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पत्रिका की-नोट: संस्कृति के बिना राष्ट्र, मां के बिना संस्कृति नहीं: डॉ. गुलाब कोठारी

Patrika Key Note: राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष पर सूरत में आयोजित पत्रिका के की-नोट कार्यक्रम में उपस्थित राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने अपने विचारों के जरिए व्यक्त किए।

भारतJun 21, 2025 / 11:30 am

Shaitan Prajapat

राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष पर सूरत के सरसाणा के प्लेटिनम हॉल में आयोजन

Patrika Key Note: संस्कृति से ही राष्ट्र का निर्माण होता है और यह संस्कृति एक मां ही निर्माण कर सकती है। संस्कृति का पहला स्टेप ही मां है। जहां मां वहां संस्कृति और जहां मां नहीं, वहां संस्कृति नहीं। संस्कृति और एक स्त्री जो मां के रूप में हो या पत्नी के रूप में हो, आज हमने उसे भुला दिया है और इसी की कीमत आज हम चुका रहे है। यह भाव शुक्रवार को सूरत में आयोजित पत्रिका के की-नोट कार्यक्रम में उपस्थित राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने अपने विचारों के जरिए व्यक्त किए।
राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी की उपस्थिति में सूरत में दो दिवसीय कार्यक्रम शृंखला का आयोजन किया गया। शुक्रवार को सरसाना स्थित चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्लेटिनम हॉल गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की अध्यक्षता में भारत, भारतीय, भारतीयता विषय पर की-नोट कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और अतिथि के तौर पर राज्यसभा सांसद गोविंदभाई धोलकिया और डॉ. अमी याग्निक उपस्थित रहे।
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सूरत के प्रबुद्ध लोगों ने कार्यक्रम को सराहा

राजस्थान पत्रिका की ओर से आयोजित ‘भारत, भारतीय व भारतीयता’ की-नोट कार्यक्रम की सूरत के प्रबुद्ध लोगों ने सराहना की है। शुक्रवार को सरसाणा स्थित चेंबर ऑफ कॉमर्स के प्लेटिनम हॉल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान शहर के सभी आम और खास लोग बड़ी संया में मौजूद रहे। उन्होंने राज्यपाल आचार्य देवव्रत, पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, सांसद गोविंदभाई धोलकिया व समाजसेविका डॉ. अमी याग्निक द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को बड़ी तल्लीनता के साथ सुना। वर्तमान परिप्रेक्क्ष्य में इनके महत्व को समझा। कार्यक्रम में शामिल हुए कई लोगों ने इन विचारों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प व्यक्त किया। कार्यक्रम के बाद भी कई लोगों ने समाज को दिशा देने कार्यक्रम के आयोजन को लेकर पत्रिका की सराहना की।
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संस्कृति का पहला स्टेप मां, जहां मां नहीं वहां संस्कृति नहीं: डॉ. गुलाब कोठारी

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा कि आज की शिक्षा ने समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है। इस शिक्षा ने हमारा बड़ा नुकसान किया है। आज की शिक्षा से मन और आत्मा ओझल हो गई है। हम अर्धनारीश्वर के सिद्धांत को भूल गए हैं। आधुनिक शिक्षा ने स्त्री को जीरो कर दिया है। कभी उसे हम देवी कहते हैं, आज वह भोग का साधन बन गई है। संस्कृति का पहला स्टेप मां (स्त्री) है। जहां मां नहीं, वहां संस्कृति नहीं। मातृत्व को आज की पढ़ाई से ओझल कर दिया है। एक मां ही है, जो छह महीने में जानवर को इंसान बना सकती है, लेकिन इस मां (स्त्री) को आज हमने खिलौना मान लिया है, लेकिन हमें समझना होगा कि स्त्री कभी पुरुष नहीं बन सकती। इस नकल से नुकसान ही होगा। हमारी संस्कृति ऐसी नहीं थी। जब तक हमने यह संस्कृति नहीं होगी, तब तक हममें भारतीयता नहीं होगी।
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भारत, भारतीय, भारतीयता के विचार से पत्रिका राष्ट्र को एक बना रही है: धोळकिया

