Rajasthan: राजसमंद की लाइफलाइन झील की घुट रही सांसें… जिम्मेदारों का ‘मौन व्रत’,जानें पूरा सच
राजसमंद की शान कही जाने वाली ऐतिहासिक राजसमंद झील इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है।
जहां कभी स्वच्छ जल की लहरें लहराती थीं, वहीं अब चारों ओर गंदगी का अंबार है, झील के किनारे कचरे का डंपिंग ज़ोन बन चुके हैं और उसके सीने में निर्माण मलबा ठूंस-ठूंसकर भरा जा रहा है।
राजसमंद की शान कही जाने वाली ऐतिहासिक राजसमंद झील इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। जहां कभी स्वच्छ जल की लहरें लहराती थीं, वहीं अब चारों ओर गंदगी का अंबार है, झील के किनारे कचरे का डंपिंग ज़ोन बन चुके हैं और उसके सीने में निर्माण मलबा ठूंस-ठूंसकर भरा जा रहा है। यह झील सिर्फ एक जलस्रोत नहीं, बल्कि राजसमंद शहर की लाइफलाइन है और दुर्भाग्यवश, इस जीवनरेखा को ही धीरे-धीरे मौत की ओर धकेला जा रहा है। कई इलाकों में झील के पेटे में मकानों का मलबा सीधे डाला जा रहा है। झील के किनारों पर निवासरत लोग वेस्ट समान झील किनारे पर ही डाल रहे हैं।
यहां तक की निर्माण की वेस्ट सामग्री भी झील के पेटे में डाली जा रही है। स्थानीय प्रशासन और नगर परिषद की निष्क्रियता के कारण यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। झील के समीप रहने वाले लोग और झील प्रेमी बताते हैं कि ना तो इस पर कोई सतत निगरानी है, ना ही कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश। एक तरफ तो राज्य सरकारें जल संरक्षण के बड़े-बड़े दावे कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर जमीनी सच्चाई यह है कि झील की आत्मा को मलबे और गंदगी में दबाया जा रहा है।
…तो बहुत देर हो जाएगी
राजसमंद झील की बिगड़ती हालत केवल एक झील की नहीं, हमारे सोच और व्यवस्था की हार की कहानी है। यह वह समय है जब सिर्फ झील प्रेमियों को नहीं, बल्कि हर नागरिक, हर विभाग, हर जनप्रतिनिधि को झील के लिए खड़ा होना पड़ेगा। वरना आने वाली पीढ़ी केवल इतिहास की किताबों में पढ़ेगी कि कभी राजसमंद में एक झील हुआ करती थी, जो पूरे शहर को जीवन देती थी।
प्रशासनिक सुस्ती या मौन साझेदारी?
यह बात केवल स्थानीय जनों के बर्ताव तक सीमित नहीं है। सवाल प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर हैं। क्या नगर परिषद को झील में फेंके जा रहे कचरे की खबर नहीं है? क्या निर्माण मलबे का यहां पहुंचना अनजाने में हो रहा है? क्या झील क्षेत्र में मलबा गिराने वालों के खिलाफ कभी चालान, जुर्माना या एफआईआर दर्ज हुई?
समाधान क्या है?
झील के चारों ओर नियंत्रित क्षेत्र घोषित कर निर्माण गतिविधियों पर रोक। झील में कचरा या मलबा फेंकने पर कड़ी कानूनी कार्यवाही। साप्ताहिक सफाई अभियान और स्थानीय लोगों को जोड़ने वाली योजनाएं। स्कूलों और कॉलेजों में झील संरक्षण को लेकर जागरूकता कार्यक्रम। सौर ऊर्जा चालित जल शोधक इकाइयां लगाकर झील के पानी को साफ रखने की पहल।
‘अपनों’ ने ही छोड़ा साथ: झील के पेटे में फैंका जा रहा कचरा
हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि झील के किनारे जाकर कपड़े धोना, साबुन और डिटर्जेंट युक्त पानी को सीधे झील में बहाना, प्लास्टिक की बोतलें और पॉलिथीन झील में फेंकना अब दैनिक दृश्य बन चुका है। यह और भी दुखद तब हो जाता है जब ये सब कुछ उन्हीं स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है जिनके जीवन का आधार यह झील है। झील प्रेमी कहते हैं कि ‘‘शायद हमें खुद ही अपनी विरासत की कद्र नहीं है। अन्यथा कोई भी व्यक्ति इस ऐतिहासिक धरोहर को यूं गंदगी से नहीं पाटता।’’
झील प्रेमियों की व्यथा: ‘अगर अब भी नहीं चेते तो!’
राजसमंद के कई सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद और झील प्रेमी इस दुर्दशा से आहत हैं। स्थानीय झील बचाओ अभियान से जुड़े एक सदस्य ने बताया, ‘‘झील सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, यह राजसमंद की पहचान है। यह मरी तो आने वाली पीढ़ियों को प्यास, प्रदूषण और पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने चेताया कि यदि प्रशासन ने तुरंत सत कदम नहीं उठाए, तो अगले 5-10 वर्षों में यह झील अवैध कब्जों और गंदगी का दलदल बनकर रह जाएगी।
इतिहास के पन्नों से: कभी समृद्धि की मिसाल थी झील
राजसमंद झील का निर्माण 17वीं सदी में मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने करवाया था। यह न केवल जल संग्रहण का स्रोत रही है, बल्कि इसके किनारे पर लगे राजप्राशस्ति शिलालेख आज भी इतिहासकारों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यह झील किसानों के खेतों को सींचने, शहरवासियों को पीने का पानी देने और धार्मिक आयोजनों का केंद्र रही है। आज यह वही झील है जिसके किनारे कचरे के ढेर में तब्दील होते जा रहे हैं।
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