राफेल मरीन: भारत की नौसैनिक ताकत का नया हथियार
राफेल मरीन फाइटर जेट्स फ्रांस की दसॉ एविएशन कंपनी द्वारा बनाए गए अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं, जो विशेष रूप से विमानवाहक पोतों से संचालित होने के लिए डिजाइन किए गए हैं। यह सौदा भारतीय नौसेना के लिए गेम-चेंजर साबित होगा, खासकर तब जब इसे स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत और मौजूदा आईएनएस विक्रमादित्य के साथ तैनात किया जाएगा। इन विमानों में मेटियोर मिसाइलें, स्कैल्प क्रूज मिसाइलें और एंटी-शिप मिसाइलों की क्षमता होगी, जो लंबी दूरी तक दुश्मन के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर सकती हैं। साथ ही, इनकी स्टील्थ टेक्नोलॉजी और उन्नत रडार सिस्टम इसे हवा से हवा और हवा से जमीन दोनों तरह के मिशनों में बेजोड़ बनाते हैं।
क्यों कांप रहे हैं पाकिस्तान और चीन?
भारत का यह कदम हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है। पाकिस्तान, जो पहले से ही भारत की वायुसेना के 36 राफेल विमानों से दबाव महसूस कर रहा है, अब नौसैनिक मोर्चे पर भी घिर सकता है। दूसरी ओर, चीन, जो हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी नौसैनिक मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, इस डील से सतर्क हो गया है। राफेल मरीन की तैनाती से भारत न केवल अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अपनी पकड़ मजबूत करेगा, बल्कि दक्षिण चीन सागर तक पहुंचने वाली चीनी नौसेना की हरकतों पर भी नजर रख सकेगा। यह सौदा भारत को सामरिक रूप से इतना मजबूत बनाता है कि दोनों पड़ोसी देशों को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ सकता है। डील की अहमियत और समय
63,000 करोड़ रुपये से अधिक की यह डील भारत और फ्रांस के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग का प्रतीक है। इससे पहले 2016 में भारत ने फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदे थे, जो अब वायुसेना का हिस्सा हैं। नौसेना के लिए यह दूसरी बड़ी खरीद है, जो इसे हिंद महासागर में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे सहयोगियों के साथ क्वाड गठबंधन में और मजबूत भूमिका निभाने में सक्षम बनाएगी। सूत्रों के मुताबिक, इस सौदे को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने मंजूरी दे दी है, और अब केवल औपचारिक हस्ताक्षर की प्रक्रिया बाकी है। यह डील ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका ने भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया है, जिससे भारत अपनी रक्षा और आर्थिक नीतियों को और मजबूत करने की दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है।
भारत की रणनीति और भविष्य
राफेल मरीन की खरीद न केवल नौसेना की ताकत बढ़ाएगी, बल्कि स्वदेशी रक्षा उत्पादन को भी प्रोत्साहन देगी। इस सौदे में मेक इन इंडिया पहल के तहत कुछ तकनीकी हस्तांतरण और स्थानीय उत्पादन की शर्तें भी शामिल हो सकती हैं। इसके अलावा, फ्रांस भारत को प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक सपोर्ट भी देगा, जिससे इन विमानों का जल्द से जल्द संचालन शुरू हो सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह डील भारत को क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में एक नई धार देगी, खासकर तब जब चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और सैन्य विस्तार के जरिए प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
पड़ोसियों की चिंता, भारत का आत्मविश्वास
पाकिस्तान और चीन के लिए यह सौदा एक साफ संदेश है कि भारत अब किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं हटेगा। जहां पाकिस्तान की नौसेना पहले से ही भारत के मुकाबले कमजोर है, वहीं चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने के लिए भारत अब पूरी तरह तैयार दिख रहा है। राफेल मरीन की तैनाती से भारत की समुद्री निगरानी और हमले की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। सोशल मीडिया पर लोग इसे “गेम-चेंजर” बता रहे हैं, और कई का कहना है कि “अब भारत पर नजर डालने से पहले दुश्मन थर-थर कांपेंगे।” यह डील न सिर्फ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन है, बल्कि भारत की कूटनीतिक जीत भी है, जो फ्रांस जैसे मजबूत सहयोगी के साथ मिलकर अपने हितों को सुरक्षित कर रहा है। आने वाले दिनों में जब ये विमान भारतीय नौसेना का हिस्सा बनेंगे, तो यह नजारा दुश्मनों के लिए चिंता और भारत के लिए गर्व का सबब होगा।