Chhattisgarh News: ऐसा है प्रदेश के मेडिकल कॉलेज का हाल
प्रदेश में एडवांस व हाईटेक इलाज केवल राजधानी स्थित आंबेडकर अस्पताल तक सिमटकर रह गया है। प्रदेश के 10 सरकारी मेडिकल कॉलेज भी रेफरल सेंटर की तरह है। केस क्रिटिकल हो तो मरीजों को रायपुर रेफर कर दिया जाता है। हार्ट, लिवर, किडनी, गेस्ट्रो, प्लास्टिक सर्जरी संबंधी बीमारियों का इलाज केवल डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में होता है। मतलब साफ है कि प्रदेश में सुपर स्पेशलिटी इलाज की सुविधा भी राजधानी में सिमटकर रह गई है। बिलासपुर में कहने को तो सरकारी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल है, लेकिन वहां कुछ विभागों में ही ओपीडी में मरीजों का इलाज किया जा रहा है। हार्ट की एंजियोग्राफी या एंजियोप्लास्टी अभी शुरू नहीं हुई है। दरअसल, वहां कैथलैब यूनिट पूरी तरह तैयार नहीं है। यह यूनिट तैयार भी हो जाएगी तो इसे करने के लिए कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है। जगदलपुर का सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भी शुरू नहीं हो पाया है। वहां बिल्डिंग तो तैयार है, लेकिन डॉक्टर व जरूरी स्टाफ की कमी के कारण अस्पताल अधर में है।
सेटअप में केवल 2 हजार पद स्वीकृत
प्रदेश में फिलहाल डॉक्टरों के 2 हजार पद का सेटअप है। इसमें भी ये पूरा भरा नहीं है। आने वाले दिनों में डॉक्टरों के खाली पद भरने में मदद मिलेगी। दरअसल, अब प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 10 व निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 5 समेत 15 पहुंच गई है। अभी हर साल हजार से ज्यादा डॉक्टर निकल रहे हैं।
हर साल 2 हजार के आसपास डॉक्टर निकलेंगे
तीन साल बाद हर साल 2 हजार के आसपास डॉक्टर निकलेंगे। इसमें ज्यादातर डॉक्टर तो निजी अस्पताल या कॉलेज ज्वॉइन कर सकते हैं। कई सरकारी अस्पताल ज्वॉइन करेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, आबादी के हिसाब से डॉक्टर जरूरी है, हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार डॉक्टरों की कमी न केवल प्रदेश में बल्कि, दूसरे राज्यों में भी है।
अस्पतालों की ओपीडी में हर साल 65 लाख से ज्यादा मरीज
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में हर साल 65 से 70 लाख से ज्यादा मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इनमें 20 लाख पुराने मरीज थे। ये आंकड़ा 2023-24 के हैं। आने वाले दिनों में भी मरीजों की संख्या बढ़ती जाएगी। मरीज हर साल बढ़ रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों की संख्या मरीजों के अनुपात में नहीं बढ़ रही है। इस कारण एक डॉक्टर को ज्यादा से ज्यादा मरीज देखने पड़ रहे हैं। मरीजों का दबाव इतना होता है कि एक डॉक्टर, मरीज पर ज्यादा फोकस नहीं कर पाता। यानी जो समय मरीजों को मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा है। इसका नतीजा ये हो रहा है कि डॉक्टरों पर वर्कलोड बढ़ रहा है। पूरा वर्कलोड मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में है। जिला अस्पतालों में भी वर्कलोड है, लेकिन ये रेफरल सेंटर बने हुए हैं।
रिटायर्ड डीएमई डॉ. विष्णु दत्त ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के मापदंड के अनुसार, प्रदेश में डॉक्टरों की संख्या कम तो है, लेकिन आने वाले दिनों में डॉक्टरों की संख्या बढ़ेगी। नए मेडिकल कॉलेज खुले हैं, जहां यूजी व पीजी की सीटें बढ़ी हैं। आबादी की तुलना में कम डॉक्टर होने से वर्कलोड तो बढ़ता ही है। जिला अस्पतालों को भी मजबूत बनाए जाने की जरूरत है। अभी मरीजों का ज्यादातर दबाव मेडिकल कॉलेज अस्पतालों पर है।