नियमित जज के अवकाश में होने की वजह से चालान दो दिन बाद पेश किया गया। इस दौरान आबकारी अधिकारियों को अपनी गिरफ्तारी का अंदेशा हो गया। इसी डर से आबकारी अधिकारी कोर्ट में पेश नहीं हुए। बताया जाता है कि वह अग्रिम जमानत आवेदन लगाने का प्रयास भी करते रहे, लेकिन विशेष न्यायाधीश के अवकाश पर रहने के कारण आवेदन पेश नहीं किया।
CG Liquor Scam: दुकानों में फर्जीवाड़ा
दुकानों में अवैध शराब को बेचने के लिए सेल्समैन, सुपरवाइजर, आबकारी विभाग के निचले स्तर के अधिकारी, दुकान प्रभारी अधिकारी से लेकर जिला प्रभारी आबकारी अधिकारी शामिल थे। इस तरह की शराब को बी-पार्ट की शराब के नाम से जाना जाता था। इसकी बिक्री रकम को अलग से एकत्र कर जिला स्तर पर जिला प्रभारी आबकारी अधिकारी के नियंत्रण में सिंडिकेट के लोगों तक पहुंचाने का काम किया जाता था। करीब 3 साल तक बी-पार्ट की शराब की शासकीय
शराब दुकानों में अवैध बिक्री की गणना आबकारी के जिला प्रभारी अधिकारी, मंडल प्रभारी अधिकारी, वृत्त प्रभारी, दुकान प्रभारी, वृत्त प्रभारी अधिकारियों करते थे।
70 लोगों के शामिल होने के इनपुट
उनके अधीन काम करने वाले आरक्षक/प्रधान आरक्षक, मैन पॉवर सप्लाई एजेंसी के जिला क्वार्डिनेटर, मैन पॉवर सप्लाई एजेंसी के लोकेशन ऑफिसर, मैन पॉवर सप्लाई एजेंसी के दुकानों के सुपरवाइजर, मैन पॉवर सप्लाई एजेंसी के दुकानों के सेल्समैन, टॉप सिक्योरिटी एजेंसी में जिला प्रभारी के तौर पर कार्य कर रहे कर्मचारीगण कर रहे थे। जिलों से बी-पार्ट के पैसों को एकत्र कर सिंडीकेट तक पहुंचाने वाले एजेंटों सहित लगभग 200 लोगों के बयान एवं डिजीटल साक्ष्य के आधार पर शासकीय
शराब दुकानों में 60,50,950 पेटी देशी शराब 2174 करोड़ रुपए में बेची गई। इसका हिस्सा जिले में पदस्थ अधिकारी/कर्मचारियों के साथ दुकान के सेल्समैन और सुपरवाइजरों को भी मिलता था।
ईओडब्ल्यू ने अपनी चार्जशीट में बताया है कि
शराब घोटाला 2161 करोड़ नहीं, 3200 करोड़ रुपए से अधिक का हु्आ है। इस खेल में 70 लोगों के शामिल होने के इनपुट मिले हैं। उक्त सभी के भूमिका को जांच के दायरे में लिया गया है। जल्द ही उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।