यह कहानी है भगवतगढ़ निवासी विमला देवी की, जिसके बेटे की शादी 12 मई को तय थी। रीति-रिवाज के अनुसार, शादी से पहले मायरा भरने की परंपरा होती है, जिसमें मायके पक्ष से बहन को आर्थिक व वस्त्र सहयोग दिया जाता है। विमला अपने मायके गोगोर गांव पहुंची और भाइयों को निमंत्रण दिया, लेकिन उन्होंने मायरा भरने से इंकार कर दिया। यह सुनकर सीता टूट गई।
मन में गहरा दुख लिए, विमला देवी की गोगोर गांव की मस्जिद पहुंची और वहां एक छाबड़ी (टोकरी) रखकर निमंत्रण दे आई। मुस्लिम समाज ने इसे भाईचारे का प्रतीक समझते हुए तुरंत बैठक बुलाई और फैसला किया कि वे विमला देवी का मायरा भरेंगे।
सोमवार देर रात गांव के गद्दी समाज के पंच-पटेलों और मुस्लिम समाज के लोगों ने आपसी सहयोग से सीता के घर पहुंचकर मायरा भरा। इस मायरे में 51 हजार रुपये नगद और 45 जोड़ी नए कपड़े शामिल थे। गांव के प्रमुख नागरिकों में साबिर सेठ और साजिद ने 31 हजार रुपये का सहयोग दिया। वहीं, हाजी इलियास, नूरुद्दीन, साबू, अमीर, आमीन, शकील, इमरान और आबिद समेत कई लोगों ने मिलकर भाईचारे की इस मिसाल को जीवंत कर दिया।
विमला देवी ने भावुक होकर मुस्लिम भाइयों का तहेदिल से स्वागत किया। पूरे गांव में यह घटना चर्चा का विषय बन गई और सभी ने इस आपसी सौहार्द की सराहना की। जहां एक ओर खून के रिश्तों ने साथ छोड़ दिया, वहीं इंसानियत ने रिश्ते से बढ़कर निभाया भाई का धर्म।