- हेमन्त मित्तल ब्रजबंधु, बाड़मेर
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सोशल मीडिया पर अपुष्ट सूचनाओं की भरमार से पाठकों में भ्रम की स्थिति बनती है। इसमें सूचनाएं तेजी से प्रसारित होती हैं और यह एक अफवाह का रूप ले लेती है। कई बार अराजकता की स्थिति बन जाती है। किसी को बदनामी तो किसी को झूठी ख्याति मिल जाती है। अपुष्ट समाचारों को प्रकाशित- प्रसारित होने से रोकने के लिए ठोस रीति -नीति अपनाने की आवश्यकता है।
हरिप्रसाद चौरसिया, देवास, (मध्यप्रदेश)
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आपातकालीन स्थितियों में बहुत खतरनाक
सोशल मीडिया पर गलत जानकारी बहुत तेजी से फैलती है, जो लोगों के बीच भ्रम के साथ अफवाहें फैला सकती हैं। आपातकालीन स्थितियों में यह बहुत खतरनाक हो सकती है। गलत जानकारी लोगों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। लोगों में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जो युवाओं और किशोरों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। हमें सोशल मीडिया पर सूचनाओं को साझा करने और उन पर विश्वास करने से पहले उनकी सत्यता की जांच करनी चाहिए।
— संजय निघोजकर, धार (मप्र)
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सोशल मीडिया पर गलत जानकारी बहुत तेजी से फैलती है, जो लोगों के बीच भ्रम के साथ अफवाहें फैला सकती हैं। आपातकालीन स्थितियों में यह बहुत खतरनाक हो सकती है। गलत जानकारी लोगों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। लोगों में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जो युवाओं और किशोरों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। हमें सोशल मीडिया पर सूचनाओं को साझा करने और उन पर विश्वास करने से पहले उनकी सत्यता की जांच करनी चाहिए।
— संजय निघोजकर, धार (मप्र)
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सही—गलत का भेद मालूम नहीं हो पता
सोशल मीडिया से अधिकांशत: अपुष्ट सूचनाएं ही मिलती हैं। लोगों को तुरंत सूचनाएं पाने की चाहत रहती है। लेकिन अपुष्ट सूचनाओं से से वह सही—गलत का भेद नहीं कर सकता। समाज में भय और आतंक फैलाने के लिए भी कई बार मैसेज भेजे जाते हैं। इनसे व्यक्ति के सामाजिक और मानसिक रूप से असर पड़ सकता है। अपुष्ट सूचनाओं से मॉब लिंचिग जैसी घटनाओं को जन्म मिलता है।
— जनार्दन बुनकर, डूंगरपुर राजस्थान
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सोशल मीडिया से अधिकांशत: अपुष्ट सूचनाएं ही मिलती हैं। लोगों को तुरंत सूचनाएं पाने की चाहत रहती है। लेकिन अपुष्ट सूचनाओं से से वह सही—गलत का भेद नहीं कर सकता। समाज में भय और आतंक फैलाने के लिए भी कई बार मैसेज भेजे जाते हैं। इनसे व्यक्ति के सामाजिक और मानसिक रूप से असर पड़ सकता है। अपुष्ट सूचनाओं से मॉब लिंचिग जैसी घटनाओं को जन्म मिलता है।
— जनार्दन बुनकर, डूंगरपुर राजस्थान
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लोगों को बना रहे हैं ठगी का शिकार
सोशल मीडिया पर अवांछित व अपुष्ट मैसेज से लोग ठगी भी कर रहे हैं। लिंक भेजकर बैक खाता हैक कर लिया जाता है। अधिक कमाने का लालच देकर लोगों को बेवकूफ बना दिया जाता है। इस पर रोक लगनी चाहिए। सोशल मीडिया के अकांउट को आधार नंबर के साथ जोड़ देना चाहिए।
— अजीतसिंह सिसोदिया- खारा बीकानेर
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सोशल मीडिया पर अवांछित व अपुष्ट मैसेज से लोग ठगी भी कर रहे हैं। लिंक भेजकर बैक खाता हैक कर लिया जाता है। अधिक कमाने का लालच देकर लोगों को बेवकूफ बना दिया जाता है। इस पर रोक लगनी चाहिए। सोशल मीडिया के अकांउट को आधार नंबर के साथ जोड़ देना चाहिए।
