यह मामला उन याचिकाओं से संबंधित था जिनमें उम्मीदवारों ने 2021 में गैर-शिक्षण पदों जैसे कि पुस्तकालय सहायक और प्रयोगशाला सहायक के लिए विज्ञापन जारी किए थे। जुलाई 2023 में दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रयोगशाला सहायक पद के लिए 151 उम्मीदवारों और पुस्तकालय सहायक के लिए 108 उम्मीदवारों की मेरिट के आधार पर चयन सूची प्रकाशित की थी। इसके बाद 18 अगस्त 2023 को, DU ने उन उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किया, जो लिखित परीक्षा में सफल हुए थे, और उन्हें 15 दिनों के भीतर जॉइन करने के लिए कहा था।
दूर-दराज क्षेत्र में रहने वालों को समय से नहीं मिला नियुक्ति पत्र
चूंकि कई उम्मीदवार दूर-दराज के क्षेत्रों में रहते थे, ऐसे में उन्हें नियुक्ति पत्र प्राप्त करने में पांच से सात दिन लग गए। 24 अगस्त 2023 तक केवल 9 प्रयोगशाला सहायक और 15 पुस्तकालय सहायक ने जॉइन किया। अगले ही दिन, DU ने इन उम्मीदवारों की नियुक्ति को रोक दिया और 29 अगस्त 2023 को एक और अधिसूचना जारी की। जिसमें कहा गया कि चयन प्रक्रिया की पुनः जांच की जा रही है और सभी उम्मीदवारों की नियुक्ति को स्थगित किया गया है। जिसमें वे भी शामिल थे जिन्होंने पहले रिपोर्ट किया था। इसके परिणामस्वरूप कई उम्मीदवारों ने पहले की नौकरियों से इस्तीफा दे दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट में विश्वविद्यालय ने दी ये दलील
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दिल्ली विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि उम्मीदवारों के साथ की गई अनौपचारिक बातचीत के दौरान यह पाया गया कि उनकी क्षमता उन उच्च अंकों से मेल नहीं खाती थी जो उन्होंने लिखित परीक्षा में प्राप्त किए थे। जिसके बाद उनकी नियुक्ति स्थगित कर दी गई। विश्वविद्यालय का यह कहना था कि यह शंका उत्पन्न हुई कि उम्मीदवारों ने अनुचित साधनों का इस्तेमाल किया था।
इसपर न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह अनौपचारिक बातचीत करने वाले अधिकारी कौन थे। न्यायमूर्ति ने कहा, “यह समझ में नहीं आता कि केवल नौ उम्मीदवारों की कथित अयोग्यता को देखकर यह निष्कर्ष कैसे निकाला जा सकता है कि अन्य सभी उम्मीदवारों की भी अयोग्यता है।” उन्होंने यह भी कहा कि परीक्षा में किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी या अनुचित साधनों का कोई आरोप नहीं था और यह नियुक्ति के लिए दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया के दौरान किए जाने वाले अंतिम कार्य के अलावा कुछ और नहीं था।
हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय को लगाई फटकार
न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि अनौपचारिक बातचीत के अभ्यास को बढ़ावा देने में खतरा है, क्योंकि इससे चयन प्रक्रिया में पक्षपात, मनमानी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह की अनौपचारिक बातचीत से चयन प्रक्रिया को गैर-निष्पक्ष और अव्यावहारिक बना दिया जाएगा। जिससे यह संभव हो सकता है कि किसी उम्मीदवार को अनौपचारिक बातचीत के आधार पर नकारा कर दिया जाए। भले ही उसने परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया हो। न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय को आदेश दिया कि वह उम्मीदवारों के दस्तावेज़ सत्यापन की शेष प्रक्रियाओं को शीघ्र पूरा करे और नियुक्ति के बाद उन सभी उम्मीदवारों को उनके अधिकारों और लाभों का पूर्ण रूप से लाभ मिले। साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय की यह गलत और मनमानी कार्रवाई उम्मीदवारों के जीवन और करियर के लिए गंभीर नुकसान का कारण बनी है, क्योंकि कई याचिकाकर्ताओं ने अपनी पूर्व नौकरी छोड़ दी थी और कई अब अन्य परीक्षाओं में बैठने के लिए उम्र के अयोग्य हो गए हैं।