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विश्व कला दिवस आज : जीवन से जुड़ी हैं भारतीय कलाएं

— विनय कुमार (लेखक कला समीक्षक और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार से सम्मानित हैं)

जयपुरApr 15, 2025 / 01:02 pm

विकास माथुर

दुनिया के महान कलाकार लियोनार्डो द विंची के जन्मदिन को दुनियाभर में विश्व कला दिवस के रूप में उत्सव की तरह मनाया जाता है। लियोनार्डो के मूर्धन्य होने और कला में उनके अप्रतिम योगदान को लेकर कोई संदेह नहीं है। कला, विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी का अभूतपूर्व समन्वय सिर्फ विंची में ही मौजूद रहा। अपने जीवनकाल में लियोनार्डो ने क्या नहीं किया, कला के जरिए समाज और व्यक्ति के जीवन को बेहतर और सुंदर बनाने के लिए अपनी पूरी प्रतिभा लगा दी, फिर चाहे वह मानवीय शरीर का आंतरिक अध्ययन और कला के जरिए उसकी अभिव्यक्ति हो अथवा हेलीकॉप्टर का प्रोटोटाइप डिजाइन। उनके जन्मदिवस को विश्व कला दिवस के रूप में मनाना ही कला और जीवन के रिश्ते को स्थापित करना है।
पुनर्जागरण काल से आज तक सबसे अधिक विकास अगर कहीं हुआ है तो वह चाक्षुष कलाओं के क्षेत्र में हुआ है। चाहे माध्यमों का विस्तार हो या विषयवस्तु का या कलाओं के लोकतांत्रिकरण का विषय हो, चाक्षुष कलाएं अपनी सहोदर कलाओं से इतर खड़ी होती हैं। अगर चित्रमय भारत की बात करें तो भारतीय कलाएं खासकर आधुनिक कलाएं जीवन से सीधे जुड़ी रहीं। पटना कलम, बनारस कलम, लखनऊ कलम में हम जीवन और कला के अनन्य रिश्ते का प्रारंभ देखते हैं।
अमृता शेरगिल की भारतीय महिलाएं, रामकिंकर बैज के किसान परिवार, संथाली जीवन, चित्रोप्रसाद के बंगाल अकाल का भयावह चित्रण, एफएम हुसैन के आम आदमी से लेकर अतुल डोडिया के गांधी, सुधीर पटवर्धन के कैनवास पर अड़ोस-पड़ोस का चित्रण हर पक्ष पर एक विशेषज्ञ की पैनी नजर मौजूद है। फिर नब्बे के दशक के बाद भारतीय कला ने पुन: करवट ली तथा कला जीवन के ऐसे पहलुओं का चित्रण या अभिव्यक्ति करने लगी जिसकी ओर कभी देखा नहीं गया था। जैसे किसानों की दुर्दशा, शहरी जीवन के अंतद्र्वंद्व, आस्था की लौकिक अभिव्यक्ति, विस्थापन, आम जिंदगी से लुप्त होती वस्तुएं, कलाओं में पुराणों और मिथकों की नई व्याख्या, रोजमर्रा की घटनाएं, विभिन्न इतर कला माध्यमों में होना, मिक्स्ड मीडिया, हाइब्रिड मीडिया, वीडियो, इंस्टॉलेशन आदि। विश्व कला दिवस की इस वर्ष की थीम ‘अभिव्यक्ति की बगिया: कला के जरिए समुदाय का विकास’ है।
भारतीय आधुनिक कलाएं आज जीवन को समुदाय को विकसित करने, उन्हें सुंदर बनाने के लिए सर्वतोमुखी प्रयास कर रही है। भारतीय कलाओं का एक समावेशी स्वरूप एशिया और विकसित देशों की कलाओं से निश्चित रूप से आगे ले जाकर खड़ा करता है क्योंकि पाश्चात्य कलाएं अब भी जीवन के संघर्षों को अभिव्यक्त करने में पीछे हैं। भले कीमतों में आगे रहें। यह बात ठीक वैसे ही है जैसे मिश्र, मेसोपोटामिया की कला से सिंधु घाटी या उसके बाद के दौर की कलाएं कमतर नहीं हैं।

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