राज्यसभा सांसद और हीरा उद्यमी गोविंदभाई धोळकिया ने की-नोट कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए कहा कि आज का कार्यक्रम हमारे लिए अनोखा कार्यक्रम है। पत्रिका से मैं दो-तीन सालों से जुड़ा हूं, लेकिन पत्रिका की यात्रा दशकों पहले राजस्थान से शुरू हुई और आज देशभर में पत्रिका की मौजूदगी है। पत्रिका सिर्फ अखबार नहीं है। भारत, भारतीय, भारतीयता जैसे विचारों को लोगों तक पहुंचाकर राष्ट्र के निर्माण का कार्य भी कर रही है। उन्होंने कहा कि विचारों के माध्यम से ही हम राष्ट्र की एकता को मजबूत कर सकते हैं और यह दायित्व एक मीडिया के रूप में पत्रिका समूह बखूबी निभा रहा है। जो बीज पूर्वजों ने बोये हैं, आज वह वटवृक्ष बन चुका है। सूरत में राजस्थानी प्रवासियों के होने के साथ राजस्थान पत्रिका का होना हमारा भाग्य है।

भावार्थ को समझना जरूरी, नहीं तो परिस्थिति बिगड़ जाएगी: CM पटेल

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा, आज सभी विषयों में से भाव निकल गया है। सिर्फ शब्द के रूप में हम पढ़ेंगे और उसका भावार्थ नहीं समझेंगे तो पढ़ाई का कोई अर्थ नहीं। भावार्थ नहीं समझे तो परिस्थिति बिगड़ जाएगी। हमारी संस्कृति ऐसी नहीं है। राष्ट्र की आत्मा यह भाव प्रकट करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से भारत विश्व को प्रेरणा देने वाला देश रहा है, जिसने सदा विश्व में शांति, एकता, सहिष्णुता और परस्पर समान के मूल्यों को प्राथमिकता दी है। हम मानवता के बीच भेदभाव करने वाले नहीं हैं, बल्कि सह अस्तित्व और एकता के मार्ग पर चलने वाले लोग हैं। उन्होंने प्रेम, सद्भाव और भाईचारा बनाए रखते हुए ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को और अधिक सशक्त बनाने का आग्रह करते हुए बताया कि सबका साथ, सबका विकास यह भाव ही है, जिसे हम भारतीयता कहेंगे। समाज के लिए, देश के हित और विकास के लिए कार्य करने का भाव ही हमें भारतीय और हमारी भारतीयता को मजबूत बनाएगा, इसलिए भावार्थ को समझना यह जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए, जिसे हमारी पढ़ाई ने भुला दिया है।

ऋषि-मुनियों की संस्कृति जीवन में लाना होगा: आचार्य देवव्रत

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने की-नोट के विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि हम राष्ट्र की गौरवशाली विरासत के उत्तराधिकारी हैं और अपनी अमूल्य धरोहर पर गर्व करना हमारा कर्तव्य है। भारत केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे प्राचीन वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र और उनके मूल्य समूचे विश्व में मानवता की श्रेष्ठ संस्कृति के वाहक के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। जहां संस्कृति है वह राष्ट्र जिंदा है, जहां सिर्फ आडबर है, वहां मूल्य नहीं होते। संस्कृति और सभ्यता दोनों में अंतर है। सभ्यता जीवन को सुखमय जरूर बनाती है, लेकिन संस्कृति राष्ट्र का आधार है। भारत एक भूखंड है और यह उसका बाहरी स्वरूप है और जो हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन के मूल्य का हमारे विभिन्न ग्रंथों के जरिए हमे दर्शन कराया है, वह हमारी संस्कृति है। भारतीय जीवन दर्शन वेद, उपनिषद, गीता जैसे हमारे ग्रन्थों से होता है, लेकिन आज उन्हें हम भूल रहे हैं । जैसे आत्मा के बिना शरीर नहीं रह सकता, वैसे ही संस्कृति के बिना कोई भी राष्ट्र जिंदा नहीं रह सकता। सत्य, अहिंसा, करुणा, मानवता, दया, प्रेम यह हमारे जीवन मूल्य, संस्कृति है। इन मूल्यों के बिना दुनिया चल ही नहीं सकती। इस संस्कृति को हमारे ऋषि-मुनियों ने जन्म दिया था, जो हम भूल गए है। यदि हमें विश्वगुरु बनना है तो हमारे ऋषि मुनियों की संस्कृति को हमे वापस जीवन में लाना होगा।

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