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Patrika opinionप्रदूषण नियंत्रण के लिए लगातार कार्रवाई जरूरी

छोटे ही सही लेकिन सतत प्रयास वायु प्रदूषण की मार को कम कर सकते हैं। भारतीय प्रदूषण निगरानी एजेंसियों द्वारा निर्धारित सीमाओं से नीचे भी प्रदूषण का स्तर घातक प्रभाव डालता है। इसलिए प्रदूषण कम करने के लिए साल भर कार्रवाई करनी होगी।

जयपुरJul 05, 2024 / 09:17 pm

Gyan Chand Patni

वायु प्रदूषण में मामूली बढ़ोतरी भी जानलेवा साबित हो सकती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई शहर बड़ा है या छोटा। हवा में घुलते जहर की बात जब भारत के संबंध में होती है तो यह चिंता और बढ़ जाती है। इस बीच कॉर्नेल यूनिवर्सिटी का ताजा शोध कहता है कि भारत में बच्चे घरों में भी प्रदूषण के खतरे से सुरक्षित नहीं हैं। देखा जाए तो सड़कों पर धुआं छोड़ते वाहनों की रेलमपेल, कारखानों का प्रदूषण, पटाखे, पराली और दूसरे न जाने कितने कारण हैं जो हवा को जहरीली बनाते जा रहे हैं। हर साल हमारे शहरों में प्रदूषण का स्तर एयर क्वालिटी के मानकों से कहीं ज्यादा रहता है। मुश्किल यह है कि प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में किए जाने वाले उपायों का असर कहीं नजर नहीं आता। वायु प्रदूषण के गहराते संकट का अहसास हमें इसलिए भी हो जाना चाहिए कि वायु प्रदूषण के हिसाब से खराब कहे जाने वाले दुनिया के एक सौ शहरों में से ८३ शहर भारत के हैं।
सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये आंकड़े प्रदूषण के मामले में भारत की छवि दुनिया के सामने कैसी रख रहे होंगे? एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2008 से 2019 के बीच हर साल 10 भारतीय शहरों में लगभग 33,000 मौतें विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों से अधिक वायु प्रदूषण के स्तर के कारण हुई हैं। इस अध्ययन के अनुसार वर्तमान भारतीय वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे का प्रदूषण स्तर भी मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बनता है। लैंसेट की ओर से अध्ययन करने वाली अंतरराष्ट्रीय टीम में हमारे देश के वाराणसी और दिल्ली के क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल सेंटर के शोधकर्ता शामिल रहे हैं। दिल्ली, बेंगलूरु, कोलकाता, मुम्बई जैसे शहरों में वायु प्रदूषण की खराब स्थिति तो सालों से जगजाहिर है, पर अचंभित करने वाला खुलासा यह है कि शिमला जैसे साफ-सुथरे शहर तक में वायु प्रदूषण मौतों का बड़ा कारण बनता नजर आ रहा है।
चौंकाने वाला निष्कर्ष यह भी है कि प्रति एक हजार शिशुओं की मौतों में से 27 की मौत का कारण घरेलू प्रदूषण बन रहा है। इन शिशुओं की माताएं प्रदूषण की जो परेशानी भोग रही होंगी, उसका तो हिसाब ही नहीं है। इसका एक कारण परंपरागत चूल्हे पर खाना बनाना भी है। जाहिर तौर पर सरकार को उज्ज्वला योजना के जरिए प्रदूषण रहित रसोई का बंदोबस्त और प्रभावी तरीके से करना होगा। आज भी खाना पकाने के लिए कोयले और लकड़ी के ईंधन का इस्तेमाल माताओं और शिशुओं की सेहत के लिए खतरा बन रहा हो तो चिंता करनी ही होगी। वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार दूसरे कारकों को भी बेहतर तरीके से समझना होगा। छोटे ही सही लेकिन सतत प्रयास वायु प्रदूषण की मार को कम कर सकते हैं। भारतीय प्रदूषण निगरानी एजेंसियों द्वारा निर्धारित सीमाओं से नीचे भी प्रदूषण का स्तर घातक प्रभाव डालता है। इसलिए प्रदूषण कम करने के लिए साल भर कार्रवाई करनी होगी।

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