scriptजात-पात और राज: क्यों है जातीय जनगणना जरूरी? | Modi Government Approved Caste sensus why its need | Patrika News
राष्ट्रीय

जात-पात और राज: क्यों है जातीय जनगणना जरूरी?

देश में जातीय जनगणना दो फेज में कराई जाएगी। पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगा। दूसरे चरण की शुरुआत 1 मार्च 2027 से होगी।

भारतJun 05, 2025 / 03:25 pm

Ashib Khan

1947 के बाद से जातीय जनगणना नहीं हुई (Photo-Patrika)

Caste census india: केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) ने जाति जनगणना को मंजूरी दे दी है। सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विणी वैष्णव (Cabinet Minister Ashwini Vaishnav) ने कहा कि पूर्व में कांग्रेस (Congress) की सरकार ने जाति जनगणना (Caste Census) का विरोध किया। 1947 के बाद से जातीय जनगणना नहीं हुई। मोदी सरकार ने आगामी जनगणना में जातीय जनगणना को शामिल करने का फैसला किया है। भारत में आखिरी बार जनगणना साल 2011 में हुई थी, जबकि जाति जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी। 

दो फेज में कराई जाएगी जातीय जनगणना 

देश में जातीय जनगणना दो फेज में कराई जाएगी। पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगा। दूसरे चरण की शुरुआत 1 मार्च 2027 से होगी। पहले चरण में चार राज्यों में जाति जनगणना कराई जाएगी। इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। जातीय जनगणना के साथ-साथ जनसंख्या जनगणना भी कराने का फैसला लिया गया है। इससे जुड़ा नोटिफिकेशन 16 जून 2025 को आधिकारिक राजपत्र में पब्लिश किए जाने की उम्मीद है। जनगणना 2027 देश में  पहली बार डिजिटल जनगणना होगी। 

नीतीश के जातीय सर्वे से बाद उठी देश व्यापी जातीय जनगणना की मांग 

साल 2022 में नीतीश कुमार (nitish kumar) ने जब बिहार में महागठबंधन का हाथ थामा था। उसके बाद उन्होंने बिहार में जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया, लेकिन कोर्ट के दखल के बाद इसे जातीय सर्वे का नाम दे दिया गया। जातीय सर्वे को तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सामाजिक न्याय की जीत कहा। उसके बाद से देश भर में जातीय जनगणना की मांग होने लगी। 

विपक्षी पार्टियों ने की जातीय जनगणना की मांग

समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने भी जतीय जनगणना की मांग की। कांग्रेस भी जातीय जनगणना के समर्थन में उतर आई, जबकि एक वक्त था, जब कांग्रेस ने नारा दिया था, न जात पर-न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2024 में जमकर जातीय जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाया। वह तब से लगातार जातीय जनगणना की बात करते रहे। वामपंथी दलों ने भी जातीय जनगणना कराने के फैसले का स्वागत किया है। सीपीआई (एम) के महासचिव एमए बेबी ने कहा कि जातिगत आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण आवश्यक है।

क्यों पड़ी जातीय जनगणना की जरूरत

देश में जब मंडल आयोग लागू हुआ था, तब कहा गया था कि देश में ओबीसी (OBC) वर्ग की आबादी 52 फीसदी है। इसका आधार 1931 में ब्रिटिश शासनकाल में हुए जातीय जनगणना को माना गया था। अब बीते कुछ सालों से तर्क दिया जा रहा है कि समय के साथ-साथ जातीय जनगणना में बदलाव हुआ है। ओबीसी वर्ग की आबादी बढ़ गई है।  

