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दिल्ली चुनाव 2025, भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा

सुधांशु रंजन, वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व अपर महानिदेशक, दूरदर्शन

जयपुरJan 15, 2025 / 04:27 pm

Hemant Pandey

बीते 113 सालों में दिल्ली ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव, परिवर्तन और विकास देखे। लेकिन आम आदमी पार्टी के अभ्युदय के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। यह भ्रष्टाचार के विरोध में हुए जनांदोलन के गर्भ से निकली एक पार्टी थी जिसने पूरी राजनीतिक सोच और परिप्रेक्ष्य को बदलने का सपना दिखाया जहां भ्रष्टाचार, आलाकमान की संस्कृति, आदि बीते दिनों की बात होने वाली थी। लेकिन क्रांति के अंदर ही क्रांति को खाने का भी बीज होता है। यह आंदोलन उसी का शिकार हो गया।

बीते 113 सालों में दिल्ली ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव, परिवर्तन और विकास देखे। लेकिन आम आदमी पार्टी के अभ्युदय के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। यह भ्रष्टाचार के विरोध में हुए जनांदोलन के गर्भ से निकली एक पार्टी थी जिसने पूरी राजनीतिक सोच और परिप्रेक्ष्य को बदलने का सपना दिखाया जहां भ्रष्टाचार, आलाकमान की संस्कृति, आदि बीते दिनों की बात होने वाली थी। लेकिन क्रांति के अंदर ही क्रांति को खाने का भी बीज होता है। यह आंदोलन उसी का शिकार हो गया।

1911 से दिल्ली भारत की राजधानी और सत्ता का केंद्र है।‌ वास्तुकार लूटियन ने मुगलों की दिल्ली की जगह नई दिल्ली का निर्माण किया जिसका उद्घाटन 1931 में हुआ।‌ तब से लूटियंस दिल्ली उस आभिजात्य, शासक वर्ग का पर्याय बन गया जो देश पर शासन करती है। बीते 113 सालों में दिल्ली ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव, परिवर्तन और विकास देखे। लेकिन आम आदमी पार्टी के अभ्युदय के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। यह भ्रष्टाचार के विरोध में हुए जनांदोलन के गर्भ से निकली एक पार्टी थी जिसने पूरी राजनीतिक सोच और परिप्रेक्ष्य को बदलने का सपना दिखाया जहां भ्रष्टाचार, आलाकमान की संस्कृति, आदि बीते दिनों की बात होने वाली थी। लेकिन क्रांति के अंदर ही क्रांति को खाने का भी बीज होता है। यह आंदोलन उसी का शिकार हो गया।

‌भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए बनी पार्टी आज गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच चुनाव मैदान में है।‌ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल सहित कई नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं और कानूनी अड़चनों के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा है। पार्टी के इस आरोप में कुछ सच्चाई हो सकती है कि केंद्र सरकार ने विभिन्न एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को परेशान किया है। किंतु आम आदमी पार्टी के किसी नेता को अब तक अदालत से क्लीन चिट नहीं मिला है। अरविंद केजरीवाल ने जेल में लम्बे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में रहकर एक इतिहास बनाया। उन्होंने इस्तीफा तब दिया जब अदालत ने उन्हें सशर्त जमानत दी कि वे किसी फाइल पर दस्तखत नहीं करेंगे। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से भी आप पर भ्रष्टाचार का आरोप गहराया है जिसमें कहा गया है कि दिल्ली आबकारी घोटाले में अनेक प्रकार की अनियमितताएं हुईं जिससे राज्य को 2037 करोड़ का नुक़सान हुआ। विधानसभा में इस पर बहस नहीं कराए जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट को तुरंत विधानसभा अध्यक्ष के पास भेजकर उस पर बहस कराई जानी चाहिए थी; ऐसा नहीं किया गया जिससे संदेह पैदा होता है।‌

