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जब सुप्रीम कोर्ट के लिए सिख जज खोजने चंडीगढ़ चले गए थे कानून मंत्री

कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जॉयमाल्या बागची अब पश्चिम बंगाल में नहीं रहेंगे। कॉलेजियम की सिफारिश के बाद सरकार ने भी उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की मंजूरी दे दी है।

भारतMar 11, 2025 / 05:05 pm

Vijay Kumar Jha

सुप्रीम कोर्ट

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कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जॉयमाल्या बागची अब पश्चिम बंगाल में नहीं रहेंगे। कॉलेजियम की सिफारिश के बाद सरकार ने भी उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की मंजूरी दे दी है। जस्टिस बागची जून 2011 से जज हैं। वह 11 महीने (4 जनवरी से 8 नवम्बर, 2021) को छोड़ कर पूरे समय कलकत्ता हाई कोर्ट में ही रहे हैं। उनका वहां रहना सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति के कई कारणों में से एक अहम कारण रहा। देश में वरीयता क्रम में 11वें नंबर पर होने के बावजूद उन्हें चुना गया।
6 मार्च को कॉलेजियम ने उनकी नियुक्ति पर जो बयान जारी किया, उसमें बताया गया कि 18 जुलाई, 2013 को बतौर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अल्तमस कबीर के रिटायर होने के बाद से सुप्रीम कोर्ट में कलकत्ता हाई कोर्ट से कोई मुख्य न्यायाधीश नहीं बना है। जस्टिस बागची 2031 में करीब चार महीने के लिए सीजेआई बनेंगे। कॉलेजियम के मुताबिक जस्टिस बागची को चुनते हुए यह तथ्य भी ध्यान में रखा कि अभी सुप्रीम कोर्ट में कलकत्ता हाई कोर्ट से केवल एक ही जज है।
जाहिर है, जजों की नियुक्ति में क्षेत्र भी एक अहम कारक होता है। कॉलेजियम इसे सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग हाईकोर्ट को उचित प्रतिनिधित्व देने के तौर पर देखता है। यह कोई नई बात नहीं है। क्षेत्र ही नहीं, जाति, धर्म और यहां तक कि लिंग के आधार पर विविधता बनी रहे, इसका ध्यान जजों की नियुक्ति में रखा जाता रहा है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या इस क्रम में प्रतिभा और वरिष्ठता से भी समझौता किया जाता है?

वरिष्ठ वकील अभिनव चंद्रचूड़ की किताब ‘सुप्रीम व्हिप्सर्स’ (पेंगुइन प्रकाशन) में ‘क्राइटेरिया फॉर सेलेक्टिंग जजेस’ नाम से एक अध्याय है। इसमें जजों की नियुक्तियों से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जिनसे काफी कुछ समझा जा सकता है। चंद्रचूड़ लिखते हैं कि 1970 और 1980 के दशक में सरकार विरोधी विचारधारा वाले जजों को सुप्रीम कोर्ट में नहीं लाया जाता था। उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएन चंदूरकर का उदाहरण देते हुए लिखा है कि आरएसएस नेता गोलवलकर की अंतिम यात्रा में जाने की वजह से इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति नहीं होने दी।
जस्टिस अहमदी के हवाले से किताब में बताया गया है कि दिसंबर 1998 में जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था तो इसका एक कारण उनका गुजरात हाईकोर्ट का जज होना भी था। उनकी नियुक्ति से पहले दस साल तक सुप्रीम कोर्ट में गुजरात का कोई जज नहीं था।
मार्च 1983 में ओडिशा हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आए जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने तो और बेबाकी से अपनी बात रखी थी। उनसे पहले तीस साल तक सुप्रीम कोर्ट में ओडिशा का कोई जज नहीं था। इतना लंबा अंतराल होने का कारण पूछे जाने पर जस्टिस मिश्रा ने बेबाकी से कहा था कि ओडिशा सरकार के केंद्र से रिश्ते मजबूत नहीं थे और ओडिशा जैसे छोटे राज्यों की तुलना में बड़े राज्यों को ज्यादा तरजीह मिलती है।
अभिनव चंद्रचूड़ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्र ही नहीं, धर्म के आधार पर भी नियुक्तियां हुआ करती थीं। उनके मुताबिक वहां शुरू से ही एक मुस्लिम जज रखा ही गया है। 1950 में पंडित नेहरू ने बॉम्बे हाई कोर्ट से जस्टिस एमसी छागला को सुप्रीम कोर्ट लाने की कोशिश की ताकि मुस्लिम चीफ जस्टिस बन सके। 1960 के दशक में जब मानसिक बीमारी के चलते एसजे इमाम चीफ जस्टिस नहीं बन सके और उनकी जगह पीबी गजेंद्रगाड़कर मुख्य न्यायाधीश बने तो बताया जाता है कि नेहरू ने इस बात पर चिंता जताई थी कि पाकिस्तान को लग सकता है कि एक मुसलमान जज की वरिष्ठता की अनदेखी की गई।
जस्टिस बीपी सिन्हा के इंटरव्यू के हवाले से किताब में कहा गया है कि अपने समकक्ष जजों से योग्यता में कमतर होने के बावजूद जस्टिस गुलाम हसन की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति इसीलिए हुई थी क्योंकि वह मुसलमान थे।
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दिसम्बर 1971 में जस्टिस एम हमीदुल्ला की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का आधार भी उनका मुस्लिम होना बताया गया। आरएस पाठक उनसे सीनियर थे, फिर भी हमीदुल्ला को ही चुना गया था।

