सांसेरा आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम, यहां जल में निवास करती जलदेवी
राजसमंद जिले के रेलमगरा उपखण्ड में एक गांव हैं सांसेरा। यहां पर जलदेवी मंदिर िस्थत है। इस मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है, कई मान्यताएं इससे जुड़ी हुई है। मंदिर चारों ओर जल से घिरा है।
यहां के निवासी नागजी भाई प्रजापत ने बताया कि माता के मंदिर के चारों ओर पानी है। यहां आसन लगाकर मां विराजित है। ये मंदिर एक हजार वर्ष से भी पुराना बताया जा रहा है। पानी के बीच सेतु और बीचों-बीच मां जलदेवी बिराजमान है।
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यहां मां के दो मंदिर हैं। एक सामने खड़ी प्रतिमा के रूप में और दूसरी जल में समाहित है। दोनों के बीच स्नेह की ऐसी डोर बंधी है। जिससे भक्त आस्था के साथ यहां खींचे चले आते हैं।
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जल में विराजित मां जलदेवी की प्रतिमा के दर्शन हो पाना बेहद ही मुश्किल है। उन्होंने बताया कि अपने जीवनकाल में केवल दो बार ही माता के दर्शन हुए हैं। दो बार तालाब का पानी कम हुआ तो मां ने दर्शन दिए। उसके बाद से कभी नहीं हो पाए।
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इतिहाकारों व लोगों का कहना है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर ने यहीं पर डेरा डाला था। चार चौकियां बनाई। मोही में स्थापित की चौकी का मोर्चा खुद अकबर ने संभाला। ग्रामीणों का दावा है कि महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ के दो साथियों के साथ यहां आए और सोते शत्रु पर वार करने की बजाय अकबर की मूंछ काटकर बाल पैर में रख दिए थे। सुबह हाथ में बंधी चिट्ठी और कटी मूंछ देख अकबर को मेवाड़ छोड़ जाना पड़ा।
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यहां मां सास और बहू के रूप में बिराजमान है। छोटी नवरात्रि काे यहां तीन दिन का मेला भरता है। कहते है यहां साल में एक बार पानी का दीपक जलता है। मां की महर ऐसी है कि अकाल में भी तालाब कभी सूखता नहीं है। मंदिर का इतिहास आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम है।
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मंदिर की सेवा करने वाले लोगों ने बताया कि यहां पर अखण्ड जोत जलती है। ये जोत 12 माह लगातार निर्बाध जलती रहती है। ये मां की ही कृपा है। उन्होंने बताया कि यहां भाव के साथ जो भी व्यक्ति यहां आता है। मां उसके सभी काम सफल करती है।
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मां के दर्शन के लिए पाथवे बनाया हुआ है और दोनों और रैलिंग भी है। मूल रूप से माता तो जल में विराजित हैं। उनकी छवि उपर बनी छतरी पर उकेरी गई है। ग्रामीणों व इतिहासकारों की मानें तो ये तालाब 1300 बीघा में फैला हुआ है।