मरीजों की जान की कोई कीमत है या नहीं, बड़ा सवाल
आयुष्मान भारत योजना की निगरानी करने वाली स्टेट नोडल एजेंसी (एसएनए) ने डेढ़ माह पहले 10 करोड़ रुपए अस्पताल को दिए थे। अस्पताल प्रबंधन ने भुगतान करने के लिए कमिश्नर कार्यालय से मार्गदर्शन मांगा था। 15 दिन पहले कमिश्नर कार्यालय ने क्यूरी पूछी थी कि टेंडर किस नियम के तहत किया गया, कितने वेंडर भाग लिए, कब-कब खरीदी गई, भंडार क्रय नियम का पालन किया गया या नहीं। बड़ा सवाल ये उठता है कि जब चिकित्सा शिक्षा संचालनालय के बड़े अधिकारी ही बोल रहे हैं कि भुगतान का काम अस्पताल व कॉलेज का है तो फाइल एक माह तक क्यों अटकाई गई? क्यों अस्पताल से क्यूरी मांगी गई? अब क्यों नियमानुसार भुगतान करने कहा जा रहा है। ऐसा लगता है कि मरीजों की जान की कोई कीमत नहीं है। मरीज भटकता रहे, कर्ज लेकर निजी अस्पतलों में इलाज कराए या मरन्नासन स्थिति में पहुंच जाए, किसी को कोई मतलब नहीं।जरूरतमंद मरीज ही आते हैं अस्पताल, फिर बेपरवाही क्यों
आंबेडकर अस्पताल में इलाज के लिए जरूरतमंद मरीज ही आते हैं, फिर शासन-प्रशासन बेपरवाही क्यों कर रहा है? अस्पताल के डॉक्टरों के बीच ही इस बात की चर्चा है कि कहीं सुपर स्पेशलिटी विभागों को बंद करने की तैयारी तो नहीं चल रही है। दरअसल जिन तीन विभागों में मरीजों का इलाज सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है, उसमें तीन विभाग सुपर स्पेशलिटी है। कार्डियक सर्जरी, कार्डियोलॉजी व रेडियोलॉजी में डीएसए मशीन में मरीजों का इलाज करने वाला डॉक्टर सुपर स्पेशलिस्ट है। ऑर्थो ही स्पेशलिस्ट विभाग में आता है।वेंडर को शनिवार तक भुगतान
वेंडर को शनिवार को भुगतान कर दिया जाएगा ताकि जरूरी सामान व इंप्लांट की सप्लाई होने लगे। कार्डियोलॉजी व कार्डियक सर्जरी विभाग में पिछले माह करीब 77 केस हुए हैं। स्पेशल केस ही प्रभावित हुए हैं। हिप-नी के लिए भी जल्द टेंडर किया जाएगा।डॉ. संतोष सोनकर, अधीक्षक आंबेडकर अस्पताल