नए बोर्ड में ये चेहरे हुए शामिल
नए बोर्ड में सात सदस्य शामिल किए गए हैं, जिनमें तीन सैन्य सेवाओं से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। इनमें पूर्व पश्चिमी एयर कमांडर एयर मार्शल पी.एम. सिन्हा, पूर्व दक्षिणी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह और रियर एडमिरल मोंटी खन्ना शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय पुलिस सेवा (IPS) से सेवानिवृत्त दो सदस्य राजीव रंजन वर्मा और मनमोहन सिंह को भी बोर्ड में जगह दी गई है। सातवें सदस्य के रूप में भारतीय विदेश सेवा (IFS) से सेवानिवृत्त बी. वेंकटेश वर्मा को शामिल किया गया है। यह पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और वर्तमान संकट से निपटने के लिए सरकार की गंभीरता को दर्शाता है। पहलगाम हमले ने देशभर में आक्रोश फैला दिया है, जिसमें निहत्थे नागरिकों और पर्यटकों को निशाना बनाया गया था। इस हमले के बाद भारत ने साफ कर दिया है कि वह हमलावरों को सजा देगा, और पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारत अगले 24-36 घंटों में सैन्य कार्रवाई कर सकता है। ऐसे में NSAB का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। बोर्ड के नए सदस्यों का अनुभव और विशेषज्ञता सरकार को रणनीतिक सलाह देने में अहम भूमिका निभाएगी, खासकर जब देश एक संवेदनशील और तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है। यह कदम न केवल सुरक्षा तैयारियों को मजबूत करने की दिशा में है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को और सशक्त करने का संदेश भी देता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड क्यों अहम?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर सरकार को सलाह देने का काम करता है। यह बोर्ड राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और प्रधानमंत्री को रणनीतिक सुझाव देता है, ताकि देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से जुड़े खतरों का आकलन और समाधान किया जा सके। बोर्ड में आमतौर पर रक्षा, खुफिया, विदेश सेवा और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं, जो अपने अनुभव के आधार पर नीतिगत सिफारिशें करते हैं। NSAB का मुख्य काम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर गहन विश्लेषण करना, खतरों की पहचान करना और सरकार को दीर्घकालिक रणनीतियां बनाने में मदद करना है। यह बोर्ड आतंकवाद, सीमा सुरक्षा, साइबर खतरों, और क्षेत्रीय तनाव जैसे मुद्दों पर ध्यान देता है। इसके अलावा, यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों का आकलन कर सरकार को सलाह देता है, ताकि भारत अपनी रक्षा और कूटनीतिक नीतियों को मजबूत कर सके। मौजूदा भारत-पाक तनाव के संदर्भ में, NSAB की भूमिका और भी अहम हो जाती है, क्योंकि यह सरकार को सैन्य और कूटनीतिक रणनीतियों पर सलाह देगा, ताकि स्थिति को प्रभावी ढंग से संभाला जा सके।
आलोक जोशी को क्यों बनाया अध्यक्ष?
आलोक जोशी भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व प्रमुख हैं, जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया मामलों में गहरी विशेषज्ञता हासिल है। जोशी ने 2012 से 2014 तक RAW के प्रमुख के रूप में कार्य किया और अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण ऑपरेशनों का नेतृत्व किया। वह एक अनुभवी खुफिया अधिकारी हैं, जिन्होंने भारत की सुरक्षा को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। जोशी के नेतृत्व में RAW ने कई बड़े ऑपरेशनों को अंजाम दिया, जिनमें से कुछ बेहद संवेदनशील और गोपनीय थे। उनके कार्यकाल के दौरान, 2013 में म्यांमार सीमा पर उग्रवादी संगठनों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन किया गया था, जिसमें भारत ने म्यांमार की सेना के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी ठिकानों को नष्ट किया। इसके अलावा, जोशी ने पाकिस्तान से जुड़े आतंकी नेटवर्क पर नजर रखने और उन्हें कमजोर करने के लिए कई खुफिया अभियान चलाए। उनके कार्यकाल में RAW ने विदेशों में भारत विरोधी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए कई सफल ऑपरेशन किए, खासकर दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में।
जोशी की रणनीतिक सोच और खुफिया क्षेत्र में उनके अनुभव को देखते हुए, उनकी नियुक्ति को भारत-पाक तनाव के बीच एक सोचा-समझा कदम माना जा रहा है। उनकी विशेषज्ञता न केवल आतंकवाद से निपटने में, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और कूटनीति को मजबूत करने में भी सरकार के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। जोशी का अनुभव और नेतृत्व इस संकटपूर्ण समय में NSAB को एक नई दिशा दे सकता है, जिससे भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को और सशक्त कर सके।
जैसे-जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का यह पुनर्गठन देश की सुरक्षा तैयारियों और रणनीतिक दृष्टिकोण को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आलोक जोशी के नेतृत्व में यह बोर्ड आने वाले दिनों में सरकार को महत्वपूर्ण सलाह देगा, ताकि भारत इस संकट का सामना मजबूती से कर सके।