इसके बाद इनका उपयोग कीटरक्षक व उर्वरक के रूप में करने लगे हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से भी ब्रह्मास्त्र, अग्निस्त्र, नीमास्त्र के साथ बीजामृत, जीवामृत आदि बनाने की तकनीक सिखाई जा रही है, जिससे रसायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का उपयोग नहीं करना पड़े और फसल भी बेहतर उत्पादन दें।
किन से बनते हैं उर्वरक व कीटरक्षक
नीमास्त्र: इसका उपयोग कर रस चूसने वाले किटों व छोटी सूंडी इल्ली आदि पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसमेें कूटे हुए नीम के पत्ते, गोबर का घोल,
गोमूत्र को एक ड्रम में डालकर तैयार करते है। इसका उपयोग 6 माह तक किया जा सकता है।
बीजामृत: इससे बीज का उपचार किया जाता है। इसे गोमूत्र, गोबर, पानी, जीवाणु युक्त मिट्टी व चूने से तैयार करते है। इन सभी चीजों के घोल से तैयार मिश्रण का बीजों पर छिड़काव किया जाता है। इस तरह तैयार बीज से बेहतर उत्पादन होता है।
अग्निस्त्र: तना किट, सूंडी, इल्ली, फली में रहने वाली सूंडी इल्ली पर नियंत्रण उपयोग में आता है। इसे नीम के पत्ते, गोमूत्र, हल्दी, तम्बाकू, लहसून, हरी मिर्च से तैयार किया जाता है। इसे बनाकर तीन माह तक रखा जा सकता है।
जीवामृत: यह फसलों के संवर्धन, गुणवत्ता व पौष्टिकता की खुराक है। इसे गोमूत्र, गोबर, पानी, गुड़, बेसन व जीवाणु युक्त मिट्टी से तैयार किया जाता है। इसे बनाकर ड्रिप या फव्वारा के साथ मिलाकर छिड़काव कर सकते है। इसका उपयोग 15 दिन तक सकते हैं।
ब्रह्मास्त्र: बड़ी सूंडी, इल्ली व अन्य किटों पर नियंत्रण के लिए उपयोग किया जाता है। इसे सीताफल के पत्तों, करंज पत्तों, पपीता पत्तों, अरंडी पत्तों, नीम पत्तों, बेल पत्तों, गोमूत्र व धतूरा के पत्तों से तैयार करते है। इसका उपयोग छह माह तक किया जा सकता है।
दशपर्णी अर्क: इससे रस चूसक कीटों व सभी इल्लियों पर नियंत्रण किया जाता है। इसे सीताफल, अरंडी, करंज, पपीता, आकड़ा, अश्वगंधा, धतूरा, कनेर, गेंदा व नीम के पत्तों, गोमूत्र, तम्बाकू, हल्दी, अदरक, हींग, गोबर, लहसून व हरी मिर्च से तैयार करते हैं।
प्राकृतिक खेती में तैयार करते उर्वरक
ब्रह्मास्त्र व अग्निस्त्र सहित अन्य सामग्री का उपयोग करना प्राकृतिक खेती में आता है। इसमें गोमूत्र, गाय का गोबर, नीम के पत्ते आदि का उपयोग कर तैयार किए जाते है। इसमें ऐसे वनस्पति का उपयोग करते है, जिनको पशु या मवेशी नहीं खाते है। इनका उपयोग करने से फसल की लागत भी कम आती है और उत्पादन बेहतर होता है। इसकी दुर्गंध से कीट भाग जाता है। पौधों को पोषण मिलता है।
अरविन्दसिंह तैतरवाल, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली