बड़ी बात यह है कि पासपोर्ट बनवाने के लिए स्थानीय थाने से पुलिस सत्यापन कराना पड़ता है। दिलावर का पासपोर्ट 2015 में रायपुर से बना है। इससे पहले उसका पुलिस सत्यापन हुआ होगा? लेकिन इस दौरान भी पुलिस को उसके बारे में पता नहीं चल पाया। इससे पुलिस के सूचना तंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं। आखिर दूसरे देश के नागरिकों के इतनी आसानी से तमाम दस्तावेज कैसे बन जा रहे हैं। इससे पहले भी तीन बांग्लादेशी युवक पकड़े जा चुके हैं।
वापस भेजने की तैयारी
पुलिस ने दिलावर और उसकी पत्नी व बेटी के खिलाफ भारत में अवैध रूप से रहने और अन्य धाराओं में अपराध दर्ज किया है। तीनों को वापस बांग्लादेश भेजने की तैयारी है। इसके लिए कानूनी प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जा रही है।
मास्टरमाइंड अब तक फरार
फरवरी 2025 में एटीएस की टीम ने टिकरापारा इलाके से तीन बांग्लादेशी युवक मोहम्मद इस्माइल, शेख अकबर और शेख साजन को गिरफ्तार किया था। तीनों टिकरापारा के मिश्रा बाड़ा ताजनगर में रहते थे। तीनों युवकों को रायपुर लाने और उन्हें विदेश भेजने के लिए पासपोर्ट बनाने वाले मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी नहीं हुई है। वहीं, मोहम्मद दिलावर के लिए भी फर्जी अंकसूची और पासपोर्ट बनवाने वाले का पता नहीं चल पाया है। रायपुर सहित दूसरे शहरों में भेजने कई एजेंट हैं सक्रिय
बांग्लादेशियों को रायपुर सहित दूसरे शहरों तक पहुंचाने वाले कई एजेंट सक्रिय हैं। ये सुनियोजित ढंग से बांग्लादेश की सीमा से उन्हें पश्चिम बंगाल लाते हैं। यहां कुछ समय रहने के बाद मुंबई या नागपुर भेजते हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़ के रायपुर या दूसरे शहरों में भेजा जाता है। ये किराए के मकान में रहते हैं और छोटा-मोटा काम करते हैं। इसके बाद स्थानीय एजेंट उनके पहचान संबंधित दस्तावेज जैसे फर्जी अंकसूची, आधार नंबर, पासपोर्ट आदि बनवा देते हैं। इसके बाद ये खुद को स्थानीय बताते हैं।