उत्तर प्रदेश के कानपुर के सीएमओ डॉक्टर हरीदत्त नेमी ने बताया कि डीएम को विभाग के डॉक्टर और कर्मचारी कान भर रहे हैं। उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी जाती है। वह जिम्मेदारी अनुशासन के साथ पूरी की जाती है। चार-पांच ऑडियो वायरल हो रहे हैं। जिनसे मेरा कोई संबंध नहीं है। हां उन्होंने यह कहा था कि एआई का जमाना है। सीएम डैशबोर्ड की मीटिंग के दौरान डीएम साहब ने कहा कि तुम तो जिंदा बैठे हैं। इसके बाद डीएम साहब ने उन्हें बाहर कर दिया।
दिसंबर महीने में ज्वॉइनिंग की
सीएमओ हरिदत्त नेमी ने बताया कि उनका ट्रांसफर 14 दिसंबर को हुआ था। 16 दिसंबर को उन्होंने ज्वाइन किया है। 20 दिसंबर को एक चिट्ठी मिली। जिसमें कहा गया था कि जेम फार्मा का एक करोड़ 60 लाख 47 हजार का पेमेंट कर दिया जाए। चार-पांच लोगों की टीम ने माल चेक किया तो 30 लाख का सामान कम पाया गया। स्टोर कीपर सुबोध कुमार यादव ने इस माल को खरीदा गया था। एनएचएम का काम आरएन सिंह देख रहे थे। यह पैसा एनएचएम मद का था। इसके अतिरिक्त सीनियर फाइनेंस ऑफिसर (एसएफओ) का नाम सामने आया। इन तीनों ने मिलकर गलत तरीके से बिड पास किया।
भुगतान के लिए एसएफओ ने लिखा पत्र
एसएफओ ने दिसंबर महीने में उन्हें पत्र लिखकर कहा कि सामान आ गया है। इनका भुगतान कर दिया जाए। इससे मामला और भी संदिग्ध हो गया। शिकायत जिलाधिकारी के पास पहुंची। डीएम साहब ने पत्र भेज कर निर्देश दिए थे जांच कर आख्या प्रस्तुत करें। डीएम के निर्देश पर जांच कमेटी बनाई गई। जिसमें पाया गया सही में जिसे बिड मिलना चाहिए उसे ना देकर सीबीआई चार्जशीटेड कंपनी को बिड दिया गया। जिनका आईटीआर भी 3 साल की जगह 2 साल का था। जिससे वंदना सिंह, सुबोध प्रकाश यादव और आरएन सिंह संदिग्ध हो गए।
120 पेज की जांच रिपोर्ट
सीएमओ ने बताया कि 120 पेज की रिपोर्ट उन्होंने डीएम के सामने प्रस्तुत किया। इस बीच बिना उनकी अनुमति के सुबोध प्रकाश यादव ने कंपनी को 15 दिन का एक्सटेंशन दे दिया। जिससे कि बाकी बचे माल की आपूर्ति किया जा सके। कंपनी में एक्सटेंशन मिलने के बाद उसने उन पर दबाव बनाया कि हमसे सामान लिया जाए। उन्हें एक्सटेंशन मिल गया। काफी ना-नुकुर के बाद अंततः सामान लेना पड़ा। इसके बाद फिर उनके ऊपर पेमेंट का दबाव बनाए जाने लगा।
फाइनेंस अधिकारी बदलने की मांग की
सीएमओ ने बताया कि उन्होंने जिलाधिकारी को चिट्ठी लिख कर मांग की कि मुझे कोई दूसरा फाइनेंस ऑफिसर दे दिया जाए। वर्तमान फाइनेंस ऑफिसर के साथ काम करना मुश्किल है। इस संबंध में उन्होंने शासन को भी पत्र लिखा था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
गलत तरीके से डॉक्टरों की मदद करते थे
डॉक्टर आरएन सिंह के हटाए जाने पर भी उन्होंने स्पष्टीकरण दिया। बोले आरएन सिंह, निरीक्षण के दौरान अनुपस्थित पाए जाने वाले उन डॉक्टरों की सैलरी भी निकाला करते थे। जबकि डीएम और स्वयं भी निरीक्षण करने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखते थे। डीएम के आदेश पर वह कार्रवाई करते थे। लेकिन इन तीनों ने मिलकर डीएम साहब के कान भर दिए।
सीएचसी चौबेपुर इंचार्ज 15 साल से तैनात
सीएमओ ने बताया कि सीएचसी चौबेपुर इंचार्ज डॉक्टर यशवर्धन सिंह 15 साल से कार्य कर रहे हैं। जो खुद जाते नहीं है और स्टाफ भी मर्जी से आता जाता है। निरीक्षण पाया गया कि 14 स्वास्थ्य कर्मी एब्सेंट है और उनकी अटेंडेंस लगी हुई है। डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद भी कोई नहीं आया। स्पष्टीकरण मार्ग गया तो उसका भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
स्वास्थ्य कर्मियों ने डीएम को गुमराह किया
एक सवाल के जवाब में सीएमओ ने कहा कि उनकी कार्रवाई से परेशान होकर इन्हीं लोगों ने डीएम साहब को गुमराह किया है। इसके बाद से उनके प्रति व्यवहार बदल गया। सीएमओ का कार्य बिना जिलाधिकारी के नहीं चल सकता है। क्योंकि जो भी योजनाएं आती हैं। जिलाधिकारी उनमें अध्यक्ष होते हैं। जितने भी जनप्रतिनिधि हैं। उनसे भी उनकी अच्छी लाइजनिंग है। उन्होंने कभी भी किसी का काम नहीं रोका है। फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के साथ खड़े हैं।