माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं, ताकि आदेशों की खानापूर्ति न हो और इसका वास्तविक असर जमीनी स्तर पर दिखे। निदेशक ने स्पष्ट किया है कि अधिकारी केवल उपस्थिति दिखाने के लिए नहीं, बल्कि रात्रि 6 बजे से सुबह 6 बजे तक गांव में ही रुकें। यह सुनिश्चित करने के लिए विभागीय पोर्टल पर रात्रि विश्राम की रिपोर्ट दर्ज करना अनिवार्य किया गया है। शिक्षक संघ राष्ट्रीय के पीपलू तहसील अध्यक्ष दिनेश कुमार सुनार, सियाराम के ब्लॉक अध्यक्ष मोरपाल गुर्जर ने बताया कि पीईईओ व उच्च अधिकारियों के रात्रि विश्राम से सरकारी स्कूलों का ग्रामीणों व अभिभावकों से जुड़ाव बढ़ेगा। स्टूडेंट्स के अध्ययन के स्तर के साथ स्कूल में मूलभूत सुविधाओं पर भी अभिभावकों से विचार विमर्श हो सकेगा। वहीं इनकी समस्या सुनी जा सकेगी।
करने होंगे यह कार्य
विद्यालयों का दौरा: भवन की स्थिति, शिक्षण सामग्री और स्टाफ की मौजूदगी की जांच।
शिक्षण गुणवत्ता का मूल्यांकन: बच्चों की पढ़ाई, समझ और सीखने के स्तर का अवलोकन।
ग्रामीणों के साथ बैठकें: अभिभावकों और पंचायत प्रतिनिधियों से सीधी बातचीत।
फीडबैक: बच्चों, माता-पिता और ग्रामीणों से सुझाव लेना।
बुनियादी समस्याओं की पहचान: जैसे पेयजल, शौचालय, बिजली, बैठने की व्यवस्था आदि। इन सभी गतिविधियों की रिपोर्ट विभागीय पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि कार्य की पारदर्शिता बनी रहे।
कम रिपोर्टिंग पर जारी हुए निर्देश
शिक्षा अधिकारियों को गांवों में रात्रि विश्राम के 24 अप्रेल को निर्देश जारी किए गए थे। इसके बाद 29 मई को निदेशालय ने इस संबंध में आदेश जारी किए। लेकिन जून में आदेशों की अनुपालना की समीक्षा हुई तो रिपोर्टिंग कम मिली। इस पर शिक्षा निदेशालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए फिर से निर्देश जारी किए हैं। सभी संभागीय संयुक्त निदेशकों और मुख्य जिला शिक्षा अधिकारियों को सतत पर्यवेक्षण व प्रभावी मॉनिटरिंग के निर्देश दिए गए हैं, ताकि इस योजना का क्रियान्वयन ईमानदारी और पारदर्शिता से हो।
क्यों जरूरी है यह योजना?
राज्य के कई सरकारी स्कूल अभी भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं जैसे जर्जर भवन, शिक्षक अनुपस्थिति, पानी की दिक्कत, शौचालयों की हालत आदि। अक्सर शिकायतें तब सामने आती हैं जब मीडिया में खबर बनती है या कोई दुर्घटना होती है। लेकिन इस योजना के जरिए अब नियमित निगरानी और संवाद के माध्यम से समस्याओं की पहचान पहले ही हो सकेगी।
ग्रामीणों की भूमिका भी होगी अहम
यह योजना ग्रामवासियों को भी शिक्षा प्रणाली का साझेदार बनाने की कोशिश है। अब जब अफसर सीधे गांव में रात बिताएंगे, तो पंचायत सदस्य, अभिभावक और सामाजिक कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका में आएंगे। इससे न केवल स्कूलों की स्थिति में सुधार आएगा, बल्कि प्रशासन और जनता के बीच भरोसा भी बढ़ेगा।