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अमेरिकी कोर्ट का बड़ा फैसला: हॉर्वर्ड को ट्रंप से 30 दिन की राहत, विदेशी छात्रों पर नहीं लगेगा बैन

Harvard Vs Trump immigration policy: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर प्रतिबंध से 30 दिन की राहत मिली है।

भारतMay 29, 2025 / 10:28 pm

M I Zahir

Harvard vs Trump immigration policy

अमेरिकी कोर्ट ने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी को ट्रंप से 30 दिन की राहत दी है। (फोटो: पत्रिका)

Harvard Vs Trump immigration policy: अमेरिका की एक संघीय अदालत ने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard university)को डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) प्रशासन की ओर से लगाए गए अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बैन से 30 दिन की बड़ी राहत दी है। अदालत ने साफ किया है कि जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक ट्रंप प्रशासन हॉर्वर्ड (Harvard vs Trump) के अंतरराष्ट्रीय छात्रों को निष्कासित नहीं कर सकता।

अदालत ने अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) को नोटिस दिया

यह फैसला हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से दायर उस याचिका पर आया है, जिसमें कहा गया था कि यदि विदेशी छात्रों की संख्या सीमित की जाती है, तो विश्वविद्यालय के 25% छात्र इससे प्रभावित होंगे। अदालत ने अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) को नोटिस देते हुए कहा कि वह अगले 30 दिन तक किसी भी सख्त कार्रवाई से बचे।

ट्रंप बनाम हॉर्वर्ड: मामला क्या है?

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में आरोप लगाया था कि हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी न केवल विदेशी छात्रों को बढ़ावा दे रही है, बल्कि चीन और अन्य देशों से जुड़े एजेंडा भी चला रही है। ट्रंप ने यह भी कहा कि आइवी लीग यूनिवर्सिटी में यहूदी विरोधी माहौल बढ़ रहा है और अकादमिक स्वतंत्रता की आड़ में देश विरोधी गतिविधियाँ हो रही हैं।

ट्रंप के सभी आरोप खारिज, हॉर्वर्ड की प्रतिक्रिया

हार्वर्ड ने ट्रंप के सभी आरोपों को खारिज करते हुए इसे “शिक्षा और अकादमिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला” बताया है। यूनिवर्सिटी के वकीलों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना और कानूनी प्रक्रिया के विदेशी छात्रों को निकालने का फैसला किया है, जो अमेरिकी संविधान के खिलाफ है।

आखिर क्या कहा है अदालत ने ?

जिला न्यायाधीश एलिसन बरोज़ ने कहा कि DHS को अपने आरोपों पर सफाई देने और हॉर्वर्ड को जवाब देने का पूरा मौका देना होगा। इसके लिए 30 दिन की मोहलत दी गई है। अमेरिकी अदालत ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को 30 दिन की संवैधानिक सुरक्षा देते हुए कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अंतरराष्ट्रीय छात्रों को बाहर नहीं कर सकता। कोर्ट के इस फैसले से उन हजारों छात्रों को राहत मिली है जो वीज़ा और पढ़ाई को लेकर अनिश्चितता में थे।

ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई “मौलिक अधिकारों” का हनन

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रंप प्रशासन की तरफ से की गई अचानक कार्रवाई “प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम” और “मौलिक अधिकारों” का हनन करती है। अदालत अब इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या हार्वर्ड के खिलाफ ट्रंप की कार्रवाइयाँ “राजनीतिक बदले” के तहत की जा रही हैं।

हॉर्वर्ड का बयान: शिक्षा की स्वतंत्रता की रक्षा की लड़ाई

“यह केवल एक विश्वविद्यालय की लड़ाई नहीं, बल्कि शिक्षा की स्वतंत्रता और अमेरिका में विविधता की रक्षा की लड़ाई है।”

छात्र संगठनों का समर्थन

छात्र संगठनों ने कहा, “हम कोर्ट के फैसले से खुश हैं। अब हम खुलकर पढ़ाई कर सकते हैं।”

विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया

ट्रंप प्रशासन ने बार-बार अकादमिक संस्थानों पर हमला किया है। यह निर्णय लोकतंत्र की जीत है।” DHS को 30 दिनों के भीतर कानूनी आधार और साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे। यदि ट्रंप प्रशासन हार्वर्ड को मान्यता समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ता है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। यह विवाद आने वाले चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, खासकर युवाओं और अप्रवासियों के बीच मुद्दा बन सकता है।

साइड एंगल: मामला सिर्फ शिक्षा का नहीं, इमिग्रेशन नीति का भी

ट्रंप प्रशासन की ओर से विदेशी छात्रों पर कार्रवाई अमेरिका की इमिग्रेशन नीति में कठोरता लाने की एक कड़ी है। हॉर्वर्ड जैसे विश्वविद्यालय जो दुनियाभर से मेधावी छात्र लाते हैं, वे अमेरिकी सॉफ्ट पावर और वैश्विक नेतृत्व का आधार रहे हैं।

हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों की संख्या

हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। हालांकि विश्वविद्यालय सटीक आंकड़े सार्वजनिक नहीं करता, लेकिन हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2024-25 शैक्षणिक वर्ष में लगभग 788 भारतीय छात्र हॉर्वर्ड में अध्ययन कर रहे हैं, जो कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है

बहरहाल डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड की ये टक्कर अब सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह अब अमेरिकी संविधान, प्रशासनिक नियमों और विदेशी छात्रों के भविष्य से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

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