पिछली बार भी इसी तरह के निर्देशों पर रोक लगी थी
याचिका में यह भी बताया गया है कि पिछले साल इसी तरह के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट पहले ही रोक चुका है। तब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की सरकारों ने कांवड़ यात्रा के दौरान ढाबों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इसे रोकते हुए कहा था कि यह भेदभावपूर्ण है।
पहचान के मामले में यूपी सरकार का तर्क
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह आदेश इसलिए दिया गया है ताकि कांवड़ यात्रा के दौरान शांति बनी रहे और पारदर्शिता बनी रहे। सरकार का कहना है कि कांवड़ यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु सड़कों पर निकलते हैं, इसलिए हर तरह की सतर्कता बरती जा रही है।
याचिकाकर्ताओं का दावा, पहचान उजागर करना निजता का हनन
अपूर्वानंद और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि क्यूआर कोड लगाने से दुकान मालिकों की पहचान, धर्म और जाति उजागर होती है। इससे उनके साथ भेदभाव होने की संभावना बढ़ जाती है। याचिका में कहा गया है कि यह आदेश संविधान में दिए गए निजता के अधिकार के खिलाफ है।
सावन में लाखों श्रद्धालु करते हैं कांवड़ यात्रा
सावन के महीने में हर साल लाखों लोग कांवड़ यात्रा करते हैं। वे हरिद्वार, गंगोत्री और अन्य स्थानों से गंगा जल लाकर शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। इस दौरान कई श्रद्धालु मांसाहार नहीं करते और प्याज-लहसुन तक नहीं खाते। इसी धार्मिक भावना को देखते हुए कुछ समूह मांग करते हैं कि यात्रा मार्ग पर शुद्ध शाकाहारी भोजन ही परोसा जाए।
इनका कथन भी बहुत अहम है
याचिकाकर्ता शिक्षाविद अपूर्वानंद ने कहा, यह सिर्फ एक क्यूआर कोड नहीं, पहचान के आधार पर विभाजन की नीति है। कोर्ट का दखल जरूरी है ताकि संविधान की मूल भावना बचे। मेरठ के स्थानीय ढाबा मालिक का कहना है, इस तरह की प्रोफाइलिंग से व्यवसाय करने का मौलिक अधिकार खतरे में पड़ता है। यह सिर्फ धार्मिक यात्रियों की सुविधा नहीं, समाज के कुछ वर्गों को चिन्हित करने की कोशिश है। वे कहते हैं,अगर सब कुछ वैध है तो नाम बताने में क्या परेशानी? पर हमें डर है कि ये कदम आगे चलकर हमें निशाना बना सकता है।”
अब आगे क्या हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को इस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें यूपी सरकार से पूछा जाएगा कि उसने ऐसा आदेश क्यों दिया। क्या निर्देश रद्द होंगे?
कोर्ट की पिछली टिप्पणियों को देखते हुए यह संभव है कि आदेश पर अस्थायी रोक लगाई जाए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया भी संभव
यह मामला धार्मिक यात्रा, शासन की पारदर्शिता और अल्पसंख्यकों की पहचान से जुड़ा है, इसलिए आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों की ओर से बयानबाज़ी तेज़ हो सकती है।