बाल खाने की थी लत, मां-बहन के बाल भी खा जाती थी
बताया जा रहा है कि मंजू बचपन से ही मानसिक तनाव और व्यवहारगत विकृति से जूझ रही थी। इस वजह से उसे अपने ही बाल नोच-नोचकर खाने की लत लग गई थी। कभी-कभी वह अपनी मां और बहनों के बाल भी खींचकर खा जाती थी। शुरू-शुरू में घरवालों को यह आदत अजीब लगी, लेकिन जब उसके स्वास्थ्य पर असर दिखने लगा, तब बात गंभीर हुई।
पेट दर्द, उल्टी और कमजोरी से बढ़ी परेशानी
कुछ महीनों बाद मंजू को लगातार पेट में तेज़ दर्द, उल्टी, भूख न लगना और तेज़ी से वजन गिरना जैसी समस्याएं होने लगीं। परिवारजन उसे लेकर कई अस्पताल गए, जहां अल्ट्रासाउंड और अन्य जांचें हुईं, लेकिन किसी भी डॉक्टर को बीमारी की असल वजह समझ नहीं आई।
प्रयागराज में मिली राहत, सफल सर्जरी से जान बची
आख़िरकार परिजन मंजू को प्रयागराज के मुंडेरा स्थित नारायण स्वरूप हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। यहां निदेशक और सीनियर लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. राजीव सिंह, डॉ. विशाल केवलानी, डॉ. योगेंद्र और डॉ. राज मौर्य की टीम ने जांच कर जब ऑपरेशन किया तो उनका खुद का भी होश उड़ गया। मंजू के पेट से जो बालों का गुच्छा निकला, वह लगभग 1.5 फीट लंबा और 10 सेंटीमीटर मोटा था। बाल आपस में चिपककर एक कठोर ट्यूमर का रूप ले चुके थे।
दो घंटे तक चला जटिल ऑपरेशन
डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक यह एक अत्यंत जटिल ऑपरेशन था, जो करीब दो घंटे तक चला। ऑपरेशन के दौरान भोजन की थैली को खोलकर सावधानीपूर्वक लाखों बालों के गुच्छे निकाले गए। इसके बाद आंतों की सफाई की गई और खाने की थैली को रिपेयर कर पुनः सामान्य स्थिति में लाया गया।
मानसिक बीमारी का भी हो रहा इलाज
ऑपरेशन के बाद मंजू अब पूरी तरह से स्वस्थ है। वह सामान्य खाना खा रही है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब वह मानसिक रूप से भी काफी स्थिर हो रही है। मनोचिकित्सकों की देखरेख में उसका इलाज जारी है। डॉ. राजीव सिंह ने बताया कि इस बीमारी को ट्राइकोफैगिया (Trichophagia) कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति बाल खाने की आदत से ग्रस्त हो जाता है। इसका संबंध सीधा मानसिक तनाव और असंतुलन से होता है।
डॉक्टरों की चेतावनी: मानसिक स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता
डॉक्टरों ने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाएं चेतावनी हैं कि मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। बच्चों या किशोरों के व्यवहार में कोई असामान्यता दिखे, जैसे बाल नोचना, अकेलापन, चुप्पी या हिंसक व्यवहार, तो तत्काल मनोवैज्ञानिक परामर्श लिया जाना चाहिए। “यह केस हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन सही समय पर इलाज होने से मंजू की जान बच गई। यह घटना साबित करती है कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को समान महत्व देना चाहिए।” – डॉ. राजीव सिंह