मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण लोग गंभीर बीमारियों के शिकार भी हो रहे हैं, लेकिन लाचार इतने हैं कि कुछ कर नहीं पा रहे। मिलावट की रोकथाम के लिए समय-समय पर सरकार की तरफ से अभियान भी चलाए जाते हैं, लेकिन आंकड़ों के जरिए अभियान की सफलता का ढोल पीटने के अलावा कुछ खास नहीं होता।
इन दिनों राजस्थान में चल रहे ग्रीष्मकालीन मिलावट विरोधी अभियान के भी आंकड़े जारी किए गए हैं। बताया गया है कि खाद्य सुरक्षा आयुक्तालय की ओर से जारी अभियान के तहत 19 से 21 अप्रेल तक राज्यभर में कुल 487 निरीक्षण किए गए और १२६१ खाद्य पदार्थों के नमूने लिए गए। अब तक 9189 किलो मिलावटी या संदिग्ध खाद्य सामग्री को नष्ट किया गया और 15968 किलो से अधिक खाद्य सामग्री को सीज किया गया है। अभियान 5 मई तक चलेगा।
इस तरह के अभियानों के दौरान खाद्य पदार्थों के नमूने लेने और खराब खाद्य पदार्थों को नष्ट करने की कार्रवाई तो हमेशा होती है। इसके बावजूद मिलावट नहीं रुक पा रही। सुप्रीम कोर्ट भी देश में खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता पर कई बार चिंता जाहिर कर चुका है। कोर्ट केंद्र तथा राज्य सरकारों को मिलावट रोकने के सख्त निर्देश भी समय-समय पर जारी कर चुका है। इसके बावजूद राज्य सरकारें मिलावट रोकने में अक्षम साबित हो रही हैं। मिलावटखोरों को लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की छूट कैसे मिली हुई है? समस्या यह है कि राज्य के जिन महकमों पर मिलावट रोकने की जिम्मेदारी है, वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं।
जिम्मेदार, मिलावट रोकने के बजाय कानून का डर दिखाकर वसूली करने पर ज्यादा ध्यान देते नजर आते हैं। हालत यह है कि सैंपल तो ले लिए जाते हैं, लेकिन उनकी समय पर जांच तक नहीं होती। पिछले दिनों मिलावट माफिया के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के खाद्य सुरक्षा और औषधि नियंत्रण शाखा में तैनात एक अधिकारी की कथित बातचीत का ऑडियो सामने आया था।
अधिकारी पर मिलावटखोरों को संरक्षण देने और रिश्वत लेने के गंभीर आरोप लगे थे। साफ है कि अधिकारियों और मिलावटखोरों के गठजोड़ को भी तोड़े बिना लोगों तक शुद्ध खाद्य पदार्थ नहीं पहुंच सकते। इसलिए सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए और ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
- ज्ञान चंद पाटनी
gyan.patni@epatrika.com