सीएमई को लिखे पत्र में ये भी कहा था कि कॉलेज में पीजी की सीटें हैं इसलिए जेआर के पद की जरूरत नहीं है। हालांकि नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) कॉलेज के निरीक्षण के दौरान मान्यता के लिए जेआर की भी काउंटिंग करता है। मतलब साफ है कि सभी मेडिकल कॉलेजों के सेटअप में फैकल्टी में सीनियर रेजिडेंट (एसआर) व जेआर के पद भी शामिल हैं। इसके बाद भी रायगढ़ कॉलेज प्रबंधन ने पद खत्म करने के लिए नए विवाद को जन्म दे दिया।
इस विवाद के बाद रेगुलर व संविदा में सेवाएं दे रहे डॉक्टरों में हड़कंप की स्थिति थी। हालांकि पत्रिका को चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि ये पद खत्म नहीं किए जाएंगे। एक पद स्वीकृत कराने के लिए काफी समय लग जाता है। ऐसे में पहले से सेटअप में मंजूर पद यथावत रहेंगे।
सरकारी कॉलेजों में जेआर के हजार से ज्यादा पद मंजूर
प्रदेश के 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जेआर के करीब एक हजार पद मंजूर है। जेआर के लिए वैसे तो शैक्षणिक योग्यता एमबीबीएस है, लेकिन कुछ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमडी मेडिसिन करने के बाद भी जेआर के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। वहीं कुछ जिला अस्पतालों में एमडी मेडिसिन या रेडियो डायग्नोसिस, सर्जरी विषय में पीजी करने के बाद जेआर या मेडिकल अफसर बने हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे में जेआर के पदों को विलोपित किया जाना सही नहीं होगा।
एमबीबीएस के बाद छात्रों को दो साल के लिए बांड पर रखा जाता है। उन्हें मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पतालों व सीएचसी में जेआर बनाया जाता है। जब पद ही विलोपित हो जाएंगे तो उन्हें कहां पदस्थ किया जाएगा? छोटे मेडिकल कॉलेजों में जहां, पीजी की सीटें कम हो, वहां जेआर इलाज भी करते हैं। हालांकि नेहरू मेडिकल जैसे बड़े कॉलेज में जेआर दवा की पर्ची बनाते हैं।
रायगढ़ में जेआर के 55 पद, इनमें रेगुलर व संविदा भी
रायगढ़ कॉलेज में जेआर के 55 पद स्वीकृत हैं। इनमें 52 सेवाएं दे रहे हैं। इनमें रेगुलर के अलावा संविदा व बांडेड जेआर शामिल हैं। वहीं कॉलेज के 10 विभागों में 26 पीजी की सीटें हैं। आने वाले दिनों में 5 विभागों में 24 पीजी सीटें शुरू करने के लिए एनएमसी को आवेदन भी किया गया है। पत्र में कहा गया था कि एनएमसी पीजी छात्रों को जेआर मानती है इसलिए कॉलेज में स्वीकृत नियमित पदों की जरूरत नहीं है। इसलिए इन पदों को सरेंडर करना उचित होगा। यही नहीं नियमित जेआर को नए कॉलेजों में भेजा जाना उचित होगा, जहां पीजी कोर्स नहीं चल रहा है। या स्वास्थ्य विभाग के सेटअप में जिला या अन्य अस्पतालों में भेजा जाना उचित होगा। इससे जेआर को दिए जाने वाले वेत्तन व भत्ते की बचत होगी। साथ ही बचे पैसे को पीजी छात्रों को स्टायपेंड के रूप में दिया जा सकेगा। कार्यरत जेआर को दूसरे कॉलेजों व स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों में ट्रांसफर करने का भी अनुरोध किया गया है।