जब आस-पास महिलाओं के साथ हो रही घटनाएं देखीं, तो इस क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। साइकोलॉजी से पढ़ाई करने के बाद पुलिस परामर्श केंद्र पर जाकर महिलाओं की काउंसलिंग भी की। कई महिलाएं ऐसी मिलीं, जो अवसाद में थीं, उन्हें उस स्थिति से निकाला। काम के दौरान पूजा ने देखा कि केवल निम्र वर्ग नहीं, बल्कि मध्यम और उच्च वर्ग की महिलाओं के साथ भी अपराध हो रहे हैं और वह उनके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पातीं। तब उन्होंने काउंसलिंग के साथ ऐसी महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने का भी निश्चय किया और एलएलबी की।
पूजा कहती हैं कि महिला अधिकारों के लिए वह 2011 से वह यह कार्य कर रही हैं और अब तक 2000 से 2500 महिलाओं की काउंसलिंग कर चुकी हैं और करीब 1500 महिलाओं को न्यायिक प्रक्रिया में मदद कर चुकी हैं। वह कहती हैं रेप विक्टिम, पास्को पीड़ित, घरेलू हिंसा पीडि़त महिलाओं को कानूनी प्रक्रिया में मदद करती हैं। वह कहती हैं कि मेरे पास कोई महिला आती है, तो मैं एक ऐसा माहौल देने की कोशिश करती हूं, जहां वह अपनी बात कह पाए। पहले काउंसलिंग कर उसकी समस्या जानती हूं, फिर उसे सही निर्णय लेने में मदद करती हूं। अगर वह महिला पुलिस प्रक्रिया या कोर्ट केस करना चाहती है, तो उसमें भी उसकी मदद करती हूं। पूजा निर्भया फाउंडेशन के साथ मिलकर महिलाओं के पुर्नवास पर भी काम कर रही हैं। पूजा का कहना है कि उनके इस कार्य में उनके दोनों बेटों का पूरा सहयोग मिलता है।
पूजा कहती हैं कि महिलाओं के साथ शारीरिक, मानसिक, आर्थिक शोषण होता है। कई बार महिलाएं समझ ही नहीं पाती कि क्या हो रहा है। हम इसके लिए जागरुकता अभियान भी चलाते हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं को अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को रोकना है, तो पहले खुद आवाज उठानी होगी, तभी कोई उनकी मदद कर सकता है। सहायता लेने में हिचकिचाएं नहीं, बल्कि खुद फैसला करें कि आपको क्या चाहिए। पूजा को उनके समाज सेवा के कार्यों के लिए भोपाल रत्न अवॉर्ड, बेस्ट काउंसलर अवॉर्ड सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
संडे गेस्ट एडिटर : शिक्षा छोड़ी नहीं, समाज को जोड़ा, 8 गांवों की उम्मीद बनी पोखन

सरिता दुबे धमतरी (छत्तीसगढ़) के सरईभदर गांव की 24 वर्षीय पोखन आदिवासी समुदाय से आती हैं, जहां अक्सर लड़कियां 10वीं या 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद खेती-किसानी में लग जाती हैं। लेकिन पोखन ने इस परंपरा को तोड़ा। उन्होंने खेती को न चुनते हुए महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाना शुरू किया। उन्होंने 8 से अधिक गांवों की महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने में मदद की और पंचायतों व ग्राम सभाओं में उनकी भागीदारी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
पोखन बताती हैं, बचपन से देखती थी कि महिलाएं परिवार के निर्णयों में हिस्सा नहीं ले पातीं, उन्हें खुलकर बोलने की आज़ादी नहीं होती। यह देखकर बहुत दुख होता था और तभी मैंने तय कर लिया था कि मुझे महिलाओं और बच्चों के लिए काम करना है। 18 साल की उम्र में वह धमतरी की एक संस्थान से जुड़ीं। यहां संस्थान की लता नेताम ने उन्हें प्रशिक्षण दिया और सामाजिक कार्य के लिए प्रेरित किया। संस्थान की मदद से उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई भी पूरी की।
अपनी पढ़ाई के दौरान ही पोखन ने गरियाबंद ज़िले के छुरा ब्लॉक के टोनही डबरी गांव में काम शुरू किया। यहां उन्हें 20 ऐसी लड़कियां मिलीं, जो स्कूल छोड़ चुकी थीं। पोखन ने उन्हें दोबारा स्कूल में दाखिला दिलवाया और पढ़ाई शुरू कराई। यही से उनके सामाजिक कार्य की शुरुआत हुई और उन्हें आत्मविश्वास मिला।
पोखन ने पहले एक गांव में काम शुरू किया और फिर धीरे-धीरे 8 गांवों तक पहुंचीं। उन्होंने 80 से अधिक महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया और साथ ही उन्हें कोदो (एक पारंपरिक मोटा अनाज) की खेती करना सिखाया। इस पहल से महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बनीं बल्कि कुछ को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। आज ये महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं और आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं।
एक समय ऐसा भी आया जब गांव के कुछ लोग उनके विरोध में उतर आए। लेकिन गांव की वही महिलाएं, जिन्हें उन्होंने सशक्त बनाया था, उनके समर्थन में खड़ी हो गईं। अब पोखन की शादी हो चुकी है, लेकिन उन्होंने अपने कार्य को नहीं छोड़ा। आज भी वह गांव की बेटियों को पढ़ा रही हैं, महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं और पंचायतों में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रही हैं।