डॉक्टरों के काम के मूल्यांकन के लिए तीन सदस्यीय मूल्यांकन सेल का गठन भी किया गया है। ये सेल हर माह गूगल शीट पर यूनिटवाइज डॉक्टरों के काम का ब्यौरा भेजेगा।
CG Doctors: मेडिकल कॉलेजों को निर्देश
CG Medical College: डॉक्टरों के परफार्मेंस के अनुसार उनका वर्गीकरण भी किया जाएगा। इसके बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सीएमई, डीएमई, डीन व अधीक्षक इस पर चर्चा करेंगे। डॉक्टरों की कमी के दौर में कितने डॉक्टरों पर ड्यूटी को लेकर सख्ती की जाएगी, ये देखने वाली बात होगी।
कमिश्नर
मेडिकल एजुकेशन किरण कौशल ने सभी डीन व अस्पताल अधीक्षकों को पत्र लिखकर डॉक्टरों का मूल्यांकन तत्काल शुरू करने को कहा है। हर माह के पहले सप्ताह में डॉक्टरों के काम की जानकारी सीएमई कार्यालय भेजी जाएगी। वहीं, माह के दूसरे सप्ताह में वीसी के माध्यम से चर्चा होगी।
कई बार त्रस्त होकर लामा करवाते हैं मरीज
दरअसल, लामा व डामा के केस में परिजन मरीज को
आंबेडकर अस्पताल से रिफर करवाकर किसी निजी अस्पताल में ले जाते हैं। इस तरह के केस में कई बार पर्याप्त इलाज नहीं मिलने की बात भी सामने आती रही है। यही नहीं, कुछ जूनियर डॉक्टर लामा को हथियार बनाकर मरीजों को जबर्दस्ती अस्पताल से चले जाने को कहते हैं। इसमें एक नोटशीट बनती है, जिसमें अटेंडेंट को हस्ताक्षर करना होता है।
अब डॉक्टरों को ये बताना होगा कि उनकी यूनिट में हर माह में कितने मरीज लामा व डामा हो रहे हैं। किसी मरीज की मौत हुई है तो भी उन्हें बताना होगा? हालांकि इसमें नोट करने वाली बात तो है, लेकिन अगर मरीज गंभीर स्थिति में अस्पताल आए तो इसमें डॉक्टरों की लापरवाही नहीं मानी जाएगी। फिर भी यूनिटवाइज मरीजों की मौत की संख्या से कुछ सवाल उठ सकते हैं।
किस सर्जन ने कौनसी सर्जरी की, कोई कॉम्प्लीकेशन तो नहीं हुआ
सर्जिकल विभाग के
डॉक्टरों के लिए अलग गाइडलाइन जारी की गई है। सर्जन को बताना होगा कि कौनसी सर्जरी की, सर्जरी या उसके बाद कॉम्प्लीकेशन तो नहीं हुआ? यही नहीं ये भी बताना होगा कि कितनी सर्जरी की और सर्जरी के दौरान या बाद में कितने मरीजों की मौत हुई?
पड़ताल में पता चला है कि वर्तमान में यूनिवाइज रिपोर्ट तो बनती है, लेकिन इतनी सख्ती नहीं है। ये रिपोर्ट अधीक्षक या डीन कार्यालय तक जाती है और एमआरडी सेक्शन में जमा हो जाती है। डॉक्टरों का मूल्यांकन नहीं किया जाता। यही कारण है कि कुछ डॉक्टर नाम की नौकरी करते देखे जा सकते हैं।
रिसर्च का टॉपिक और कितने पब्लिकेशन हुए?
डॉक्टरों को अब रिसर्च का टॉपिक और कितने रिसर्च का पब्लिकेशन हुआ, ये भी जानकारी भेजनी होगी। जर्नल का नाम, कॉन्फ्रेंस में साइंटिफिक प्रेजेंटेशन भी बताना होगा। कॉन्फ्रेंस कहां हुआ या क्या अवार्ड मिला, गूगल शीट में ये जानकारी देनी होगी। काम करने वालों के लिए परेशानी नहीं
‘पत्रिका’ ने कुछ डॉक्टरों से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि काम करने वाले डॉक्टरों के लिए यह कोई डरने वाली बात नहीं है। डरना तो उन डॉक्टरों को चाहिए, जो समय बिताने के लिए कॉलेज या
अस्पताल आते हैं। यानी जिनका पूरा ध्यान प्राइवेट प्रेक्टिस पर होता है। उन्हें अब बताना होगा कि कितने भर्ती हुए, कितने डिस्चार्ज, बेड की क्या स्थिति है? हाल में डीन ने सभी एचओडी को पत्र लिखकर इस तरह की जानकारी मांगी थी। चर्चा है कि डीन के कदम के बाद संचालनालय ने यह कदम उठाया है।