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कृषि की शुद्धता बनी रहेगी तभी सुरक्षित होगा कल

डॉ. रमेश रलिया
नैनो उर्वरक विशेषज्ञ एवं कृषि विज्ञानी (वाशिंगटन)

जयपुरJul 02, 2025 / 12:37 pm

Shaily Sharma

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आधुनिक तकनीकों से बीज-उर्वरकों को पहचानें, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को बचाएं

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का स्तंभ है जो करोड़ों किसानों के जीवन-यापन का आधार है और 1.4 अरब से अधिक लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है। कृषि इनपुट्स जैसे बीज, उर्वरक, बायोस्टिमुलेंट्स और कीटनाशक की गुणवत्ता फसल उत्पादकता, मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरणीय संतुलन और खाद्य सुरक्षा को गहरे तौर पर प्रभावित करती है। इन इनपुट्स का कठोर परीक्षण किसानों की आजीविका की रक्षा पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने और जन स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। बीजों की आनुवंशिक शुद्धता, अंकुरण दर, जीवन शक्ति और रोगजनकों या प्रदूषकों की अनुपस्थिति का गहन मूल्यांकन मजबूत फसल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
मिलावटी और घटिया इनपुट्स फसल उत्पादन में कमी, जमीन की उर्वरता को नुकसान किसानों के लिए आर्थिक नुकसान व पर्यावरणीय क्षति जैसे परिणाम लाते हैं। दूषित फसलें गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती हैं। ये इनपुट्स पौधे के पोषण चक्र के लिए आवश्यक सूक्ष्मजीवी समुदायों को नष्ट करके मिट्टी की उर्वरता को कम करते हैं, दूषित चारे से पशुओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और पक्षियों, मधुमक्खियों जैसे परागणकों और लाभकारी कीटों को प्रभावित करके जैव विविधता को खतरे में डालते हैं। नकली उत्पादों से होने वाली अपूरणीय क्षति जैसे मिट्टी का दीर्घकालिक बांझपन, पारिस्थितिकी तंत्र का पतन, देशी प्रजातियों का नुकसान और व्यापक स्वास्थ्य संकट – कृषि स्थिरता और सामाजिक कल्याण को खतरे में डालती है। उदाहरण के लिए, मिलावटी उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पोषक तत्वों के रिसाव का कारण बनता है, जमीन की अम्लीय-क्षारीय क्षमता को प्रभावित करता है, भूजल को प्रदूषित करता है और जल निकायों में यूट्रोफिकेशन को बढ़ावा देता है, जबकि नकली कीटनाशक कीट नियंत्रण में विफल होकर फसल नुकसान और कीट प्रतिरोध का कारण बनते हैं।
भारत में कृषि इनपुट्स की शुद्धता और गुणवत्ता के लिए नमूने लेने और मूल्यांकन का वर्तमान बुनियादी ढांचा पूरी तरह अपर्याप्त है। अधिकांश सुविधाएं शहरी क्षेत्रों में केंद्रीकृत हैं, कर्मचारियों की कमी से जूझ रही हैं और पुरानी तकनीकों पर निर्भर हैं, जिससे परिणामों में देरी और ग्रामीण किसानों के लिए सीमित पहुंच होती है। सैंपल कलेक्शन अनियमित है और बाजार में प्रसारित इनपुट्स की विशाल मात्रा को कवर करने की परीक्षण क्षमता अपर्याप्त है। किसानों में कृषि इनपुट्स की शुद्धता और गुणवत्ता की जांच कब, कैसे और कहां करवानी है, इसकी जागरूकता की भी कमी है।
जिला मुख्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्र (कृविके) कृषि विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं से सुसज्जित करने से एवं इनमें आवश्यकतानुसार वैज्ञानिकों की नियुक्ति कर देने से नियमित परीक्षण को बढ़ावा मिलेगा। वहीं उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकें, प्रौद्योगिकी-संचालित मानव संसाधनों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के साथ मिलकर मिलावटी और घटिया इनपुट्स का पता लगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी कृषि इनपुट्स में रासायनिक यौगिकों को अलग करने और उनकी मात्रा निर्धारित करने का शक्तिशाली उपकरण है। पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) बीजों और बायोउर्वरकों के आनुवंशिक विश्लेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह बीज किस्मों की आनुवंशिक शुद्धता को डीएनए-आरएनए मार्करों को बढ़ाकर सत्यापित करता है, जिससे किसानों को प्रामाणिक बीज मिलें। इंडक्टिवली कपल्ड प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमेट्री उर्वरकों और मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों और भारी धातुओं का अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ पता लगाता है। यह तकनीक फिलर्स या बाइंडर के साथ मिलावट का संकेत भी बता देती है। डायनामिक लाइट स्कैटरिंग (डीएलएस) नैनोउर्वरकों व बायोस्टिमुलेंट्स में नैनोकणों के आकार और जीटा पोटेंशियल को मापने के लिए महत्त्वपूर्ण तकनीक है।
बेहतर कृषि उत्पादों के लिए आधुनिक परीक्षण सुविधाओं में निवेश होना चाहिए। ये सुविधाएं केवल कृषि उपकरण नहीं, बल्कि जन स्वास्थ्य और पर्यावरणीय अनिवार्यताएं हैं।

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