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देश में आरक्षण ट्रेन कम्पार्टमेंट की तरह हो चुका जिसे पहले से लाभ मिल रहा… सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

Supreme Court: भारत के भावी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण की टिप्पणी करते हुए कहा कि यह देश में ट्रेन के डिब्बे जैसा बन गया है, जो चढ़ गए वे दूसरों को चढ़ने नहीं देना चाहते है।

भारतMay 06, 2025 / 02:10 pm

Shaitan Prajapat

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश और भारत के भावी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा, आरक्षण अब देश में ट्रेन के डिब्बे जैसा हो गया है- जो लोग इस डिब्बे में चढ़ गए हैं, वे दूसरों को उसमें चढ़ने नहीं देना चाहते।
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा कि सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे और अधिक वर्गों की पहचान करें जो सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ केवल कुछ ही परिवारों और समूहों को मिल रहा है। क्या बाकी वंचित लोगों को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए?

महाराष्ट्र में क्यों रुके हैं स्थानीय चुनाव?

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव 2016-17 के बाद से नहीं हुए हैं। इसका मुख्य कारण ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण संबंधी अध्यादेश को खारिज कर दिया था और तीन-स्तरीय परीक्षण की शर्तें निर्धारित की थीं:
1 ओबीसी की सामाजिक पिछड़ेपन की वर्तमान और कठोर डेटा आधारित जांच के लिए एक समर्पित आयोग बनाना।
2 आयोग की सिफारिशों के आधार पर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का प्रतिशत तय करना।
3 कुल आरक्षण (SC/ST/OBC) 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
डेटा संग्रह और कानूनी अड़चनों के चलते चुनाव प्रक्रिया रुकी हुई है।

याचिकाकर्ताओं की दलील

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार के पास पहले से ओबीसी की पहचान से जुड़ा डेटा है, लेकिन उसे स्थानीय चुनावों के लिए उपयोग नहीं किया जा रहा। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार मनमाने तरीके से अपने पसंदीदा अधिकारियों के जरिए स्थानीय निकाय चला रही है।
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि ओबीसी वर्ग के भीतर भी राजनीतिक रूप से पिछड़े और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान होनी चाहिए, ताकि आरक्षण का सही लाभ मिल सके।

पहले भी हो चुकी है ‘ट्रेन डिब्बे’ की तुलना

आपको बता दें कि इस महीने के अंत में भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस बीआर गवई ने भी अपने एक फैसले में यही तुलना की थी। उन्होंने एससी/एसटी वर्गों के उपवर्गीकरण (Sub-Classification) को वैध बताया था और कहा था कि जो लोग एक बार राष्ट्रपति की सूची में शामिल हो गए हैं, वे अब दूसरों को उसमें शामिल नहीं होने देना चाहते, जैसे ट्रेन के जनरल डिब्बे में घुसे यात्री दूसरों को घुसने से रोकते हैं।

जाति आधारित जनगणना की पृष्ठभूमि में अहम टिप्पणी

यह टिप्पणी उस समय आई है जब केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जातीय आंकड़ों को शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि यह कदम वंचित वर्गों की पहचान में मदद करेगा और उन्हें आरक्षण जैसी योजनाओं का सही लाभ मिलेगा। विपक्ष लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहा था।

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