जातीय जनगणना के समर्थन में तर्क 

जातीय जनगणना का समर्थन करने वाले लोगों का मनाना है कि इससे सरकार को विकास की योजनाओं का खाका तैयार करने में मदद मिलेगी। सरकार देश व राज्य के विकास के लिए कई तरह की नीतियां बनाती है, लेकिन इसमें जातीय जनगणना के पुख्ता प्रमाण न होने से कई बार दिक्कतें आती हैं। जातीय जनगणना हो जाने से विकास का पैमाना दुरुस्त हो जाएगा। साथ ही, जातीय जनगणना से यह साफ हो जाएगा कि कौन सी जाति आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ी हुई है। उन जातियों तक सीधा लाभ पहुंचाने के लिए सरकार नए सिरे से योजना बना सकती है। जातीय जनगणना पिछड़ी हुई जातियों को उचित जगह दिलाने में मदद करेगी।  

जातीय जनगणना के विरोध में तर्क 

जाति जनगणना का विरोध करने वाले लोगों का मानना है कि अगर जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक हो जाएंगे तो जो जातियां पिछड़ी हुई पायी जाएंगी, वह राजनीतिक दलों के सीधे टारगेट पर होंगी। सभी राजनीतिक दल उस जातीय समूह को अपना वोट बैंक बनाने की कवायद में जुट जाएंगे। जिससे समावेशी विकास की अवधारणा धूमिल होगी। साथ ही, जिस जाति की संख्या कम होगी। वह अपनी संख्या बढ़ाने के होड़ में लग सकते हैं। इससे जन्म दर में बढ़ोतरी होगी। इसका सीधा असर परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम पर पड़ेगा। जनसंख्या को काबू में रखने की कवायद को झटका लग सकता है।

ब्रिटिश अधिकारी हटन ने तैयार की थी जातीय जनगणना की रिपोर्ट 

1931 में जातीय जनगणना की जिम्मेदारी ब्रिटिश सरकार ने ICS अधिकारी हटन को सौंपी गई थी। उन्होंने ब्रिटिश शासित भारत के सुदूर पश्चिमी इलाके बलूचिस्तान से पूर्व में बर्मा (म्यांमार) तक जातीय सर्वे किया था। इस दौरान ब्रिटिश राज को कांग्रेस का विरोध भी झेलना पड़ा था। साथ ही ग्रेट डिप्रेशन और राजस्व की कमी का असर भी 1931 के जातीय जनगणना पर पड़ा था। 1931 की जनगणना में सरकारी खजाने पर 48.76 लाख रुपये खर्च हुए थे। हटन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कई इलाकों में अंध विश्वास के कारण लोग अपने घरों की संख्या दर्ज करवाने से मना करते थे। कई जगहों पर गणनाकर्ताओं के साथ पिटाई भी की गई। बस्तर जैसे इलाकों में गणनाकर्ताओं पर बाघ ने हमला कर दिया।  
यह भी पढ़ें

Janganana : जानिए इस बार कैसे होगी Digital Atmagarna

1931 में ब्रिटश भारत की कुल जनसंख्या भारत 35.05 करोड़

हटन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1931 में ब्रिटिश शासित भारत की कुल जनसंख्या 35.05 करोड़ थी। जनसंख्या वृद्धि दर 10.6 फीसदी थी। जनसंख्या का वितरण भी असमान था। भारत का कुल जनसंख्या घनत्व 85 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था। बलूचिस्तान के चगाई में घनत्व 1 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी कम था। देश में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व दक्षिण-पश्चिम तट कोचिन में था। यहां जनसंख्या घनत्व 800 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर था। हटन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में जनसंख्या घनत्व कृषि पर निर्भर थी, जबकि ब्रिटेन में जनसंख्या घनत्व उद्योग पर निर्भर था। 1931 की रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता (14.85 लाख) ब्रिटिश भारत का सबसे घनी आबादी वाला शहर था। दूसरे नंबर पर मुंबई (11.61), तीसरे पर चेन्नई (6.47 लाख) और चौथे पर दिल्ली (4.47 लाख) था। लाहौर और रंगून की आबादी भी 4 लाख से अधिक थी। 

Hindi News / National News / जात-पात और राज: क्यों है जातीय जनगणना जरूरी?

ट्रेंडिंग वीडियो