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युद्ध, स्ट्रीट लाइट्स और माइक्रोप्लास्टिक्स से मधुमक्खियों को नया खतरा

यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध सहित संघर्षों को अगले दशक में परागण करने वालों के लिए 12 सबसे बड़े खतरे माना गया है।

जयपुरMay 21, 2025 / 06:41 pm

Shalini Agarwal

जयपुर। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि मधुमक्खियों को युद्ध, स्ट्रीट लाइट्स और माइक्रोप्लास्टिक्स से नए खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध सहित संघर्षों को अगले दशक में परागण करने वालों के लिए 12 सबसे बड़े खतरे माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, युद्ध क्षेत्र, माइक्रोप्लास्टिक्स और स्ट्रीट लाइट्स अब मधुमक्खियों की संख्या पर नए खतरे के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं।
मधुमक्खी विशेषज्ञों ने अगले दशक में परागण करने वालों को होने वाले 12 सबसे बड़े खतरे की सूची तैयार की है, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “Emerging Threats and Opportunities for Conservation of Global Pollinators” में शामिल किया गया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया भर में बढ़ते युद्ध और संघर्ष मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसमें यूक्रेन युद्ध भी शामिल है, जिसने देशों को कम फसलें उगाने के लिए मजबूर किया है, जिससे परागण करने वालों को पूरे सीजन में विविध प्रकार के खाद्य स्रोत नहीं मिल पा रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक कण यूरोप भर में मधुमक्खियों के छत्तों को प्रदूषित कर रहे हैं। 315 शहद मधुमक्खी कॉलोनियों पर किए गए परीक्षणों से यह पता चला कि अधिकतर छत्तों में सिंथेटिक सामग्री, जैसे कि PET प्लास्टिक, पाई गई। स्ट्रीट लाइट्स से निकलने वाली कृत्रिम रोशनी ने रात्रि में परागण करने वाली मधुमक्खियों के फूलों पर आने की संख्या में 62% की कमी कर दी है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण ने उनकी जीवित रहने, प्रजनन और वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
कृषि में उपयोग होने वाले एंटीबायोटिक्स भी अब मधुमक्खियों के छत्तों और शहद में मिल चुके हैं। इनका परागणकर्ताओं के व्यवहार पर भी असर पड़ा है, जैसे कि उनके फूलों पर जाने और शिकार करने की प्रवृत्ति में कमी। कीटनाशकों के “कॉकटेल्स” भी महत्वपूर्ण खतरे के रूप में सामने आ रहे हैं। हालांकि कुछ कीटनाशकों को अब मधुमक्खियों और अन्य वन्यजीवों के लिए “सुरक्षित” सीमा तक नियंत्रित किया गया है, लेकिन शोध से यह पता चला है कि ये कीटनाशक अन्य रसायनों के साथ मिलकर खतरनाक प्रभाव पैदा कर सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के प्रोफेसर सिमोन पॉट्स, जो रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हैं, ने कहा: “नए खतरों की पहचान करना और परागण करने वालों की सुरक्षा के उपाय जल्दी अपनाना जरूरी है ताकि और बड़े नुकसान से बचा जा सके। यह सिर्फ संरक्षण का मामला नहीं है, बल्कि परागणकर्ता हमारे खाद्य तंत्र, जलवायु लचीलापन और आर्थिक सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। परागणकर्ताओं की सुरक्षा, दरअसल, हमारी खुद की सुरक्षा है।”
रिपोर्ट के लेखकों ने मधुमक्खियों की सुरक्षा के लिए कई उपाय सुझाए हैं, जिनमें एंटीबायोटिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून, परागणकर्ताओं को प्रभावित करने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना, सौर पार्कों में फूलों से भरपूर आवास बनाना, और परागणकर्ताओं के पोषण के लिए अधिक अच्छा पराग और शहद देने वाली फसलों की खेती शामिल है।
रिपोर्ट की सह-लेखिका डॉ. दीपा सेनापति, जो यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग से हैं, ने कहा: “इन खतरों से निपटने के लिए सभी की मदद की जरूरत होगी। हमें अपने प्राकृतिक आवासों को बनाए रखना, प्रबंधित करना और सुधारना होगा ताकि परागणकर्ताओं के लिए सुरक्षित स्थान बनाए जा सकें। व्यक्तिगत प्रयास, जैसे कि हमारे बगीचों में खाना और घोंसला बनाने के स्थान उपलब्ध कराना, बड़ी मदद कर सकते हैं। लेकिन नीतिगत बदलाव और व्यक्तिगत कदमों को एक साथ काम करना होगा, ताकि बागों, खेतों, सार्वजनिक स्थानों और व्यापक परिदृश्यों को भी परागणकर्ता-मित्रवत आवासों में बदला जा सके।”

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