प्रशासन को अंतिम संस्कार के क्षेत्रों का सीमांकन करने का दिया निर्देश
पीठ ने कहा कि इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता और उसके परिवार की पीड़ा को कम करने के लिए ये निर्देश जारी किए जा रहे हैं। राज्य और स्थानीय अधिकारी परिवार को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान करेंगे। भविष्य में ऐसे विवाद से बचने के लिए प्रशासन ईसाइयों के अंतिम संस्कार के क्षेत्रों का दो महीने में सीमांकन करे। ‘अधिकारी मुद्दे को सुलझाने में रहे विफल’
सुनवाई के दौरान
पीठ ने इस बात पर अफसोस जताया कि गांव में रहने वाले व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के मुताबिक दफनाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जो समस्या गांव स्तर पर हल की जा सकती थी, उसे अलग रंग दिया गया। इस तरह का रवैया धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात करता है।
यह है मामला
पादरी पहले हिंदू आदिवासी थे। उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था। परिजन उनका अंतिम संस्कार कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में करना चाहते थे। ग्रामीणों ने यह कहकर विरोध किया कि गांव में किसी ईसाई को नहीं दफनाया जा सकता, चाहे वह कब्रिस्तान हो या निजी जमीन। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से भी जब पैतृक स्थल पर दफनाने के इजाजत नहीं मिली तो पादरी के बेटे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।