ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में मांग की गई कि प्राडा को कोल्हापुरी चप्पल के कारीगरों को मुआवजा देना चाहिए और भारतीय पारंपरिक डिज़ाइनों की सुरक्षा के लिए सरकार को निर्देश जारी किए जाएं। याचिका में को-ब्रांडिंग, क्षमता निर्माण, और राजस्व साझेदारी जैसे कदमों का सुझाव दिया गया है ताकि कारीगरों को उनकी कला का उचित लाभ मिल सके।
कारीगरों का गुस्सा
कोल्हापुर में लगभग 20,000 कारीगर कोल्हापुरी चप्पल बनाते हैं, जो महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। कारीगरों का कहना है कि प्राडा ने उनकी मेहनत और विरासत का अपमान किया है। उन्होंने संत रोहिदास चर्मोद्योग विकास महामंडल के माध्यम से जिला कलेक्टर, राज्य सरकार और केंद्र सरकार से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
प्राडा का जवाब
सोशल मीडिया और सार्वजनिक आलोचना के बाद प्राडा ने स्वीकार किया कि उनकी सैंडल्स की डिज़ाइन कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित थी। कंपनी ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स को पत्र लिखकर इसकी पुष्टि की और कारीगरों के साथ सहयोग की बात कही। प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी हेड लोरेंजो बेरटेली ने कहा कि उनकी कंपनी हमेशा पारंपरिक डिज़ाइनों की सराहना करती है।