— अजीतसिंह सिसोदिया- खारा बीकानेर
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हमारे सोचने का तरीका हो रहा प्रभावित
सोशल मीडिया आज हमारी ज़िंदगी का हिस्सा भर नहीं, बल्कि हमारी सोच, हमारे फैसलों और यहां तक कि हमारे रिश्तों को भी दिशा देने लगा है। लेकिन इस चमकती दुनिया के पीछे एक स्याह सच छिपा है—अपुष्ट सूचनाओं की अंधाधुंध बाढ़। हम हर सुबह स्क्रीन पर आंखें खोलते हैं, और अनगिनत खबरें, वीडियो, फॉरवर्ड मैसेज हमें घेर लेते हैं। इनमें से बहुत सी बातें बिना किसी तथ्य, बिना किसी प्रमाण के हम तक पहुंचती हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हम इन्हें बिना सोचे-समझे सच मान लेते हैं। यही अपुष्ट जानकारियां हमारे सोचने के तरीके को कुंद कर रही हैं। हम स्वयं से सवाल पूछना भूलने लगे हैं, हर चीज़ पर झट से राय बना लेते हैं। अफवाहें अब केवल बातें नहीं रहीं, वे भावनाओं का रूप ले चुकी हैं—कभी डर बनकर, कभी नफरत बनकर, तो कभी भ्रम की चादर ओढ़े हुए। यही वजह है कि कई बार सच्चाई की आवाज़ भी झूठ के शोर में दब जाती है। ज़रूरत है कि किसी भी जानकारी को आँख मूंदकर स्वीकार करने से पहले हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा।
— अपूर्वा चतुर्वेदी, जयपुर
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सोशल मीडिया आज हमारी ज़िंदगी का हिस्सा भर नहीं, बल्कि हमारी सोच, हमारे फैसलों और यहां तक कि हमारे रिश्तों को भी दिशा देने लगा है। लेकिन इस चमकती दुनिया के पीछे एक स्याह सच छिपा है—अपुष्ट सूचनाओं की अंधाधुंध बाढ़। हम हर सुबह स्क्रीन पर आंखें खोलते हैं, और अनगिनत खबरें, वीडियो, फॉरवर्ड मैसेज हमें घेर लेते हैं। इनमें से बहुत सी बातें बिना किसी तथ्य, बिना किसी प्रमाण के हम तक पहुंचती हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि हम इन्हें बिना सोचे-समझे सच मान लेते हैं। यही अपुष्ट जानकारियां हमारे सोचने के तरीके को कुंद कर रही हैं। हम स्वयं से सवाल पूछना भूलने लगे हैं, हर चीज़ पर झट से राय बना लेते हैं। अफवाहें अब केवल बातें नहीं रहीं, वे भावनाओं का रूप ले चुकी हैं—कभी डर बनकर, कभी नफरत बनकर, तो कभी भ्रम की चादर ओढ़े हुए। यही वजह है कि कई बार सच्चाई की आवाज़ भी झूठ के शोर में दब जाती है। ज़रूरत है कि किसी भी जानकारी को आँख मूंदकर स्वीकार करने से पहले हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा।
— अपूर्वा चतुर्वेदी, जयपुर
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तनाव, भय और गलत धारणाओं का विकास
सोशल मीडिया पर अपुष्ट सूचनाओं की भरमार ने निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित किया है। गलत जानकारी के कारण भ्रम की स्थिति बनती है, जिससे तनाव, भय और गलत धारणाएं जन्म लेती हैं। विश्वसनीय समाचार और तथ्य ढूंढना कठिन हो गया है। इससे सामाजिक विभाजन भी बढ़ता है। लोग झूठी सूचनाओं पर विश्वास करके बहस में उलझ जाते हैं। जानकारी के इस युग में सत्य और तथ्य की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
— संजय माकोड़े बैतूल
सोशल मीडिया पर अपुष्ट सूचनाओं की भरमार ने निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित किया है। गलत जानकारी के कारण भ्रम की स्थिति बनती है, जिससे तनाव, भय और गलत धारणाएं जन्म लेती हैं। विश्वसनीय समाचार और तथ्य ढूंढना कठिन हो गया है। इससे सामाजिक विभाजन भी बढ़ता है। लोग झूठी सूचनाओं पर विश्वास करके बहस में उलझ जाते हैं। जानकारी के इस युग में सत्य और तथ्य की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
— संजय माकोड़े बैतूल