महाभियोग प्रस्ताव क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज को केवल महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है, जब वह दुराचार (misbehaviour) या अक्षमता (incapacity) का दोषी पाया जाए। यह प्रक्रिया संसद के जरिए ही पूरी की जाती है और इसमें न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका – तीनों की भूमिका होती है।कौन ला सकता है महाभियोग प्रस्ताव?
महाभियोग प्रस्ताव संसद में सांसदों के एक समूह द्वारा लाया जाता है। —लोकसभा में कम से कम 100 सांसद—राज्यसभा में कम से कम 50 सांसद इनमें से किसी भी सदन में यदि इतनी संख्या में सांसद प्रस्ताव लाते हैं, तो सभापति (राज्यसभा) या अध्यक्ष (लोकसभा) इसे स्वीकार कर सकते हैं। इसके बाद शुरू होती है जांच की प्रक्रिया।
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प्रक्रिया कैसे होती है?
प्रस्ताव की सूचना:—100 या 50 सांसदों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव की नोटिस दी जाती है। जांच समिति का गठन:
सभापति या अध्यक्ष द्वारा तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है जिसमें होते हैं:
—सुप्रीम कोर्ट का एक न्यायाधीश
—एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
—एक प्रमुख न्यायविद (jurist)
—समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और रिपोर्ट देती है। मतदान की प्रक्रिया:
अगर समिति दोष सिद्ध करती है, तो प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
इसे पास करने के लिए चाहिए:
—दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत
—और कुल सदस्य संख्या के 50% से अधिक सदस्यों की सहमति
यदि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति जज को पद से हटाने का आदेश देते हैं।
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क्या इसमें जेल की सजा भी हो सकती है?
महाभियोग की प्रक्रिया केवल पद से हटाने तक सीमित होती है। यदि किसी जज पर भ्रष्टाचार या आपराधिक मामला भी बनता है, तो उसे लेकर अलग से जांच और मुकदमा चलाया जा सकता है। जेल की सजा तभी हो सकती है जब आपराधिक अदालत में दोष सिद्ध हो जाए।जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में यदि कैश की जब्ती से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप साबित होते हैं, तो सीबीआई या ईडी जैसी एजेंसियां जांच कर सकती हैं, और मामला अदालत में भी जा सकता है।
अब तक किसी जज को नहीं हटाया गया
यह जानना दिलचस्प है कि भारत में अब तक किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है। हालांकि कुछ मामलों में महाभियोग प्रस्ताव लाए गए लेकिन या तो वे पास नहीं हो सके या जज ने खुद इस्तीफा दे दिया।—जस्टिस वी. रमास्वामी (1993): महाभियोग लोकसभा में पास नहीं हो पाया।
—जस्टिस सौमित्र सेन और पी.डी. दिनाकरण: महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने के बाद इस्तीफा दे दिया।