मुस्लिम ही नहीं, एक मौका ऐसा भी आया जब सिख जज को खास तौर पर खोजा गया। किताब में जस्टिस आरएस सरकारिया की नियुक्ति का दिलचस्प किस्सा बयान किया गया है। इसके मुताबिक 1973 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और लोकसभा अध्यक्ष जीएस ढिल्लन केन्द्रीय कानून मंत्री एचआर गोखले और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले। यह मुलाक़ात केवल यह आग्रह करने के लिए थी कि सुप्रीम कोर्ट में किसी सिख को मौका दिया जाए। गोखले और गांधी को आग्रह पसंद आया।
गोखले सिख जज की तलाश में चंडीगढ़ गए। वहां सभी जजों के साथ खाना खाया। रात को पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों ने कानून मंत्री (गोखले) के सम्मान में भोज दिया। इसमें हाई कोर्ट के जजों को भी बुलाया गया। इसके बाद गोखले चले गए। इस बीच नाम को लेकर अटकलें लगती रहीं। कुछ दिन बाद जैल सिंह की ओर से सरकरिया को फोन आया। दोनों की गुप्त मुलाकात हुई। इस मुलाक़ात में जैल सिंह ने सरकरिया के सामने सुप्रीम कोर्ट का जज बनने कि पेशकश रखी। सरकारिया ने शुरू में दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन बाद में उनके सहयोगी ने कहा कि पेशकश मान लेनी चाहिए। तब सरकारिया ने पत्नी से बात की। पत्नी ने भी हां कहा। इसके बाद सरकारिया ने जैल सिंह से संपर्क साधा। वह दिल्ली में थे। वह इंदिरा गांधी को यह बताने के लिए उनके पास जाने वाले थे कि सरकारिया ने मना कर दिया है। फिर गोखले ने चीफ जस्टिस एएन रे से फोन पर सरकारिया का संपर्क कराया और इसके बाद उनकी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हो गई।

अभी सुप्रीम कोर्ट में किस हाई कोर्ट से आए कितने जज

इस समय सुप्रीम कोर्ट में बंबई, इलाहाबाद और पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालयों से आए जज सबसे ज्यादा (तीन-तीन) हैं। कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, मद्रास और मध्य प्रदेश से आए जजों की संख्या दो-दो है, जबकि छत्तीसगढ़, पटना, राजस्थान, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, गौहाटी, तेलंगाना, कलकत्ता, केरल, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर से एक-एक जज आए हैं। दो जज बार काउंसिल से लाए गए हैं।

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