यह फैसला न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने रामपुर निवासी मंजीत सिंह उर्फ इंदर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि पुलिस ने मंजीत सिंह को गिरफ्तार करने के बाद उसे गिरफ्तारी का कारण या आधार नहीं बताया और एक तैयारशुदा प्रोफार्मा पर गिरफ्तारी मेमो दे दिया, जिसमें जरूरी विवरण दर्ज नहीं थे।
अधिवक्ता ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी प्रक्रिया में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 50 (अब भारतीय न्याय संहिता, बीएनएसएस की धारा 47) का उल्लंघन हुआ है। इसके अलावा, जब याची को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, तब उसे अपनी बात रखने का भी अवसर नहीं दिया गया।
कोर्ट ने माना कि गिरफ्तारी मेमो में गिरफ्तारी का कोई स्पष्ट कारण या आधार नहीं बताया गया, जो कि कानूनन आवश्यक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को विधिक सहायता प्राप्त करने का पूरा अधिकार है, और यह अधिकार गिरफ्तारी के समय ही आरंभ होता है।इस आधार पर कोर्ट ने 26 दिसंबर 2024 को पारित गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया और राज्य पुलिस प्रमुख को निर्देशित किया कि वे एक सर्कुलर जारी कर पूरे प्रदेश में गिरफ्तारी की प्रक्रिया में कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित कराएं।