तीन प्रयोगशालाओं ने की पुष्टि
सिवागलाई में मिले नमूनों की जांच अमरीका की बीटा एनालिटिक्स, अहमदाबाद की भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला और लखनऊ की बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज जैसी बड़ी शोध प्रयोगशालाओं में की गई है। तीनों प्रयोगशालाओं ने इन वस्तुओं की अवधि एक ही बताई है।
नई खोज बदल देगी सोच : प्रो: चक्रवर्ती
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई पुरातत्व के एमेरिटस प्रोफेसर दिलीप कुमार चक्रवर्ती ने कहा, दुनिया में पहली बार पिघले हुए लोहे की तारीख तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य तक बताई गई है। यह न केवल भारतीय संदर्भ में, बल्कि दुनिया के पुरातत्व के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण खोज है। उन्होंने आगे कहा, पहले माना जाता था कि भारत में लोहे का इस्तेमाल केवल 600 साल ईसा पूर्व से शुरू हुआ था। यह नई खोज इस सोच को पूरी तरह बदल देती है।
तब उत्तर भारत में था कांस्य युग
विशेषज्ञों का मानना है कि साक्ष्य बताते हैं कि उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के समय दक्षिण भारत में एक उन्नत सभ्यता मौजूद थी। तब लोग लोहे का इस्तेमाल करते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब उत्तर भारत में स्थित सांस्कृतिक क्षेत्रों में तांबे के उपयोग का काल (कांस्य युग) था, तब दक्षिण भारत का शायद लौह युग का प्रवेश हो गया हो।
थूथुकुडी में भी मिले अवशेष
इस क्षेत्र के थूथुकुडी जिले के आदिचनल्लूर में भी एक अन्य खोज हुई है। यहां 2517 ईसा पूर्व का एक लोहे की वस्तु से जुड़ा एक चारकोल का नमूना मिला है। जबकि कर्नाटक में ब्रह्मगिरी और हैदराबाद के पास गाचीबोवली जैसे स्थलों से 2140 ईसा पूर्व और 2200 ईसा पूर्व के लौह युग के अवशेष मिले हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री क्या बोले
गुरुवार को के राजन और आर शिवनाथन के किए गए अध्ययन ‘लोहे की प्राचीनता तमिलनाडु से हाल की रेडियोमेट्रिक तिथियां’ को जारी करते हुए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा, ‘हमने वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया है कि तमिल परिदृश्य में 5,300 साल पहले लोहा आया था। लौह युग की शुरुआत तमिल भूमि से हुई थी।’