धनखड़ का यह कदम क्या सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से लिया गया सिर्फ व्यक्तिगत निर्णय है या फिर किसी बड़ी राजनीतिक योजना का हिस्सा। क्या सत्ता के गलियारों में कोई नई सियासी बिसात बिछने जा रही है? इस तरह के कई सवाल है, जिनके जवाब हमें आने वाले दिनों में मिलेंगे।
राज्यसभा में हुए घटनाक्रम से कई संदेह पैदा हो रहे हैं। यही वजह है कि धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की कहानियों को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। बहरहाल, सियासी हलचल से कुछ सवालों की गूंज सत्ता के गलियारों में सुनाई दे रही है, जिनके जवाबों से धनखड़ के इस्तीफे के पीछे का राज सामने आ सकता है।
1- न्यायपालिका के मामलों में चेहरा बनना चाहते थे?
ऐसा बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव लोकसभा में लाना चाहती थी। इसके लिए विपक्ष से बातचीत की गई थी। दूसरी ओर, न्यायपालिका को लेकर पिछले कुछ महीनों में धनखड़ ने मुखर होकर मोर्चा खोल रखा था। वह जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके थे। ऐसे में लगता था कि धनखड़ उपराष्ट्रपति के साथ-साथ अधिवक्ता होने के नाते जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई का चेहरा बनना चाहते थे।
यही वजह है कि विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस ने इसका सियासी फायदा उठाते हुए राज्यसभा में भाजपा को भनक लगे बिना जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव रख दिया। इस पर धनखड़ ने विपक्षी सांसदों के नोटिस मिलने की जानकारी सदन को दी।
साथ ही उन्होंने नोटिस की प्रक्रिया के बारे में बताया और कानून मंत्री को यह पुष्टि करने के लिए कहा कि क्या इस तरह का नोटिस निचले सदन लोकसभा में भी दिया गया है।
धनखड़ के संकेत साफ थे कि वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया राज्यसभा में शुरू होना चाहिए। इससे सरकार को मिलने वाले क्रेडिट को विपक्ष ने झटक लिया। यह सरकार की अचानक नाराजगी बड़ा कारण नजर आ रहा है।
2- भारतीय जनता पार्टी के भीतर चल रही थी खटपट?
राज्यसभा के नेता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा है। राज्यसभा के सभापति के इस्तीफे के करीब 24 घंटे बीतने के बावजूद नड्डा ने धनखड़ के इस्तीफे पर दो शब्द भी सोशल मीडिया पर नहीं लिखा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर धनखड़ के इस्तीफे के बाद उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना का पोस्ट किया है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री के पोस्ट को रिपोस्ट किया है।
इसी तरह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेताओं ने भी धनखड़ के कार्यकाल और इस्तीफे पर कुछ पोस्ट नहीं किया। यह घटनाक्रम भी अंदरूनी नाराजगी के संकेत की ओर इशारा कर रहे हैं।
3- कांग्रेस को अच्छे लगने लगे थे ‘भाजपा के शशि थरूर’
पिछले साल धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली कांग्रेस को अब धनखड़ अच्छे लग रहे हैं। यह कांग्रेस की उसी तरह की राजनीतिक रणनीति है, जिस तरह की भाजपा शशि थरूर के लिए अपनाती है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश का कहना है कि सोमवार को जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बीएसी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। इसके कुछ देर बाद धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफा दिया।
हमें इसका मान रखना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई।
मौजूदा ‘दो व्यक्तियों की सरकार’ के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की। वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे। धनखड़ का इस्तीफा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है। साथ ही, यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था। अब किसानपुत्र को सम्मानजनक विदाई भी नहीं दी जा रही है।
4- भाजपा देख रही भविष्य के सियासी गुणा भाग?
सियासी गलियारों में इस इस्तीफे के पीछे भाजपा को भविष्य की रणनीति भी हो सकती है। भाजपा अपने सियासी गुणा भाग लगाकर अब इस पद पर किसी नेता को बैठाना चाहेगी। वहीं अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव तक राज्यसभा का संचालन उपसभापति हरिवंश करेंगे, जो बिहार के रहने वाले हैं। बिहार के एक नेता का उच्च सदन की कार्यवाही को चलाना एनडीए के लिए चुनावी नजरिये से फायदेमंद हो सकता है।
गौरतलब है कि कुछ ही महीनों बाद बिहार में चुनाव होने वाले हैं। उधर, धनखड़ की भूमिका बदलने की अटकलें हैं, जिसकी संभावना बेहद कम है।