जयपुर में खुलेआम डीजल चोरी, जेल से होटलों तक बंदियों की अवैध मुलाकातें, पुलिस वालों की हुक्का बारों में हिस्सेदारी, बदमाशों से निजी दोस्ताना संबंध और कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति। ये सब इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि अपराधियों को न केवल पुलिस की मौन सहमति प्राप्त है, बल्कि राजनीतिक छत्रछाया भी उन्हें अजेय बना रही है।
बगरू में सुरंग बनाकर एचपीसीएल की पाइपलाइन से डीजल चोरी कोई एक दिन की करतूत नहीं है। महीनों से यह खेल चल रहा था और पुलिस को भनक नहीं लगी? या कहें कि लगने ही नहीं देना चाहते। तेल चोर गिरोह को पहले भी राज्य में संरक्षण मिलता रहा है और सीबीआई की जांच में भी पुलिस अफसरों की भूमिका सामने आ चुकी है, लेकिन राजनीतिक सरपरस्ती और पैसों की साझेदारी ने हर कार्रवाई को कुंद कर दिया। यही हाल अवैध बजरी खनन का है, जहां सत्ता और सिस्टम के शीर्ष तक हिस्सेदारी जाती है। नतीजतन न अपराध रुकते हैं और न ही अपराधी गिरफ्त में आते हैं।
जयपुर केन्द्रीय कारागार में इलाज के नाम पर होटलों में बंदियों की मुलाकातें, चालानी गार्डों और डॉक्टरों का गठजोड़ से ‘सेवा शुल्क नेटवर्क ’ का संचालन, ये सब संकेत हैं कि व्यवस्था अब सेवा नहीं, साझेदारी के तौर पर काम कर रही है। वहीं, जोधपुर और जयपुर में हुक्का बारों से लेकर फर्जी चालान तक, हर जगह पुलिस की मिलीभगत के उदाहरण मिल रहे हैं। कई मामलों में तो आरोपी सिपाही जांच से पहले ही छुट्टी लेकर फरार हो गए, मानो पहले से पता हो कि कब गाज गिरने वाली है।
इन घटनाओं के बाद भी अगर सत्ता और शासन, गृह विभाग और पुलिस महकमा मौन है तो यह मौन सबसे खतरनाक है। अपराधियों से बड़ा अपराध उन लोगों का है जो उन्हें पनपने देते हैं, संरक्षण देते हैं और फिर मौन रहकर व्यवस्था को विकृत होने देते हैं।
यह भी पढ़ें क्या ऐसी व्यवस्था में पुलिस के इकबाल की बात करना बेमानी नहीं हो जाता? अब समय आ गया है कि पुलिस की काली भेड़ों को चिह्नित किया जाए और उन्हें न सिर्फ सेवा से बर्खास्त किया जाए, बल्कि आपराधिक आरोपों में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जाए। जो अफसर अपराधियों से मिले हों, उन्हें प्रमोशन या पुरस्कार नहीं, सजा मिलनी चाहिए। साथ ही इन अफसरों की जांच ऐसी एजेंसी से करानी चाहिए, जिसमें न तो पुलिस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर जाते हों और न ही पुलिस का कोई दखल हो। ताकि जांच की स्वतंत्र एवं निष्पक्षता बनी रहे। जनता का पुलिस पर भरोसा तभी बहाल हो सकता है जब सड़कों पर पुलिस की मुस्तैदी और जेलों में अपराधियों की मौजूदगी दिखाई दे। वर्ना यह गठजोड़ अपराध को सिर्फ पनपाएगा ही नहीं, उसे संस्कृति बना देगा और यही सबसे बड़ा खतरा होगा। कानून सबके लिए बराबर है… यह भावना सिर्फ किताबों में नहीं, कार्रवाई में भी दिखनी चाहिए।