SpaDeX Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने नए साल से पहले एक और बड़ी सफलता हासिल की है। इसरो ने सोमवार रात को स्पैडेक्स मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इसका लक्ष्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करना है। स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) मिशन के तहत दो उपग्रहों को श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी60 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया गया है। रॉकेट ने दोनों उपग्रहों को कुछ दूरी पर एक ही कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया है।
ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट पर इसकी जानकारी देते हुए कहा कि स्पैडेक्स तैनात! स्पैडेक्स उपग्रहों का सफल पृथक्करण भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक और मील का पत्थर है। इससे पहले पोस्ट में लिखा था कि लिफ्टऑफ! पीएसएलवी-सी60 ने स्पैडेक्स और 24 पेलोड को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।
डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाला बना चौथा देश
भारत अब डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बनने की ओर अग्रसर है। यह उपलब्धि भारत को अमेरिका, रूस और चीन की बराबरी पर ला खड़ा करेगी, जिन्होंने इस तकनीक में पहले ही सफलता प्राप्त कर ली है।
इसरो ने स्पैडेक्स को बताया बड़ी उपलब्धि
इसरो ने स्पैडेक्स (Space Docking Experiment) को भारत की अंतरिक्ष तकनीक के लिए एक बड़ी उपलब्धि करार दिया है। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक मील का पत्थर है, जो भविष्य की मानव अंतरिक्ष उड़ानों और उपग्रह सर्विसिंग मिशनों के लिए महत्वपूर्ण तकनीकी क्षमता प्रदान करेगा।
स्पैडेक्स मिशन की मुख्य बातें:
मिशन का उद्देश्य:
ऑर्बिटल डॉकिंग क्षमता विकसित करना, जिससे अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में एक-दूसरे से जुड़ सकें। यह तकनीक भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ानों, उपग्रह ईंधन भरने, मरम्मत और वैज्ञानिक उपकरणों के स्थानांतरण में मदद करेगी।
पीएसएलवी द्वारा प्रक्षेपण:
स्पैडेक्स मिशन को PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) के माध्यम से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। इसमें दो छोटे अंतरिक्ष यान शामिल थे। एसडीएक्स01: जो चेजर (Chaser) की भूमिका निभाता है। एसडीएक्स02: जो टारगेट (Target) की भूमिका निभाता है।
प्रत्येक उपग्रह का वजन लगभग 220 किलोग्राम था। इन दोनों उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में सफलतापूर्वक डॉकिंग के लिए एक साथ जोड़ा गया। गगनयान जैसे मिशनों के लिए यह तकनीक अनिवार्य होगी, जहां अंतरिक्ष में कई मॉड्यूल और यानों को एक साथ जोड़ा जाना जरूरी होगा। उपग्रहों के जीवनकाल को बढ़ाने और अंतरिक्ष में मरम्मत की सुविधा प्रदान करेगी।
अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक (Space Docking Technology) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो अलग-अलग अंतरिक्ष यान, जो पृथ्वी की कक्षा या किसी अन्य खगोलीय पिंड के पास परिक्रमा कर रहे होते हैं, एक दूसरे से जुड़ते हैं। यह तकनीक अंतरिक्ष अभियानों में बेहद महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह कई उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करती है।
डॉकिंग तकनीक के उद्देश्य और महत्व
ईंधन और सामग्री का आदान-प्रदान: डॉकिंग के माध्यम से अंतरिक्ष यान को ईंधन, ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक आपूर्ति भेजी जा सकती है। अंतरिक्ष में लंबे समय तक अभियानों के लिए यह जरूरी है।
अंतरिक्ष यान और स्टेशन का जुड़ाव: जैसे, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अंतरिक्ष यात्री नियमित रूप से डॉकिंग तकनीक का उपयोग करके अपने कैप्सूल को स्टेशन से जोड़ते हैं। मरम्मत और रखरखाव: किसी क्षतिग्रस्त अंतरिक्ष यान की मरम्मत के लिए डॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
वैज्ञानिक अनुसंधान: डॉकिंग के बाद वैज्ञानिक उपकरण और नमूने एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकते हैं।
Hindi News / National News / SpaDeX Mission: ISRO ने न्यू ईयर से पहले रचा इतिहास, डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाला बनेगा चौथा देश