ऐसा क्या हुआ कि पिता ने अपने बेटे के हारने की थी कामना?
Congress Leader AK Antony vs Anil Antony: एके एंटनी ने 1970 में कांग्रेस की टिकट पर केरल विधानसभा चुनाव जीतकर राजनीति में जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई। वह केरल के 1977, 1995 और 2001 में तीन बार मुख्यमंत्री भी बने। वर्ष 2022 में राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के बाद संसदीय राजनीति छोड़कर अपने गृहराज्य केरल चले गए। बीते शुक्रवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने तिरुवनंतपुरम उनके आवास पहुंचकर उनसे मुलाकात की। वे वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान अचानक मीडिया की सुर्खियों में तब आए थे जब उन्होंने अपने बेटे अनिल एंटनी को चुनाव हारने की बद्दुआएं दे दी थी। उन्होंने कहा था कि बेटे ने बीजेपी में शामिल होकर गलती की है। एके एंटनी ने यह भी कहा था कि कांग्रेस ही उनका धर्म है।दरअसल, एके एंटनी के बेटे ने वर्ष 2023 में गुजरात दंगों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर विवाद के बाद कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और बीजेपी में शामिल हो गए। एके एंटनी ने बीजेपी की टिकट से पथानामथिट्टा लोकसभा सीट से बेटे अनिल की बजाय कांग्रेस उम्मीदवार एंटो एंटनी के जीतने की कामना की थी।
मेनका और वरुण गांधी ने 2004 में थामा था बीजेपी का दामन
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के छोटे बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) कांग्रेस के फायरब्रांड नेता थे और तब यह माना जा रहा था कि वही कांग्रेस अगले कर्णधार होंगे। लेकिन राजनीति और भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, इसका ठीक-ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। ऐसी ही एक अनहोनी गांधी-नेहरू परिवार में हुई और उसने भारतीय राजनीति में एक परिवार की राहें अलग कर दी। संजय गांधी की 23 जून, 1980 को एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई। वह दिल्ली में हवाई करतब दिखा रहे थे और विमान का नियंत्रण गड़बड़ा गया था। 1977 में कांग्रेस की हार के बाद संजय गांधी और मेनका गांधी ने बिखर रही पार्टी को एकजुट किया और 1980 में पार्टी को जीत दिलाई। लेकिन इस जीत के बाद इंदिरा गांधी और मेनका के बीच दूरियां बढ़ने लगी। संजय गांधी की मौत के बाद मेनका को इंदिरा गांधी का घर छोड़ना पड़ा। मेनका की उम्र उस समय सिर्फ 23 साल थी। वरुण भी बहुत छोटे थे। मेनका को खुद को स्थापित करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। मेनका ने इंदिरा गांधी के खिलाफ कई प्रदर्शनों में भाग लिया। राजीव गांधी के खिलाफ 1984 में राष्ट्रीय संजय मंच पार्टी से मेनका ने चुनाव लड़ा। मेनका को करारी हार मिली। मेनका पहली बार 1989 में चुनाव जीतीं। वह 6 बार सांसद चुनी गई। वर्ष 2004 में बेटे वरुण के साथ बीजेपी पार्टी में शामिल हुईं।
जनार्दन द्विवेदी के बेटे भी समीर भी BJP में हो गए थे शामिल
Janardhan Dwiedi and his son Sameer Dwiedi: वर्ष 2020 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव चरम पर था और मतदान की तारीख से ठीक 4 दिन पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता जनार्दन द्विवेदी के बेटे समीर ने जोरदार झटका दिया। समीन द्विवेदी भाजपा में शामिल हो गए। समीर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मैं उनका काम देखकर भाजपा में आने का फैसला किया है। हालांकि, इससे पहले जर्नादन द्विवेदी भी नरेंद्र मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद तारीफ कर चुके थे। उन्होंने कहा था कि मेरे राजनीतिक गुरु राम मनोहर लोहियाजी हमेशा से इसके (अनुच्छेद 370 लागू रखने के) खिलाफ थे। जनार्दन द्विवेदी काफी समय तक कांग्रेस पार्टी के महासचिव रहे।
पिता यशवंत के पार्टी छोड़ने के बाद भी जयंत बने BJP से सांसद
Yashwant Sinha Vs Jayant Sinha: पूर्व वित्तमंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा ने अटल सरकार में विदेश मंत्री रहे। वर्ष 2018 में उन्होंने पटना में बीजेपी से अलग होने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद वह अब तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं। वर्ष 2022 में विपक्ष ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया था। राष्ट्रपति चुनाव से पहले उनके बेटे जयंत सिन्हा की टिप्पणी सुर्खियां बनीं क्योंकि उन्होंने कहा था कि मैं सांसद के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगा। जयंत बीजेपी पार्टी से दो बार सांसद रहे। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जयंत ने सक्रिय राजनीति से दूरी बनाने का ऐलान कर दिया था। इनके अलावा बिहार के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भागवत झा के बेटे ने कीर्ति आजाद ने बीजेपी में शामिल हुए।