पहले जानिए पूरा मामला क्या है?
दरअसल, ACB ने अप्रैल 2025 में दर्ज की गई एफआईआर में दावा किया है कि अरविंद केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में दिल्ली के स्कूलों में 12,748 कक्षों के निर्माण में भारी वित्तीय अनियमितताएं हुईं। इस परियोजना में कुल 2,892 करोड़ रुपये खर्च हुए। जिससे एक कक्षा की लागत 24.86 लाख रुपये तक पहुंच गई। जबकि सरकारी मानकों के अनुसार यह लागत लगभग पांच लाख रुपये होनी चाहिए थी। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) का आरोप है कि यह निर्माण कार्य ऐसे 34 ठेकेदारों को सौंपा गया। जिनमें से अधिकांश AAP से कथित रूप से जुड़े थे। यही नहीं, निर्माण में जिस अर्ध-स्थायी ढांचे (Semi-Permanent Structure -SPS) का उपयोग किया गया। उसकी अनुमानित उपयोग अवधि 30 साल है, लेकिन इसकी लागत पक्के आरसीसी (Reinforced Cement Concrete) ढांचे जितनी ही बताई गई। जिसकी आयु लगभग 75 साल होती है। ऐसे में लागत और गुणवत्ता में स्पष्ट असमानता देखी गई।
जांच में खुली घोटाले की परतें
ACB के अनुसार, परियोजना की शुरूआत में अनुमानित लागत 860.63 करोड़ रुपये थी। जो बाद में 17% से बढ़कर 90% तक अधिक हो गई। इस बढ़ी हुई लागत में से लगभग 205 करोड़ रुपये ‘ज्यादा विनिर्देशों’ के चलते सीधे खर्च हुए, जो मूल निविदा मूल्य का 24% हिस्सा थे। लेकिन सीवीसी (Central Vigilance Commission) के दिशा-निर्देशों के अनुसार ऐसी बढ़ोतरी पर नई निविदा आमंत्रित की जानी चाहिए थी, जो नहीं की गई। इतना ही नहीं, कुछ स्कूलों में करीब 42.5 करोड़ रुपये का कार्य बिना उचित निविदा प्रक्रिया अपनाए पुराने अनुबंधों के आधार पर कराया गया। ACB ने यह भी बताया कि इस परियोजना में सलाहकार और वास्तुकारों की नियुक्ति भी बिना पारदर्शी प्रक्रिया के की गई।
CVC रिपोर्ट के खुलासे से सियासी पारा हाई
ACB के अनुसार, CVC के मुख्य तकनीकी परीक्षक (CTE) ने अपनी रिपोर्ट में CPWD नियमावली 2014, GFR 2017 और CVC गाइडलाइंस के गंभीर उल्लंघन की ओर इशारा किया था। लेकिन यह रिपोर्ट लगभग तीन साल तक दबाकर रखी गई। जिससे संदेह और भी गहरा हो गया। इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में भी तूफान खड़ा कर दिया है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने मांग की है कि ACB इस मामले में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भूमिका की भी जांच करे। भाजपा नेताओं हरीश खुराना, कपिल मिश्रा और नीलकंठ बख्शी की शिकायतों को आधार बनाकर यह जांच शुरू हुई है। ACB ने स्पष्ट किया है कि यह जांच केवल दो नेताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि AAP से जुड़े अज्ञात अधिकारियों, ठेकेदारों और अन्य लोगों की भूमिका की भी गहनता से जांच की जाएगी। ACB का कहना है कि पूरे मामले में मिलीभगत और साजिश की परतें खुलने पर ही दोषियों को कानून के शिकंजे में लाया जाएगा। यह मामला सिर्फ एक घोटाले की जांच नहीं, बल्कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा प्रणाली और उसमें पारदर्शिता की साख पर भी सवाल खड़े करता है। अब देखना होगा कि जांच में क्या निष्कर्ष निकलते हैं और इसके राजनीतिक और कानूनी परिणाम क्या होंगे?
आम आदमी पार्टी ने बताया राजनीतिक साजिश
दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने स्कूलों में दो हजार करोड़ रुपये के घोटाले पर कहा कि यह राजनीतिक साजिश है। स्कूलों में कोई घोटाला नहीं किया गया। AAP ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में थी। तब भाजपा ने एसीबी की शक्तियां छीनकर उसे कमजोर कर दिया। अब उसी कमजोर संस्था का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी के नेताओं के खिलाफ हो रहा है। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि भाजपा सिर्फ AAP नेताओं को निशाना बना रही है। ताकि वह अपने झूठ के दम पर सरकार चला सके।