scriptसंपादकीय : ज्ञान केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक | Editorial: Increasing cases of suicide in knowledge centers are worrying | Patrika News
ओपिनियन

संपादकीय : ज्ञान केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक

देश में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच यह तथ्य चौंकाने वाला है कि विद्यार्थियों की आत्महत्या की दर किसानों की आत्महत्या दर से भी ज्यादा हो गई है। चिंताजनक तथ्य यह है कि जिन उच्च शिक्षण संस्थानों को ज्ञान का केंद्र माना जाता है, वहां विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। […]

जयपुरMar 25, 2025 / 10:52 pm

Gyan Chand Patni

देश में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच यह तथ्य चौंकाने वाला है कि विद्यार्थियों की आत्महत्या की दर किसानों की आत्महत्या दर से भी ज्यादा हो गई है। चिंताजनक तथ्य यह है कि जिन उच्च शिक्षण संस्थानों को ज्ञान का केंद्र माना जाता है, वहां विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर चिंता जाहिर की है और उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या रोकने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है। यह चार माह में अंतरिम रिपोर्ट और आठ माह में अंतिम रिपोर्ट देगी। टास्क फोर्स विभिन्न शिक्षण संस्थानों का दौरा कर सभी पक्षों से सुझाव लेगी। शीर्ष कोर्ट ने टास्क फोर्स को सहयोग करने के लिए राज्यों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने के निर्देश भी दिए हैं। आइआइटी और मेडिकल कॉलेजों में भी आत्महत्या के बढ़ते मामले उच्च शिक्षण संस्थानो की बिगड़ती सेहत की तरफ लगातार ध्यान आकर्षित करते रहे हैं, लेकिन सरकारों ने इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि अब इस मामले में शीर्ष अदालत को दखल देना पड़ रहा है।
इस तरह की आत्महत्याओं के पीछे रैगिंग, जातीय भेदभाव, यौन उत्पीडऩ, पढ़ाई के दबाव के अलावा आर्थिक परेशानी जैसे कारण बताए जाते हैं। रैगिंग तो अर्से से उच्च शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों के लिए मानसिक संताप और आत्महत्या का कारण रहा है। रैगिंग को एक अक्षम्य कृत्य व अपराध की श्रेणी में गिना जाता है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के साथ-साथ कई राज्यों ने अपने स्तर पर कानून भी बनाए हैं। इसके बावजूद रैगिंग के मामले सामने आते रहते हैं। हालत यह है कि सोसाइटी अगेंस्ट वॉयलेंस इन एजुकेशन की रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों को रैगिंग के मामले में ‘हॉट स्पॉट’ माना गया है। 2022-24 के दौरान इस तरह की मिली कुल शिकायतों का 38.6 प्रतिशत, गंभीर शिकायतों का 35.4 प्रतिशत और रैगिंग से संबंधित मौतों का 45.1 प्रतिशत हिस्सा मेडिकल कॉलेजों से है। इससे हालात की गंभीरता का पता चलता है। मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को तो ज्यादा संवदेनशील होना चाहिए, लेकिन वहां भी रैगिंग के कारण प्रतिभाओं की जान जा रही है।
यह वाकई चिंता की बात है कि रैगिंग रोकने के लिए बनाए गए कानून भी विद्यार्थियों का उत्पीडऩ नहीं रोक पा रहे। यह इस बात का प्रमाण है कि कानून बनाने मात्र से उच्च शिक्षण संस्थानों का माहौल ठीक नहीं होने वाला। उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन को कुशल, जिम्मेदार और संवेदनशील बनाए बिना इस समस्या का समाधान निकालना मुश्किल है। शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई का मजबूत तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि पढ़ाई की आड़ में अपनी कुत्सित मानसिकता का पोषण करने वालों में खौफ पैदा हो सके और प्रतिभाएं बच सकें। शिक्षण संस्थानों में तनाव मुक्त माहौल बनाने की जिम्मेदारी समझनी होगी।

Hindi News / Opinion / संपादकीय : ज्ञान केंद्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक

ट्रेंडिंग वीडियो