संपादकीय : स्व-अनुशासन जरूरी, तभी परीक्षाएं लगेंगी उत्सव
पिछले कुछ वर्षों में बच्चों में परीक्षा का तनाव कुछ अधिक देखा जा रहा है। बोर्ड परीक्षाओं के दौरान बहुत सारे विद्यार्थियों का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। ऐसे में विद्यार्थियों में परीक्षा का तनाव कम करने के उपाय तलाशे जा रहे हैं। इसी कड़ी में पहले पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया, फिर प्रश्नपत्रों को […]


पिछले कुछ वर्षों में बच्चों में परीक्षा का तनाव कुछ अधिक देखा जा रहा है। बोर्ड परीक्षाओं के दौरान बहुत सारे विद्यार्थियों का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। ऐसे में विद्यार्थियों में परीक्षा का तनाव कम करने के उपाय तलाशे जा रहे हैं। इसी कड़ी में पहले पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया, फिर प्रश्नपत्रों को व्यावहारिक और अपेक्षाकृत आसान बनाया गया। अब नई शिक्षा नीति के तहत 10वीं बोर्ड की परीक्षा दो चरणों में आयोजित करने की घोषणा की है। माना जा रहा है कि इससे विद्यार्थियों पर परीक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव कम होगा और उन्हें अपना परिणाम सुधारने का अधिक मौका मिलेगा। निश्चित रूप से दो चरण में परीक्षा होने से विद्यार्थी परीक्षा के भय से मुक्त हो सकेंगे। परीक्षा के दिनों में सीबीएसई के हेल्पलाइन नंबर पर फोन कॉल की बाढ़ विद्यार्थियों के तनाव का खुलासा करती है। एनसीईआरटी के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 81 प्रतिशत विद्यार्थियों ने पढ़ाई, परीक्षा और नतीजों को एंजायटी का कारण बताया था। इस तनाव का विभिन्न स्तर पर सामना करना पड़ता है। एंजायटी, चिंता, भावुकता और डर जैसे शब्द परीक्षाओं से जुड़ गए हैं।
हमारी परीक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों पर परीक्षा में अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने का दबाव होता है। इस दबाव के कारण जिज्ञासा, आलोचनात्मक सोच और विश्लेषण की हमारी परम्परा प्रभावित हुई है। अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विद्यार्थियों के सीखने-जानने एवं मूल्यांकन के समग्र दृष्टिकोण पर जोर दिया गया है। अभी तक पाठ्यक्रम ऊंची नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता था। अब कौशल विकास पर अधिक जोर दिया गया है। खास बात है कि कक्षा को जितना जीवंत बनाया जा सके, उतना ही अच्छा है, जिसमें शिक्षक प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान दें। पाठ्यक्रम को तैयार करने और मूल्यांकन का काम इस तरह किया जाए कि विद्यार्थियों में विकासशील मानसिकता को बढ़ावा मिले। प्रतियोगी परीक्षाओं व विश्वविद्यालयों में दाखिले आदि को लेकर पहले ही केंद्रीकृत व्यवस्था है, इसलिए जो विद्यार्थी उच्च शिक्षण के लिए जाना चाहते हैं, उन्हें भी नई व्यवस्था से कोई परेशानी नहीं होगी।
इन सबके बीच हमें ध्यान रखना होगा कि परीक्षाओं को आसान बनाने का उद्देश्य विद्यार्थियों और अभिभावकों के तनाव को कम करना है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम परीक्षा को लेकर लापरवाह हो जाएं और इसे गंभीरता से लेना ही बंद कर दें। अगर ऐसा हुआ तो यह पूरी कवायद ही अपना उद्देश्य खो देगी। ऐसे में विद्यार्थियों को स्व-अनुशासन बरतना होगा। इस कार्य में सफल होंगे तभी विद्यार्थी परीक्षा को उत्सव के रूप में मना सकेंगे।
Hindi News / Prime / Opinion / संपादकीय : स्व-अनुशासन जरूरी, तभी परीक्षाएं लगेंगी उत्सव