सुरक्षा सेक्टर को मिलेगी मजबूती
डिफेंस और स्ट्रैटेजी की दृष्टि से देखें तो सबसे महत्त्वपूर्ण भारत के अमरीका के साथ वे चार फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स हैं जो भारत को अमरीका के मेजर स्ट्रैटेजिक पार्टनर की हैसियत तक लाए। इनमें से तीन पर डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ही हस्ताक्षर हुए थे। ये थे-लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेण्डम ऑफ एग्रीमेंट (लिमोआ), जो वर्ष 2015 में हस्ताक्षरित हुआ। इसके तहत दोनों देशों की सैन्य आपूर्ति, रिपेयर और दूसरे कार्यों के लिए एक-दूसरे के आर्मी, एयर और नेवल बेस के उपयोग की सुविधा मिली। इस समझौते के बाद ही अमरीका ने भारत को अपना ‘मेजर स्ट्रैटेजिक पार्टनर’ घोषित कर दिया था। इसके बाद कम्युनिकेशंस एंड इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर हुए। इसके तहत भारत को सी-17, सी-130 और पी-8आई जैसे अमरीकी ओरिजिन मिलिट्री प्लेटफार्म सूचनाओं को इनक्रिप्ट करने वाले विशिष्ट उपकरण हासिल करने की सुविधा मिल गई। इसके बाद अमरीका द्वारा भारत को एसटीए1 (कण्ट्रीज एनटाइटिल्ड टू स्टैटेजिक ट्रेड अथॉराइजेशन) की श्रेणी में प्रदान की गई, जो उच्च तकनीकी व्यापार के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। अलग फाउंडेशनल एग्रीमेंट था- बेका (बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट) जिसके दो आयाम हैं। पहला- भारत और अमरीका के बीच भविष्य में महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान। और दूसरा- भारत अमरीका से सबसे उन्नत हथियार और उपकरण खरीदने की सुविधा। कुल मिलाकर रक्षा और रणनीति के क्षेत्र में ऐसे बहुत से आयाम हैं जो भारत ने डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में हासिल किए थे। ऐसा लगता है कि ट्रंप आगे भी भारत के साथ ऐसे ही संबंध रखना चाहेंगे। भारत से अच्छे और मजबूत राजनीतिक रिश्ते की उम्मीद
भारत-अमरीका आर्थिक संबंधों की बात करें तो ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी आर्थिक मुद्दों पर तनाव रहा था। ट्रंप ने भारत को टैरिफ किंग तक कहा था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि भारत अमरीकी उत्पादों पर भारी-भरकम आयात शुल्क लगाकर अमरीकी व्यापार घाटे को बढ़ा रहा है। ट्रंप के नए कार्यकाल में इमीग्रेशन और एच1बी वीजा को लेकर नीतियां सख्त हो सकती हैं। साथ ही वे चीजों के आयात की जगह उनके लोकलाइजेशन पर ज्यादा जोर दे रहे हैं ताकि अमरीका में रोजगार पैदा किए जा सकें और पैन अमरीकनिज्म को मजबूती दी जा सके। इसका प्रभाव भारत की आइटी कंपनियों पर पड़ सकता है। भारत के इलेक्ट्रिक व्हिकल (ईवी) बाजार पर भी प्रभाव पडऩे की आशंका है। दरअसल एलन मस्क लंबे समय से भारत के ईवी मार्केट में एंट्री करना चाह रहे हैं। इसलिए ऐसी संभावना है कि ट्रंप प्रशासन टैरिफ वार के सहारे उन्हें भारत में प्रवेश दिलाने की कोशिश करेगा। यदि ऐसा हुआ तो भारत के ईवी बाजार में पहले से मौजूद कंपनियों को तगड़ा झटका लग सकता है। टेलीकॉम और इंटरनेट सेक्टर पर भी ऐसा ही असर होने की संभावना है। यहां भी एलन मस्क का ही मामला है जिसकी स्पेसएक्स नाम की कंपनी है जो स्टारलिंक नाम से सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराती है।
कुल मिलाकर ट्रंप के पहले कार्यकाल में कुछ टकरावों के बावजूद भारत और अमरीका संबंध मल्टी डायमेंशनल, मल्टी स्ट्रैटेजिक और जियो-स्ट्रैटेजिक लाभांश हासिल करने में सफल रहे थे। अब ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में देखना यह होगा कि क्या भारत अमरीका से ऐसा डिप्लोमैटिक और स्ट्रैटेजिक लाभांश हासिल कर पाएगा, जिनकी अर्थमेटिकल वैल्यू भी हो।