काले धन का एक मुश्त उपचार यही है कि उसे एक बार पूरी तरह सफेद बना दिया जाय। इसके कई तरीके हैं। एक तरीका जो सबसे अधिक प्रभावशाली है वह यह है कि आयकर कानून को ही 10-15 वर्ष के लिए समाप्त कर दिया जाए। यह प्रयोगात्मक कदम मानकर उठाया जा सकता है। यदि अनुभव से सिद्ध होता हो कि आयकर हटाने के परिणाम स्वरूप अर्थतंत्र की विकृतियां दूर हुईं, इससे सेस आया और राजकोष को क्षतिपूर्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष में हुई हो तो यही व्यवस्था यथावत चालू रखी जाए वरना दस ही साल के बाद फिर से आयकर लागू किया जा सकता है। इस प्रयोग का जायजा लेने के लिए कम से कम दस साल की अवधि निश्चित करनी पड़ेगी। ऐसा भी कोई खतरा नहीं लगता कि दस साल देश में आयकर न रहने से कोई बहुत बड़ा अनिष्ट हो जायेगा।
इस एक कदम से देश में धन का अपव्यय बंद हो जाएगा और एक एक पैसा उत्पादनशील योजनाओं में लग जाएगा। वित्तीय संस्थाओं एवं बैंकों पर दबाव कम हो जाएगा बल्कि बैंकों के कारोबार में विपुल वृद्धि होगी। राजनीतिक दृष्टि से भी देखा जाए तो आयकर समाप्त कर देने पर 40 लाख करदाताओं को तत्काल राहत मिलेगी और वे सरकार के सबसे प्रबल समर्थक और प्रचारक बनेंगे।
1980 के चुनाव में अमरीका में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को सबसे अधिक समर्थन इस घोषणा से मिला था कि वे आयकर को कम कर देंगे। यह कहा जा सकता है कि आयकर हट जाने से विषमता अधिक बढ़ेगी और मुट्ठी भर पूंजीपतियों की बन आयेगी। इसके ठीक विपरीत मैं कहना चाहूंगा कि विषमता का बड़ा आधार कालाधन है, उत्पादनशील सफेद धन कदापि नहीं। मैं तो एक कदम बढक़र यह भी कहना चाहूंगा कि आयकर समाप्त कर देने पर शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, कला-कौशल जैसे कार्यों में भी इतनी वृद्धि होगी कि सरकार का भार हल्का हो जाए। कोई भी नागरिक अपनी कमाई का अधिकांश लाभ करों के रूप में नहीं दे सकता चाहे कमाई कितनी ही हो। इसीलिए करचोरी होती है।
(कुलिश जी का यह आलेख 21 सितम्बर, 1985 के अंक में ‘काले धन को सफेद किया जाय’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। )
(कुलिश जी के आत्मकथ्य ‘धाराप्रवाह’से)
…पर कानून में आस्था
आयकर कानून का मैं सदैव विरोधी रहा हूं। परन्तु मेरे प्रबंधकीय पक्ष का एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह रहा कि आयकर चुकाने में कोताही भी न बरती जाए। मैं स्वयं 1959 से आयकर चुका रहा हूं। व्यक्तिगत रूप से मैं आयकर का विरोधी हूं पर कानून की पालना करते हुए पूरी आस्था से कर चुकाता हूं। मेरे घर से कोई सोना-चांदी..गहना चुराकर ले जाए तो बाजार में उसकी कीमत आधी रह जाती है। परंतु कोई आयकर चुराकर खरीदारी करने जाता है तो उस कर चोरी के रुपए से ज्यादा माल मिलता है। ऐसा क्यों?(कुलिश जी के आत्मकथ्य ‘धाराप्रवाह’से)
कुलिश जी के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचार सुनें
सम्पन्न कोष से ही समृद्धि का शिखर
चट्टान को सहारा देने के लिए लकडिय़ां, हाथ को टिकाने के लिए लकडिय़ां, माल निकालने के लिए टोकरियों का उपयोग ये सब प्रमाण आज भी खानों में विद्यमान हैं। स्वर्ण युग की औद्योगिक सभ्यता के अवशेष देखकर अपनी गिरावट पर ग्लानि होती है और शर्म भी आती है। हमारे पूर्वज क्या-क्या कर गुजरे! आज तो हजार उपाय हैं और लाख साधन हैं। तब भी एक हजार फीट नीचे जाकर धातु निकालना एक बड़ा काम समझा जाता है। इससे बड़ा काम एक हजार वर्ष पूर्व हमारे पुरखे कर गुजरे। बिना ड्रिलिंग मशीनों के, बिना बारूद और अन्य विस्फोटक पदार्थों के। सचमुच भारत में खनन कार्य अतीव प्राचीन काल से चल रहा है। (कुलिश जी के यात्रा वृतांत पर आधारित पुस्तक ‘मैं देखता चला गया’ से )
धन कुबेर बण जाय।
अकल भांग पी जाय छै,
सुरा बेसुरा गाय।।
(पोलमपोल से)
धन कुबेर
कार्ल मार्क्स का पूत जद,धन कुबेर बण जाय।
अकल भांग पी जाय छै,
सुरा बेसुरा गाय।।
(पोलमपोल से)