सामाजिक सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन में बड़ा बदलाव 2016 में जहां केवल 22% आबादी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में थी, 2025 तक यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर 64.3% हो गया। बुजुर्गों के लिए सरकार द्वारा संचालित आश्रय और डे-केयर सुविधाओं का लाभ लेने वालों की संख्या भी 23,000 (2015) से बढ़कर 1.57 लाख (2023–24) तक पहुंच गई।
गरीबी उन्मूलन की दिशा में भी भारत ने अहम कदम बढ़ाए हैं। बहुआयामी गरीबी दर 2015-16 में 24.85% से घटकर 2019-21 में 14.96% हो गई। वहीं, विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि अत्यधिक गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली आबादी घटकर 2022-23 में 75.24 मिलियन रह गई जो 2011-12 में 344.47 मिलियन थे, यानी करीब 27 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्र से बाहर आए।
शिक्षा, कृषि और डिजिटल इंडिया में रफ्तार उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात 2015-16 के 23.7% से बढ़कर 2022-23 में 29.5% हो गया है। कृषि क्षेत्र में प्रति श्रमिक ‘सकल मूल्य वर्धन’ ₹61,247 से बढ़कर ₹94,110 हो गया। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती का संकेत है।
डिजिटल क्षेत्र में भी जबरदस्त क्रांति आई है। इंटरनेट उपयोगकर्ता 2015 के 30 करोड़ से बढ़कर 2024 में 95 करोड़ से अधिक हो गए। स्टार्टअप इंडिया मिशन के तहत 2016 में सिर्फ 453 स्टार्टअप पंजीकृत थे, जो 2024 में बढ़कर 34,293 हो गए हैं।
अब भी बाकी हैं कई अहम मोर्चे रिपोर्ट मानती है कि नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में भारत ने प्रगति की है, पर यह रफ्तार पर्याप्त नहीं। 2015-16 में बिजली उत्पादन में इसका हिस्सा 16.02% था, जो 2024-25 में बढ़कर 22.13% हुआ है।
स्वास्थ्य अनुसंधान पर खर्च 400% बढ़ा है, पर समग्र शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का कुल व्यय घटा है। इसके साथ ही किशोरियों में प्रसव दर और महिलाओं के खिलाफ अपराध के बढ़ते आंकड़े सामाजिक संतुलन की चुनौती बने हुए हैं।
2030 के लक्ष्य पाने के लिए चाहिए नई ऊर्जा रिपोर्ट यह साफ संदेश देती है कि 2030 तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 एसडीजी को हासिल करने के लिए भारत को अपनी रणनीति में तेजी, समावेशिता और स्पष्टता लानी होगी।