धनखड़ ने यह बातें उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में आयोजित भारतीय विश्वविद्यालय संघ की ओर से आयोजित कुलपतियों के 99वें वार्षिक अधिवेशन एवं राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कही। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय केवल डिग्रियां देने के लिए नहीं हैं। उनकी डिग्रियों का महत्व होना चाहिए। विश्वविद्यालय विचारों के तीर्थ और नवाचार के केंद्र बनें। ऐसे संस्थान बने, जो बड़े बदलाव की उत्पत्ति करें। इस दिशा में कुलपतियों की विशेष भूमिका है। विश्वविद्यालयों में असहमति, संवाद, चर्चा और वाद-विवाद के लिए खुला वातावरण होना चाहिए। यही मस्तिष्क को सक्रिय करता है। अभिव्यक्ति, वाद-विवाद, अनंत वाद, ये हमारे लोकतंत्र और संस्कृति के अभिन्न तत्व हैं। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्री सुनील कुमार शर्मा, एमिटी एजुकेशन एंड रिसर्च ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अशोक के. चौहान, एआईयू के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाठक, महासचिव डॉ. पंकज मित्तल समेत अन्य अतिथि भी उपस्थित रहे।
हमें ग्रीनफील्ड संस्थानों की ओर बढऩा होगा
धनखड़ ने कहा कि हमारे कई संस्थान अब भी ब्राउनफील्ड मॉडल पर कार्य कर रहे हैं। हमें ग्रीनफील्ड संस्थानों की ओर बढऩा चाहिए, ताकि उच्च शिक्षा का संतुलित और न्यायसंगत विस्तार हो सके। फिलहाल महानगरों और टियर-1 शहरों में संस्थानों की अधिकता है, लेकिन कई क्षेत्र अब भी शिक्षा की दृष्टि से उपेक्षित हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में ग्रीनफील्ड विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएं। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा हमारे सभ्यतागत मूल्यों, भावना और संस्कृति के अनुरूप है। यह भारत के उस शाश्वत विश्वास को दृढ़ता से दोहराती है कि शिक्षा केवल कौशल प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्म-जागरण का साधन है। उन्होंने कहा कि भारत अब अवसरों, स्टार्टअप्स, नवाचार और यूनिकॉर्न्स की धरती बन चुका है। विकास और प्रगति के हर मानक पर भारत निरंतर आगे बढ़ रहा है।