जो भी हो, आरोप के आधार पर इस्तीफा देने की परम्परा रही है। ‌हवाला कांड में बहुतों को पद छोड़ना पड़ा, हालांकि अंततः आरोप-पत्र भी दाखिल नहीं हो पाए। स्वयं केजरीवाल का भी यही पक्ष था आंदोलन के दरम्यान कि मात्र आरोप लगने पर इस्तीफा देना चाहिए। दिल्ली चुनाव में भ्रष्टाचार के अलावा एक बड़ा मुद्दा सरकार द्वारा खैरात या रेवड़ियां बांटने का है। पहले से ही दिल्ली के लोगों को एक सीमा तक बिजली तथा पानी मुफ्त मिल रहा है। अब केजरीवाल ने महिलाओं को 2100 रुपए और मंदिरों के पुजारियों तथा गुरुद्वारों के ग्रंथियों को‌ 1800 रुपए प्रतिमाह देने का वादा किया है। अन्य दल भी इसमें पीछे नहीं हैं। कांग्रेस ने बेरोजगार युवाओं को 7500 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की है। भारतीय जनता पार्टी ने भी वादा किया है कि मुफ्त बिजली-पानी की योजना न सिर्फ जारी रखी जाएगी बल्कि 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जाएगी। धार्मिक स्थलों को 500 यूनिट मुफ्त दी जाएगी। महिलाओं को 2500 रुपए प्रतिमाह मिलेंगे। ऐसी कई और योजनाओं पार्टी में पर विचार चल रहा है। यह केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। रेवड़ियां बांटने का काम कई राज्यों में चल रहा है। इससे उन राज्यों की आर्थिक हालत जर्जर हो चुकी है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम घातक हैं।
यह सही है कि केजरीवाल ने नैतिकता का चोला ओढ़कर राजनीति की दिशा और दशा बदलने के लिए जो हुंकार किया था, वह डपोरशंखी साबित हुआ।‌ फिर भी ऐसा नहीं है कि दिल्ली की आप सरकार ने कुछ भी नहीं किया। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसके कार्य उल्लेखनीय हैं। सरकारी विद्यालयों का एक हद‌ तक कायाकल्प हुआ है। मोहल्ला क्लिनिक में इलाज भी हो रहा है। यह सब उसके पक्ष में जाएगा।‌ लेकिन वायदे इतने लम्बे-चौड़े वायदे किए गए थे कि विपक्ष को प्रहार करने का मौका मिल ही जाता है।

केजरीवाल ने फिर सवाल उठाया है कि भाजपा का मुख्य मंत्री का चेहरा कौन है। उन्होंने साफ कहा, ‘आप को वोट देने वाले जानते हैं कि उनका वोट केजरीवाल को जा रहे हैं। लेकिन भाजपा को वोट देने वालों के वोट गड्ढे में जा रहे हैं क्योंकि उसका कोई चेहरा नहीं है।’ ऐसा कहकर केजरीवाल अपनी उस घोषणा को झुठला रहे हैं कि वे ‘हाय कमान’ की संस्कृति को खत्म करेंगे। ऐसा कहना यह प्रमाणित करता है कि वे ‘हाइएस्ट कमान’ हैं। अभी वे मुख्यमंत्री नहीं हैं और यह भी स्पष्ट नहीं है कि अगर उनकी पार्टी को बहुमत मिल गया तो वे दोबारा मुख्यमंत्री बन पाएंगे क्योंकि अदालत ने उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। इसके अलावा, ऐसा कहना प्रतिनिधि लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांत के विपरित है जिसमें मुख्य मंत्री या प्रधानमंत्री का चुनाव निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं, सीधे जनता नहीं करती।‌ लेकिन भाजपा भी लोक सभा चुनाव के समय यही राग अलापती है कि उसके पास मोदी हैं, विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन है। एक मुद्दा दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का है जिसके बारे में केजरीवाल काफी मुखर रहे हैं। 2019 के चुनाव में तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि यदि मोदी दिल्ली को पूर्ण राज्य को बना दें तो वे भाजपा के लिए प्रचार करेंगे। यह हैरतअंगेज वक्तव्य था। यानी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर मोदी के ऊपर लगाए गए तानाशाही तथा साम्प्रदायिकता के आरोप बेमानी हो जाएंगे। ऐसा आरोप लगाने वालों में स्वयं केजरीवाल भी हैं। वैसे दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाना न संभव है और न वांछनीय।‌ शीला दीक्षित ने भी कहा था कि राजधानी होने के कारण दिल्ली को पूरा राज्य नहीं बनाया जा सकता है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा। लेकिन हरियाणा एवं महाराष्ट्र के चुनावों ने उसके आत्मविश्वास को बहाल कर दिया। फिर भी कब क्या परिणाम आएंगे, कहना मुश्किल है। केंद्र सरकार ने 2014 में दिल्ली में इसलिए चुनाव करवा दिया क्योंकि हरियाणा में भाजपा चुनाव जीत चुकी थी और दिल्ली में लोकसभा की सभी सातों सीटों पर जीत पहले ही चुकी थी। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम हैरान करने वाले थे। आप को 70 में 67 सीटों पर जीत हासिल हुई और भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ तीन सीटों पर। कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई। इस बार भाजपा ने भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बनाया है। मुख्यमंत्री का शीशमहल भी एक मुद्दा है। आम आदमी पार्टी का प्रभाव कमा है लेकिन अभी भी वह एक बड़ी शक्ति है। कांग्रेस तीसरे नम्बर पर है जो आप का वोट काटेगी, खासकर अल्पसंख्यकों का। आप कांग्रेस को भाजपा की बी-टीम बता रही है। आप यह आरोप लगाती रही है कि केंद्र सरकार ने उसे ठीक से कभी काम करने नहीं दिया। किसके पास क्या अधिकार हैं, इसको‌ लेकर शीर्ष अदालत का भी फैसला आ चुका है। फिर भी विवाद होते रहते हैं। अब देखना है कि राज्य सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को जनता स्वीकार करती है या खारिज।

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